अयोध्या विवाद पर अपने फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने क्या-क्या कहा, जानें मुख्य बातें
क्या है खबर?
अयोध्या विवाद में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ गया है।
मुख्य न्यायाधीश (CJI) रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संवैधानिक बेंच ने विवादित 2.77 एकड़ जमीन को मंदिर निर्माण के एक ट्रस्ट को दिए जाने का आदेश दिया है।
वहीं मस्जिद निर्माण के लिए उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड को अयोध्या में ही पांच एकड़ जमीन दी जाएगी।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले में मुख्य बिंदु क्या रहे, आइए आपको बताते हैं।
आस्था
आस्था के आधार पर नहीं सुनाया जा सकता फैसला
CJI गोगोई ने फैसले को पढ़ते हुए कहा कि सदियों से हिंदुओं की ये आस्था रही है कि अयोध्या में ही भगवान राम का जन्म हुआ था और इस पर कोई विवाद नहीं है।
हालांकि, उन्होंने कहा कि आस्था उसे मानने वाले व्यक्ति की निजी भावना है और कोर्ट आस्था के आधार पर जमीन विवाद का फैसला नहीं सुना सकती।
उन्होंने कहा कि कानून को हमेशा राजनीति, धर्म और आस्था से परे रहना चाहिए।
निर्मोही अखाड़ा
निर्मोही अखाड़े के दावे को किया खारिज
उनके मुकदमों को खारिज करने के बावजूद सुन्नी वक्फ बोर्ड और निर्मोही अखाड़ा को विवादित जमीन में हिस्सा देने के इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने समझ से परे बताया।
निर्मोही अखाड़े के दावे को खारिज करते हुए CJI गोगोई ने कहा कि उसका जमीन या उसके प्रबंधन पर कोई दावा नहीं बनता।
हालांकि, उसे मंदिर निर्माण के लिए बनने वाले ट्रस्ट में जगह दी गई है, लेकिन इसका अंतिम फैसला सरकार पर छोड़ा गया है।
ASI सर्वे
गैर-इस्लामिक ढांचे के ऊपर बनी थी मस्जिद- सुप्रीम कोर्ट
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की रिपोर्ट का हवाला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस बात के पर्याप्त सबूत हैं कि बाबरी मस्जिद किसी खाली जगह पर नहीं बनी थी।
कोर्ट ने कहा कि इसके नीचे एक ऐसी संरचना पाई गई है जो मूल रूप से इस्लामिक नहीं थी और बरामद की गई कलाकृतियां गैर-इस्लामिक थीं।
हालांकि, ASI ने ये नहीं कहा कि मस्जिद के नीचे जो ढांचा मिला उसे ढहाया गया था।
बयान
"केवल ASI रिपोर्ट के आधार पर नहीं सुनाया जा सकता फैसला"
ASI की रिपोर्ट पर हवाला देने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केवल ASI रिपोर्ट के आधार पर फैसला नहीं सुनाया जा सकता और जमीन के मालिकाना हक़ का फैसला कानून के सिद्धांतो के अनुरूप ही किया जाना चाहिए।
मस्जिद पर दावा
मुस्लिमों ने मस्जिद को कभी नहीं छोड़ा
सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि इस बात के कोई सबूत नहीं है कि मुस्लिमों ने मस्जिद को छोड़ दिया था और ये पूरी तरह स्पष्ट है कि मुस्लिम मस्जिद के भीतरी आंगन (मुख्य गुबंद) में नमाज पढ़ते थे और हिंदू बाहरी हिस्से में मौजूद चबूतरे पर पूजा करते थे।
कोर्ट ने कहा कि 1855 से पहले तक हिंदू भी मस्जिद के अंदर जाते थे और उनकी मान्यता है कि भगवान राम का जन्म गुबंद वाले स्थान पर हुआ था।
जानकारी
विवादित जमीन पर मालिकाना हक के सबूत पेश करने में असफल रहा मुस्लिम पक्ष
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मुस्लिम पक्ष विवादित संपत्ति पर अपने मालिकाना हक के समर्थन में कोई भी दस्तावेज पेश करने में असफल रहा। कोर्ट ने कहा कि 1528 से 1556 के बीच मस्जिद के अंदर नमाज पढ़ने के भी सबूत पेश नहीं किए गए।
आदेश
केंद्र सरकार को ट्रस्ट बनाने और मस्जिद के लिए जमीन देने का आदेश
अपने फैसले के अंत में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि विवादित 2.77 एकड़ जमीन मंदिर निर्माण के लिए एक ट्रस्ट के हवाले कर दी जाए।
वहीं उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड को मस्जिद निर्माण के लिए अयोध्या की ही किसी प्रमुख जगह पर पांच एकड़ जमीन दी जाए।
कोर्ट ने केंद्र सरकार को मंदिर निर्माण के लिए ट्रस्ट बनाने और मस्जिद निर्माण के लिए सुन्नी वक्फ बोर्ड को जमीन देने के लिए तीन-चार महीने का समय दिया है।
जानकारी
गुबंद की नीचे मूर्तियां रखने और मस्जिद विध्वंस को बताया गैरकानूनी
इसके अलावा अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने 1949 में बाबरी मस्जिद के मुख्य गुबंद के अंदर मूर्तियां रखे जाने को गलत बताया। इसके अलावा 6 दिसंबर, 1992 को बाबरी मस्जिद के विध्वंस को एक गैरकानूनी कृत्य बताया।