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    जोशीमठ में भू-धंसाव: यह क्या होता है और अभी क्यों हो रहा है?

    जोशीमठ में भू-धंसाव: यह क्या होता है और अभी क्यों हो रहा है?
    लेखन प्रमोद कुमार
    Jan 10, 2023, 10:52 am 1 मिनट में पढ़ें
    जोशीमठ में भू-धंसाव: यह क्या होता है और अभी क्यों हो रहा है?
    जोशीमठ में भू-धंसाव: यह क्या होता है और अभी क्यों हो रहा है?

    उत्तराखंड में जमीन में धंसते जोशीमठ से लोगों को निकालने का सिलसिला जारी है। यहां से करीब 4,000 लोगों को बाहर निकाल लिया गया है। पिछले कई सालों से ऐसी आशंका जताई जा रही थी कि जोशीमठ में भू-धंसाव हो सकता है, लेकिन सरकारों ने इस पर गौर नहीं किया। इसका नतीजा है कि आज स्थिति बहुत डरावनी हो गई है। आइये जानते हैं कि भू-धंसाव क्या है, यह क्यों होता है और जोशीमठ में क्यों हो रहा है।

    क्या होता है भू-धंसाव?

    जमीन के नीचे हो रही गतिविधियों के चलते जब जमीन धंसती है तो उसे भू-धंसाव कहा जाता है। इसके पीछे प्राकृतिक और कृत्रिम समेत कई कारण हो सकते हैं। इन कारणों में जमीन के नीचे से पानी और प्राकृतिक संसाधनों की निकासी, खनन गतिविधियां, भूकंप और मिट्टी का कटाव आदि शामिल है। भू-धंसाव किसी एक बहुत बड़े इलाके में भी हो सकता है और यह घर के किसी कोने जैसी छोटी जगह में भी हो सकता है।

    जोशीमठ में भू-धंसाव क्यों हो रहा है?

    जोशीमठ में भू-धंसाव के असल कारण अभी तक पता नहीं चले हैं, लेकिन माना जा रहा है कि यहां हुए अनियोजित निर्माण कार्य, इलाके में क्षमता से ज्यादा आबादी का आवास, पानी के प्राकृतिक बहाव में बाधा और जलविद्युत परियोजनाओं के चलते ऐसे हालात बने हैं। इसके अलावा जोशीमठ ऐसे इलाके में स्थित हैं, जहां भूकंप आने की आशंका अधिक रहती है। पिछले कई सालों से कई रिपोर्ट में सरकारों को ऐसी स्थिति की आशंका से अवगत कराया गया था।

    भूस्खलन के मलबे पर बसा है जोशीमठ

    विशेषज्ञों का कहना है कि जोशीमठ कई साल पहले भूकंप के कारण हुए भूस्खलन के मलबे पर बसा है। यानी यह शहर रेत और पत्थरों पर बसा हुआ है न कि पहाड़ों पर। मलबे में ज्यादा वजन सहने की क्षमता नहीं होती और उसके दरकने के आसार अधिक रहते हैं। लगातार बढती आबादी और अंधाधुंध निर्माण कार्यों ने यहां स्थिति को और खतरनाक बना दिया। इसके अलावा यहां ड्रेनेज की उचित व्यवस्था नहीं है, जिसने स्थिति को बदतर किया है।

    सालों से चली आ रही है स्थिति- सेन

    विशेषज्ञ मानते हैं कि अनियोजित और गैर-अधिकृत निर्माण कार्यों ने पानी के प्राकृतिक बहाव में बाधा डाली है, जिससे भूस्खलन का खतरा बढ़ा है। देहरादून स्थित वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के निदेशक कलाचंद सेन ने कहा, "जोशीमठ में जमीन धंसने के कारण मकानों और सड़कों में दरारों का दिखना नया मामला नहीं है। यह स्थिति सालों से चली आ रही है।" उन्होंने कहा कि आज की स्थिति के पीछे मानवीय और प्राकृतिक, दोनों कारण हैं।

    जोशीमठ की मिट्टी बड़े निर्माण कार्यों के लिए आदर्श नहीं- डोभाल

    सेन ने कहा कि जोशीमठ की नींव को तीन प्रमुख कारक कमजोर कर रहे हैं। पहला शहर भूस्खलन के मलबे पर विकसित है, दूसरा यहां भूकंप का अत्याधिक खतरा है और तीसरा लगातार बहते पानी से कमजोर होती चट्टाने हैं। वहीं ग्लेशियोलॉजिस्ट डीपी डोभाल ने कहा कि यह क्षेत्र कभी ग्लेशियरों से ढंका था। यहां की मिट्टी बड़े निर्माण के लिए आदर्श नहीं है। इसी तरह नियमित भूकंप के झटकों से यहां की ऊपरी मिट्टी अस्थिर हो जाती है।

    स्थानीय लोग NTPC को भी ठहरा रहे जिम्मेदार

    स्थानीय लोगों ने नेशनल थर्मल पावर कॉर्पोरेशन (NTPC) की तपोवन विष्णुगढ़ परियोजना को भी भू-धंसाव के पीछे जिम्मेदार ठहराया है। उनका आरोप है कि इस परियोजना में ब्लास्टिंग की जाती है, जिसके चलते नींव कमजोर होती है। लोगों ने इससे जुड़े कुछ और कारण भी गिनाए हैं। हालांकि, NTPC ने इन आरोपों का खंडन करते हुए कहा कि जोशीमठ शहर के नीचे उसकी कोई सुरंग नहीं है और न ही अब सुरंग बनाने के लिए ब्लास्टिंग की जा रही है।

    यह कारण भी हो सकता है जिम्मेदार

    जोशीमठ की स्थिति के लिए मेन सेंट्रल थ्रस्ट (MCT-2) का दोबारा सक्रिय होना भी जिम्मेदार माना जा रहा है। इसमें भारतीय प्लेट हिमालय के नीचे यूरेशियन प्लेट के नीचे खिसकती है। कोई भी भूवैज्ञानिक यह अनुमान नहीं लगा सकता कि यह स्थिति कब तक रहेगी।

    इस स्थिति का समाधान क्या है?

    सेन ने कहा कि पानी निकासी की व्यवस्था न होने से समस्या और बढ़ गई है। अनियोजित निर्माण पानी के प्राकृतिक बहाव क्षेत्र में बाधा बनता है और इससे पानी को वैकल्पिक मार्ग बनाने पड़ते हैं। उन्होंने कहा कि इस समस्या से बचने के लिए लंबी अवधि की प्रतिक्रिया योजना में एक विस्तृत माइक्रोजोनेशन योजना शामिल होनी चाहिए। इसमें विभिन्न स्थानों पर खतरे वाली जगहों की पहचान कर वहां खतरे वाली गतिविधियों को सख्ती से बंद करना चाहिए।

    अन्य शहरों में भी बन सकती हैं ऐसी परिस्थितियां

    उत्तराखंड के नैनीताल और उत्तरकाशी में भी ऐसी परिस्थितियां बनने की आशंका जताई जा रही है। कुमाऊं यूनिवर्सिटी में भूविज्ञान के प्रोफेसर डॉ बहादुर सिंह कोटलिया ने कहा, "जमीन धंसने की घटना अकेले जोशीमठ में ही नहीं है, नैनीताल और उत्तरकाशी भी इसकी चपेट में हैं।" उन्होंने कहा कि नैनीताल भी अनियंत्रित और अनियोजित निर्माण की अधिकता के साथ पर्यटकों का भारी दबाव झेल रहा है। इस शहर का आधा हिस्सा भूस्खलन से उत्पन्न मलबे पर बसा हुआ है।

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