अयोध्या केस: हिंदू और मुस्लिम पक्ष ने 40 दिन की सुनवाई में क्या-क्या दलीलें दीं थी?
अयोध्या विवाद में सुप्रीम कोर्ट में 16 अक्टूबर को सुनवाई पूरी हो गई थी। जिस पर आज फैसला आना है। 40 दिन चली इस सुनवाई में 2.77 एकड़ विवादित जमीन पर दावा करने वाले तीन पक्षों, निर्मोही अखाड़ा, राम लला विराजमान और सुन्नी वक्फ बोर्ड, ने अपनी दलीलें रखीं। सभी पक्षों ने जमीन पर मालिकाना हक और उसके भगवान राम का जन्मस्थान होने या न होने समेत कई बिंदुओं पर दलीलें पेश कीं। आइए मुख्य दलीलों के बारे में जानें।
तीनों पक्षों ने पेश किया जमीन पर मालिकाना हक
तीनों ही पक्षों ने जमीन पर अपना मालिकाना हक बताया। निर्मोही अखाड़ा ने कहा कि विवादित जमीन 100 साल से भी अधिक समय से उनके पास है। मालिकाना हक के दस्तावेजों के बारे में अखाड़ा ने कहा था कि वह 1983 की एक डकैती में चोरी हो गए थे। वहीं रामलला विराजमान ने जमीन पर अपना मालिकाना हक बताते हुए कहा था कि काूनन की नजर में भगवान नाबालिग होते हैं और एक नाबालिग की संपत्ति छीनी नहीं जा सकती।
मुस्लिम पक्ष की दलील, जमीन पर थी मस्जिद इसलिए हमारा हक
सुन्नी वक्फ बोर्ड ने विवादित जमीन पर अपना दावा पेश करते हुए कहा था कि हिंदू पक्ष केवल अपने विश्वास के आधार पर जमीन पर अपना दावा पेश कर रहे हैं। उसने कहा कि विवादित स्थल भगवान राम का जन्मस्थल नहीं है और इस जगह पर बाबरी मस्जिद थी जिसका निर्माण बाबर के शासन में किया गया था। मुस्लिम पक्ष ने कहा था कि राम पूज्यनीय हैं, लेकिन उनके नाम पर जमीन पर दावा नहीं किया जा सकता।
हिंदुओ की आस्था, अयोध्या में हुआ था भगवान का जन्म
आस्था और पूजा के मसले पर हिंदू पक्ष ने दलील रखते हुए कहा कि हिंदू आस्था है कि अयोध्या में भगवान राम का जन्म हुआ था और विवादित जमीन उनकी है। हिंदू धर्म में किसी जगह की पूजा के लिए वहां मूर्ति होना जरूरी नहीं है और नदियों और सूर्य की भी पूजा की जाती है। उन्होंने कहा कि विवादित स्थल पर मुस्लिमों ने दिसंबर 1949 से नमाज पढ़ना पूरी तरह बंद कर दिया था।
नमाज पढ़ने से मुस्लिमों की नहीं हो जाती कोई भी जगह
हिंदू पक्ष ने ये भी दलील दी कि अगर मुस्लिमों ने विवादित स्थल पर नमाज पढ़ी भी हो तो भी वह इस पर दावा नहीं कर सकते। अगर मुस्लिम गली में नमाज करें तो गली उनकी नहीं हो जाती।
मुस्लिम पक्ष ने कहा, भीतर आंगन में मूर्ति पूजा के कोई सबूत नहीं
वहीं सुन्नी वक्फ बोर्ड ने अपनी दलील में कहा कि ये कहना गलत है कि 1949 के बाद विवादित स्थल पर नमाज नहीं पढ़ी गई। उसने कहा कि हिंदू पहले बाहरी हिस्से में स्थित राम चबूतरे पर भगवान राम की पूजा करते थे और इसे ही उनका जन्मस्थल माना जाता था। लेकेिन 1949 में मूर्तियों को राम चबूतरे से उठाकर भीतर आंगन में रखा गया। गर्भगृह में भी मूर्ति पूजा के कोई सबूत नहीं हैं।
"विवादित स्थल पर मंदिर किसने तोड़ा, इस पर तथ्य साफ नहीं"
विवादित स्थल पर ऐतिहासिक रूप से कौन सा स्थल था, इस पर हिंदू पक्ष ने कहा कि ईसा पूर्व यहां एक विशाल मंदिर था और बाद में इसे तोड़कर मस्जिद बनाई गई। मंदिर को किसने तोड़ा, इस सवाल के जवाब में हिंदू पक्ष ने कहा कि मंदिर बाबर ने तोड़ा या औरंगजेब ने, इसे लेकर एक समान तथ्य नहीं है, लेकिन ये साफ है कि राम अयोध्या के राजा थे और उनका जन्म यहीं हुआ था।
हिंदू पक्ष ने मस्जिद में इंसानों और जानवरों की तस्वीरों का भी दिया हवाला
हिंदू पक्ष ने कहा कि बाबरी मस्जिद में इंसानों और जानवरों की तस्वीरें बनी हुई थीं जो इस्लाम के खिलाफ है और मुस्लिम नमाज की जगह पर किसी की तस्वीर नहीं रखते। इससे ये दावा खारिज होता है कि यहां ऐतिहासिक रूप से मस्जिद थी। हिंदू पक्ष ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि इसमें कहा गया था कि विवादित स्थल पर एक मंदिर था।
मुस्लिम पक्ष का जवाब, ASI रिपोर्ट प्रमाणिक सबूत नहीं
मुस्लिम पक्ष ने हिंदू पक्ष की दलीलों के विरोध में कहा कि ASI की रिपोर्ट में ये स्पष्ट नहीं है कि क्या विवादित स्थल पर मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई गई थी और इसलिए इसे प्रमाणिक सबूत नहीं माना जा सकता। उन्होंने कहा कि मस्जिद के केंद्रीय गुंबद को भगवान राम का जन्मस्थल बनाने की कहानी 1980 के बाद गढ़ी गई। 1949 में मूर्तियों को भीतर आंगन में रखा गया और हिंदू पक्ष पूरी जमीन पर कब्जे का दावा करने लगे।
मुस्लिम पक्ष ने किया बाबरनामा और हिंदू प्राचीन कथाओं का जिक्र
बाबरनामा का हवाला देते हुए मुस्लिम पक्ष ने कहा कि मस्जिद को बाबर के आदेश पर उसके कमांडर मीर बाकी ने बनवाया था और तीन शिलालेखों पर इसका जिक्र भी है। इतिहासकार विलियम फॉस्टर ने भी विवादित जगह पर मस्जिद की बात कही है। प्राचीन कथाओं में भी कहा गया है कि भगवान राम की मां कौशल्या अपने मायके गई थीं और वहीं उन्होंने राम को जन्म दिया था। ऐसे में अयोध्या राम का जन्मस्थान हो यह भी जरूरी नहीं।
हिंदू और मुस्लिम पक्षों ने क्या-क्या साबित करने की कोशिश की?
हिंदू पक्ष ने अपनी दलीलों में ये साबित करने की कोशिश की कि विवादित स्थल पर राजा विक्रमादित्य ने मंदिर बनवाया था और 11वीं शताब्दी के आसपास इसका पुनर्निमाण किया गया। 1526 में बाबर या 17वीं शताब्दी में औरंगजेब ने मंदिर को तोड़कर वहां मस्जिद बनाई। वहीं मुस्लिम पक्ष ने ये साबित करने की कोशिश की कि विवादित स्थल पर 1528 से मस्जिद है जिसे 1992 में तोड़ दिया गया।