जस्टिस मुरलीधर ने वकीलों से की 'माय लॉर्ड' और 'योर लॉर्डशिप' नहीं कहने की अपील
दिल्ली हिंसा पर तल्ख टिप्पणी कर सुर्खियों में आए जस्टिस डॉ एस मुरलीधर ने दिल्ली उच्च न्यायालय से पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय में तबादला किए जाने के बाद नई मिसाल पेश की है। उन्होंने चंडीगढ़ स्थित उच्च न्यायालय के वकीलों से सुनवाई के दौरान उन्हें 'माय लॉर्ड' और 'योर लॉर्डशिप' कहकर संबोधित नहीं करने की अपील की है। उन्होंने सोमवार को मामलों की सुनवाई से पहले बार एसोसिएशन के सभी सदस्यों से लिखित में यह आग्रह किया है।
जस्टिस मुरलीधर की लिखित अपील
जस्टिस मुरलीधर ने अपने लिखित संदेश में कहा कि यह बार एसोसिएशन के सभी सम्मानीय सदस्यों की जानकारी के लिए है कि सुनवाई के दौरान कोई भी वकील उन्हें 'माय लॉर्ड' और 'योर लॉर्डशिप' कहकर संबोधित नहीं करें। इसके बाद सदस्यों ने ऐसा ही करने का भरोसा भी दिलाया है। गौरतलब है कि उन्होंने 6 मार्च को पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट के जज के तौर शपथ ली थी। उस दौरान वकीलों ने गर्मजोशी से उनका स्वागत किया था।
चंडीगढ़ हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने पारित किया था प्रस्ताव
आपको बता दें कि कुछ साल पहले चंडीगढ़ हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने अपने सदस्यों को न्यायधीशों को 'माय लॉर्ड' और 'योर लॉर्डशिप' के रूप में संबोधित करने का प्रस्ताव पारित किया था। उसके बाद से ही वकीलों द्वारा इसी तरह संबोधन किया जा रहा था।
जस्टिस मुरलीधर ने दिल्ली हिंसा पर की थी तल्ख टिप्पणी
बता दें कि जस्टिस मुरलीधर ने दिल्ली हिंसा को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट में बतौर जज बेहद तल्ख टिप्पणी की थी। उन्होंने नफरत फैलाने वाले भाषण देने वाले राजनीतिक नेताओं के खिलाफ मामला दर्ज करने में देरी को लेकर दिल्ली पुलिस को फटकार लगाई थी। इसके अलावा उन्होंने केंद्र सरकार को हिंसा पीड़ितों की मदद का निर्देश दिए थे और कहा था कि दिल्ली में 1984 जैसे हालात दोबारा नहीं होने दिए जाएंगे। इसके बाद उनका तबादला कर दिया गया था।
जस्टिस मुरलीधर के तबाले को लेकर हुआ था विवाद
दिल्ली हिंसा मामले में तल्ख टिप्पणी करने के बाद सरकार की ओर से अचानक रातोंरात उनका तबादला किए जाने को लेकर काफी विवाद हुआ था। कांग्रेस ने उनके तबादला आदेशों को शर्मनाक बताया तथा, जबकि सरकार ने इसे नियमित तबादला बताया था।
जस्टिस मुरलीधर ने 1984 में की थीं वकालत की शुरुआत
जस्टिस मुरलीधर ने सितंबर 1984 में चेन्नई में अपनी वकालत की प्रैक्टिस शुरू की थी। तीन साल बाद वर्ष 1987 में वो सुप्रीम कोर्ट और दिल्ली हाईकोर्ट में वकालत की प्रैक्टिस करने लगे। वो सुप्रीम कोर्ट लीगल सर्विसेज कमेटी के वकील भी रहे हैं। फांसी की सजा पाने वाले आरोपियों के मामलों में वो सुप्रीम कोर्ट में अदालत के सहयोगी (एमिकस क्यूरी) भी रहे हैं। उनके तबादले का दिल्ली हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने भी विरोध किया था।
राजस्थान हाईकोर्ट ने गत वर्ष लिया था यह फैसला
अदालत में न्यायाधीशों को 'माय लॉर्ड' और 'योर लॉर्डशिप' नहीं कहने को लेकर राजस्थान हाईकोर्ट ने 15 जुलाई, 2019 को सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित किया था। आदेश में कहा गया था कि अब न्यायाधीशों को 'माय लॉर्ड' और 'योर लॉर्डशिप' कहने की प्रथा को खत्म किया जा रहा है। इससे पहले जनवरी 2014 में जस्टिस एचएल दत्तू और जस्टिस एसए बोबडे की पीठ ने जजों को इन शब्दों से संबोधित करना अनिवार्य नहीं होने की बात कही थी।