भारत-चीन सीमा पर जारी तनाव के बीच भारत की स्पेशल फ्रंटियर फोर्स चर्चा में क्यों है?
इस सप्ताह लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) के पास हुए एक माइन धमाके में तेनजिन नियेमा शहीद हो गए थे। सोशल मीडिया पर ऐसी कई तस्वीरें वायरल हुईं थी, जिनमें उनके पार्थिव शरीर को भारतीय तिरंगे और तिब्बत के झंडे से ढका हुआ दिखाया गया था। तेनजिन की शहादत के बाद प्रशिक्षित पहाड़ी योद्धाओं का एक खास बल चर्चा में आ गया है। इसे स्पेशल फ्रंटियर फोर्स (SFF) के नाम से जाना जाता है।
1962 के युद्ध के बाद की गई थी SFF की स्थापना
तेनजिन SFF का हिस्सा थे। इसकी स्थापना 1962 में चीन के साथ हुए युद्ध के बाद की गई थी। शुरुआत में इस बल में तिब्बत से आए शरणार्थियों को भर्ती किया गया था। SFF ने अपनी शुरुआत के बाद 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध और 1999 के करगिल युद्ध में अहम भूमिका निभाई थी, लेकिन यह कभी चर्चा का हिस्सा नहीं बन पाई। यह खबरों और आम लोगों की नजरों से दूर अपने काम को अंजाम देती रही।
चीन के साथ विवाद के बीच लद्दाख में तैनात हैं SFF की बटालियन- रिपोर्ट
द प्रिंट के मुताबिक, चीन के साथ सीमा पर पिछले पांच महीनों से जारी तनाव के बीच भारत ने जो अतिरिक्त सेना लद्दाख में तैनात की है, उसमें SFF के जवान भी शामिल हैं। इस बल के बारे में सार्वजनिक रूप से बहुत जानकारी उपलब्ध नहीं है, लेकिन जानकारों को कहना है कि इसमें महिला और पुरुष दोनों शामिल होते हैं और उन्हें कमांडो को दी जाने वाली ट्रेनिंग दी जाती है।
खुफिया एजेंसियों ने दिया था SFF की शुुरुआत का विचार
मेजर जनरल सुजान सिंह उबान ने इस बल को तैयार किया था और इसे शुरुआत में एस्टैबलिशमेंट 22 के नाम से जाना जाता है। कई रिपोर्ट्स में कहा गया है कि इस बल की स्थापना का विचार खुफिया विभाग के पूर्व प्रमुख बीएन मलिक और अमेरिकी खुफिया एजेंसी CIA का था। चीनी युद्ध के बाद भारत के कहने पर कई तिब्बती युवा इस बल का हिस्सा बने और जल्द ही इनकी संख्या 6,000 हो गई थी।
विकास बटालियन के नाम से भी जानी जाती है SFF
SFF विकास बटालियन के नाम से भी जानी जाती है और यह कैबिनेट सचिवालय के तहत आती है। मेजर जनरल रैंक के अधिकारी इस बटालियन के प्रमुख होते हैं, जो SFF के इंस्पेक्टर जनरल होते हैं। उत्तराखंड के चकराता में इसका मुख्य कैंप है। स्पेशल फ्रंटियर फोर्स के कुल जवानों की संख्या के बारे में पता नहीं चल पाया है। इसके जवानों को ऊंची जगहों पर होने वाली लड़ाईयों के लिए ट्रेनिंग दी जाती है।
चीन के साथ लगी सीमा पर रहती है अधिकतर तैनाती
सूत्रों ने बताया कि SFF में शामिल जवानों को पहाड़ों पर होने वाली लड़ाईयों की ट्रेनिंग दी जाती है और इन्हें अधिकतर चीन के साथ लगी सीमा पर तैनात किया जाता है। हालांकि, इनकी तैनाती की जानकारी अधिकतर गुप्त ही रखी जाती है। एक पूर्व सेना अधिकारी कहते हैं कि भारतीय सेना पहाड़ों और सीमा पर तैनाती के लिए स्थानीय युवाओं वाली स्काउट रेजीमेंट को चुनती है। इसकी वजह यह है कि इन्हें इलाके की बेहतर जानकारी होती है।
1971 के युद्ध में SFF ने निभाई थी महत्वपूर्ण भूमिका
SFF ने 1971 में हुए भारत-पाकिस्तान युद्ध में भी हिस्सा लिया था। इस युद्ध में SFF की बटालियन को चिटगांव के पहाड़ी इलाकों के पास तैनात किया गया था। उन्हें भारतीय सेना की मदद करने के लिए दुश्मनों की चौकियों को निशाना बनाने का काम सौंपा गया था। इस ऑपरेशन को 'ईगल' नाम दिया गया था। SFF जवानों ने बांग्लादेश में घुसकर पाकिस्तान सैनिकों, सैन्य ठिकानों, संचार उपकरणों, हथियारों और दूसरे सामानों पर हमला कर उन्हें तहस-नहस कर दिया था।
वीरता के लिए सम्मानित की गई थी SFF
इस युद्ध में दिखाई गई बहादुरी के लिए स्पेशल फ्रंटियर फोर्स के जवानों को सम्मानित भी किया गया था। इसके अलावा SFF ने 1984 में हुए ऑपरेशन ब्लू स्टार, सियाचिन ग्लेशियर को कब्जे में करने और करगिल युद्ध में भी अहम भूमिका निभाई थी।