पहले कब-कब हुई हैं अयोध्या मामले को बातचीत से सुलझाने की कोशिशें?
क्या है खबर?
सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या मामले पर सुनवाई करते हुए फैसला किया कि स्थाई समाधान के लिए इस विवाद को आपसी सहमति (मध्यस्थता) के जरिए सुलझाया जाना चाहिए।
इसके लिए सुप्रीम कोर्ट ने तीन सदस्यीय मध्यस्थता समिति बनाई है। पूर्व न्यायाधीश खलीफुल्ला इस समिति के चेयरमैन होंगे। इसके अलावा श्री श्री रविशंकर और वरिष्ठ वकील श्रीराम पंचू समिति के सदस्य होंगे।
सुप्रीम कोर्ट मध्यस्थता प्रक्रिया की निगरानी करेगा और यह प्रक्रिया पूरी तरह गोपनीय रखी जाएगी।
जानकारी
पहले भी हुई हैं बातचीत की कोशिशें
यह पहली बार नहीं है जब अयोध्या विवाद को सुलझाने के लिए आपसी बातचीत की पहल की गई है। इससे पहले भी कई बार ऐसी पहल की जा चुकी हैं, लेकिन हर बार वे असफल रही हैं।
मामला
सुप्रीम कोर्ट में लंबित है राम मंदिर मामला
सुप्रीम कोर्ट में इलाहाबाद हाईकोर्ट के दिए फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई चल रही है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2010 में दिए अपने फैसले में विवादित भूमि को निर्मोही अखाड़ा, सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड उत्तर प्रदेश और रामलला विराजमान के बीच तीन हिस्सों में बांट दिया था।
हाई कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ सभी पक्षकारों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर की थी।
जानकारी
विध्वंस से पहले से शुरू हुई सुलह की कोशिशें
दिसंबर, 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के समय से पहले ही इस मामले में सुलह की कोशिश की गई थी। तब विश्व हिंदु परिषद (VHP) और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) के बीच बातचीत हुई थी, लेकिन यह सिरे नहीं चढ़ पाई।
कोशिश
विध्वंस के बाद केंद्र सरकार ने की कोशिश
बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद से ही इस मामले को बातचीत के जरिए सुलझाने की कई कोशिशें की गईं।
साल 1994 में केंद्र सरकार ने मामले से जुड़े सभी पक्षों को बातचीत से इस मसले का हल निकालने को कहा था।
केंद्र सरकार की पहल पर पक्षकारों के बीच कई दौर की बातचीत चली, लेकिन सभी पक्षों के बीच आपसी सहमति नहीं बन पाई।
इस तरह तब यह मामला अनसुलझा रहा।
लखनऊ
लखनऊ हाई कोर्ट की कोशिश भी नहीं लाई रंग
बातचीत के दौर असफल हो जाने के बाद मामला लखनऊ हाई कोर्ट पहुंचा। साल 2010 में इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने मध्यस्थता की कोशिश की।
अगस्त, 2010 में सभी पक्षों के विचार सुनने के बाद तीन सदस्यीय बेंच ने सभी पक्षों के वकीलों को चैंबर में बुलाकर मामले पर आपसी सहमति बनाने को कहा, लेकिन एक पक्ष को यह पेशकश मंजूर नहीं थी और बातचीत की कोशिश सिरे नहीं चढ़ पाई।
याचिका
सुप्रीम कोर्ट में सहमति के लिए याचिका
साल 2010 में ही रमेश चंद्र त्रिपाठी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की।
इसमें उन्होंने दीवानी प्रक्रिया की धारा 89 के तहत विवाद को सहमति से सुलझाने की मांग की, लेकिन यह कोशिश भी नाकाम रही।
बता दें, धारा 89 के तहत कोर्ट जमीनी विवाद को अदालत के बाहर आपसी सहमति से सुलझाने को कह सकता है।
इसके लिए सभी पक्षों की सहमति होना जरूरी है। अगर ऐसा नहीं होता तो कोर्ट मामले की सुनवाई कर सकता है।
सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने की आम सहमति बनाने की पहल
इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले के बाद सभी पक्षकारों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी।
इन पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या विवाद को 'धर्म और आस्था' से जुड़ा मामला बताते हुए कहा कि अगर आम सहमति से इस मसले का हल निकल सके तो यह सबसे बेहतर होगा।
तत्कालीन मुख्य न्यायधीश जेएस खेहर ने कहा था कि अगर बातचीत से इस मामले का हल नहीं निकलेगा तो कोर्ट सुनवाई को तैयार होगा।
जानकारी
श्री श्री रविशंकर की असफल कोशिश
सुप्रीम कोर्ट द्वारा मध्यस्थता समिति के सदस्य बनाए गए आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर ने 2017 में भी विवाद को सुलझाने के लिए सहमति बनाने की पहल की थी। उन्होंने इसके लिए सभी पक्षों से बातचीत की, लेकिन इस मामले का हल नहीं पाया।