जमीन और बैंक के दस्तावेज नागरिकता का सबूत नहीं- गुवाहाटी हाई कोर्ट
गुवाहाटी हाई कोर्ट ने कहा है कि भूमि राजस्व रसीदें, बैंक स्टेटमेंट और परमानेंट अकाउंट नंबर (PAN) कार्ड को नागरिकता का सबूत नहीं माना जा सकता। यह कहते हुए कोर्ट ने एक महिला द्वारा खुद को विदेशी ठहराने के खिलाफ दायर की गई याचिका को खारिज कर दिया। हालांकि, असम में नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन (NRC) की प्रक्रिया के समय जमीन और बैंकों के दस्तावेजों को स्वीकार्य माना गया था। आइये, इस बारे में विस्तार से जानते हैं।
कहां से शुरू हुआ पूरा मामला?
पिछले साल अगस्त में असम में NRC की अंतिम सूची प्रकाशित हुई थी। इसमें 19 लाख लोगों के नाम शामिल नहीं किए गए थे। इन लोगों के मामले सुनने के लिए असम में सैंकड़ों फॉरेन ट्रिब्यूनल्स स्थापित किए गए हैं। ट्रिब्यूनल के फैसले को हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है। अगर कोई व्यक्ति सुप्रीम कोर्ट में भी अपनी नागरिकता साबित नहीं कर पाता है तो उसे विदेशी घोषित कर दिया जाएगा।
कोर्ट ने दिया पुराने फैसले का संदर्भ
ताजा मामले में गुवाहाटी हाई कोर्ट की जस्टिस मनोजित भूयान और पृथ्वीज्योति सैकिया की बेंच ने इसी कोर्ट के एक पुराने फैसले का संदर्भ दिया। 2016 में हाई कोर्ट ने फैसला दिया था कि PAN कार्ड और बैंक दस्तावेजों को नागरिकता का सबूत नहीं माना जा सकता। साथ ही कोर्ट ने कहा था कि भूमि राजस्व रसीदें किसी व्यक्ति की नागरिकता को साबित नहीं करती है। कोर्ट ने यह फैसला मुनिंद्रा बिस्वास की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया।
14 दस्तावेजों के बाद भी नागरिकता साबित नहीं कर सकी महिला
जाबेदा बेगम ऊर्फ जाबेदा खातून ने फॉरेन ट्रिब्यूनल के फैसले को चुनौती देते हुए हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। ट्रिब्यूनल ने जाबेदा को विदेशी घोषित कर दिया है। जाबेदा ने अपनी नागरिकता साबित करने के लिए 14 दस्तावेज प्रस्तुत किए थे, लेकिन इनमें से कोई भी उनके उनके माता-पिता के साथ संबंध को साबित नहीं कर सका। इन दस्तावेजों में सरपंच द्वारा दिया गया उनके पिता और पति का पहचान पत्र भी शामिल था।
वोटर आईडी कार्ड भी मान्य नहीं
इसी बेंच ने एक दूसरे मामले में कहा कि फोटो युक्त वोटर आईडी कार्ड भी नागरिकता साबित करने के लिए वैध दस्तावेज नहीं है। मोहम्मद बाबुल इस्लाम बनाम असम राज्य मामले में कोर्ट ने यह फैसला दिया। जुलाई 2019 में ट्रिब्यूनल द्वारा विदेशी घोषित किए गए बिस्वास ने अदालत को बताया कि उनके दादा दुर्गा चरण विश्वास पश्चिम बंगाल के नदिया जिले के थे और उनके पिता इंद्र मोहन विश्वास 1965 में असम के तिनसुकिया जिले में चले गए।
कोर्ट ने इस मामले में क्या कहा?
बिस्वास ने कहा था कि वह असम में पैदा हुआ और यहीं रहता है। उन्होंने 1997 की मतदाता सूची में अपना नाम भी दिखाया और 1970 में खरीदे जमीन के दस्तावेज भी पेश किए। अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता 1997 से पहले की मतदाता सूची प्रस्तुत नहीं कर पाया, जिससे यह साबित हो सके कि उसके माता-पिता 1 जनवरी, 1966 से पहले असम में प्रवेश कर चुके थे और वो 24 मार्च, 1971 से पहले राज्य में रह रहे थे।