कर्फ्यू के बीच नागरिकता संशोधन बिल के खिलाफ प्रदर्शनों में क्यों जल रहा असम?
नागरिकता (संशोधन) बिल के खिलाफ असम और त्रिपुरा में जबरदस्त उबाल देखने को मिल रहा है। असम की राजधानी गुवाहाटी समेत कई जगहों पर हिंसक प्रदर्शन हुए जिसके बाद राज्य के दो जिलों में कर्फ्यू लगा दिया गया है। इसके अलावा राज्य के 10 जिलों में इंटरनेट को बंद कर दिया गया है। नाजुक स्थिति को देखते हुए गुवाहाटी में सेना बुला ली गई है, वहीं त्रिपुरा में असम राइफल्स को तैनात किया गया है।
गुवाहाटी में लोगों ने किया कर्फ्यू का उल्लंघन
बिल के खिलाफ हो रहे प्रदर्शनों के केंद्र गुवाहाटी में गुरूवार सुबह लोगों ने कर्फ्यू का उल्लंघन करते हुए प्रदर्शन किया। इस बीच सेना ने शहर में फ्लैग मार्च निकाली। वहीं ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (AASU) ने सुबह 11 बजे राज्य में प्रदर्शन बुलाया है। लगातार खराब होते इन हालातों के बीच असम के तीन भाजपा सांसदों ने लोगों में बिल के खिलाफ गुस्सा होने की बात स्वीकार की है, लेकिन हिंसक प्रदर्शनों को गलत बताया है।
प्रधानमंत्री मोदी ने दिया असम के लोगों को भरोसा
प्रदर्शनों के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर असम के लोगों को आश्वासन दिया है। उन्होंने लिखा कि वो और केंद्र सरकार असमी लोगों के राजनीतिक, भाषाई, सांस्कृतिक और जमीन के अधिकारों की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध है।
घुसपैठ असम में एक बड़ा मुद्दा
असम में बांग्लादेश से घुसपैठ एक बड़ा मुद्दा रहा है। यहां लोग बांग्लादेश से किसी भी व्यक्ति के आने के खिलाफ हैं, चाहें वो हिंदू हो या मुस्लिम। राज्य में 1970 और 1980 के दशक में भी घुसैपठ के खिलाफ AASU के नेतृत्व में आंदोलन हुआ था जिसके बाद 1985 में असम समझौता हुआ। इस समझौते में 1971 के बाद असम में आने वाले किसी भी धर्म के विदेशी नागरिक को निर्वासित करने की बात कही गई है।
धर्म का नहीं बल्कि भाषा का है मुद्दा
नागरिकता बिल के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे असम के लोगों का कहना है कि ये असम समझौते का उल्लंघन करते हुए बांग्लादेश से आए हिंदुओं को भारतीय नागरिक बना देगा। उनके इस विरोध का कारण धार्मिक न होकर भाषाई है। दरअसल, असमी बोलने वाले लोगों को डर है कि किसी भी धर्म के बांग्लादेशी लोगों के आने से राज्य में बांग्ला बोलने वाले लोगों की संख्या बढ़ जाएगी और उन्हें अपने ही घर में अल्पसंख्यक की तरह रहना पड़ेगा।
आंकड़े करते हैं असमी लोगों के डर की पुष्टि
आंकड़े असम के लोगों के इस डर की पुष्टि भी करते हैं। 2011 जनगणना के अनुसार, असम में असमी बोलने वाले लोगों की संख्या 1991 में 58 प्रतिशत से घटकर 48 प्रतिशत हो गई है। वहीं इस बीच बांग्ला बोलने वाले लोगों की संख्या 22 प्रतिशत से बढ़कर 30 प्रतिशत हो गई। अभी असमी बोलने वाले लोगों की संख्या 40 प्रतिशत और बांग्ला बोलने वालों की संख्या 33 प्रतिशत होने का अनुमान है।
मुद्दे को हिंदू बनाम मुस्लिम का रंग देती रही है भाजपा
असम के लोगों के इस डर के विपरीत भाजपा इस पूरे सवाल को हिंदू बनाम मुस्लिम के दृषिकोण से पेश करती रही है। पार्टी अक्सर असम के मुस्लिम बहुल राज्य बनने का डर दिखाती रही है। राज्य में भाजपा का मुख्य वोटबैंक भी बांग्ला भाषी हिंदू हैं। विरोधी भाजपा पर इस वोटबैंक को और मजबूत करने और हिंदू-मुस्लिम में टकराव पैदा करके उसका फायदा उठाने के आरोप लगते रहते हैं।
NRC की मेहनत को नागरिकता बिल ने बिगाड़ा
असम में घुसपैठ की समस्या को देखते हुए ही राज्य में नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंस (NRC) लाया गया था जिसका असम के लोगों ने स्वागत किया। 31 अगस्त को जारी की गई इसकी अंतिम सूची में 19 लाख लोगों को जगह नहीं मिली। इनमें से अधिकांश हिंदू थे और अब नागरिकता संशोधन बिल आने के प्रभावी होने के बाद इनमें से अधिकांश को भारतीय नागरिकता मिल जाएगी। इसी कारण असम में इसका विरोध हो रहा है।