करगिल युद्ध में वीरता दिखाने वाले सेना अधिकारी को बताया 'विदेशी', हिरासत कैंप में भेजा गया
करगिल युद्ध में अपनी वीरता का प्रदर्शन करने वाले पूर्व सेना अधिकारी मोहम्मद सनाउल्लाह को विदेशी घोषित किया गया है। विदेशियों के लिए बने न्यायाधिकरण (फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल) ने सनाउल्लाह को विदेशी घोषित करने के बाद गोलपाड़ा के नजरबंदी शिविर में भेज दिया है। उनके साथ उनके परिवार को भी इस शिविर में भेजा गया है। फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल के इस फैसले को गुवाहाटी हाई कोर्ट में चुनौती दी गई है। आइये, इस बारे में विस्तार से जानते हैं।
क्या है पूरा मामला
सनाउल्लाह का नाम नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिंजन्स (NRC) में नहीं हैं। ट्रिब्यूनल ने 23 मई को अपने फैसले में कहा कि सनाउल्लाह 25 मार्च, 1971 की तारीख से पहले भारत से अपने जुड़ाव का सबूत देने में असफल रहे हैं। वह इस बात का भी सबूत देने में असफल रहे कि वह जन्म से ही भारतीय नागरिक हैं। इस फैसले के बाद बॉर्डर पुलिस ने सनाउल्लाह को समन दिया, जब वो पेश हुए तो उन्हें हिरासत में ले लिया गया।
बॉर्डर पुलिस में सेवाएं दे चुके हैं सनाउल्लाह
यह संयोग की बात है कि जिस बॉर्डर पुलिस ने सनाउल्लाह को हिरासत में लिया है, वो उस पुलिस में सेना से रिटायर होने के बाद ASI (असिस्टेंट सब-इंस्पेक्टर) रह चुके हैं। बॉर्डर पुलिस को गैर-कानूनी रूप से भारत में रहने वाली शरणार्थियों की पहचान का काम सौंपा गया है। सनाउल्लाह के परिवार में उनकी पत्नी, दो बेटी और एक बेटा है। वो अपनी नागरिकता साबित करने के लिए कई बार ट्रिब्यूनल में पेश हो चुके हैं।
हाई कोर्ट के फैसले को दी गई चुनौती
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, सनाउल्लाह के भाई और रिटायर JCO मोहम्मद अजमल हक ने कहा कि सनाउल्ला के परिवार और कई रिटायर सैनिकों ने इस फैसले को गुवाहाटी हाई कोर्ट में चुनौती दी है। उन्होंने कहा कि सनाउल्ला का जन्म 1967 में असम में हुआ था और उन्होंने 1987 में सेना ज्वॉइन की थी। वो 2017 में बतौर मानद लेफ्टिनेंट सेना से रिटायर हुए थे। उन्होंने कहा कि देश की सेवा करने का उन्हें यह फल मिला है।
इस आधार पर ट्रिब्यूनल ने दिया अपना फैसला
सनाउल्लाह ने लोकसभा चुनावों में वोट भी डाला था। अजमल ने कहा कि ट्रिब्यूनल में एक सुनवाई के दौरान उन्होंने गलती से सेना में शामिल होने का साल 1978 लिख दिया था। इस गलती के आधार पर ट्रिब्यूनल ने उसे विदेशी साबित कर दिया। ट्रिब्यूनल ने कहा कि 11 साल की उम्र में कोई भी सेना में शामिल नहीं हो सकता। कुछ साल पहले अजमल को भी गलती से ट्रिब्यूनल की तरफ से ऐसा नोटिस मिला था।
असम में है सिटिजनशिप रजिस्टर की व्यवस्था
असम में सिटिजनशिप रजिस्टर की व्यवस्था की गई है। यह ऐसी व्यवस्था वाला अकेला राज्य है। यह कानून देश में लागू नागरिकता कानून से अलग है। असम में रहने वाले जिन लोगों के नाम इस रजिस्टर में नहीं है, उन्हें अवैध नागरिक माना जाता है।
सुप्रीम कोर्ट की पहल पर अपडेट हुआ रजिस्टर
बांग्लादेश से असम में आने वाले अवैध घुसपैठियों पर बढ़े विवाद के बाद सुप्रीम कोर्ट ने NRC को अपडेट करने को कहा था। पहला रजिस्टर 1951 में जारी हुआ था। ये रजिस्टर असम का निवासी होने का सर्टिफिकेट है। असम देश का इकलौता राज्य है जहां सिटिजनशिप रजिस्टर की व्यवस्था लागू है। इसके अंतिम ड्राफ्ट में जिन लोगों के नाम शामिल नहीं थे, उन्हें फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल में अपील करने का विकल्प दिया गया था।