नैनीताल और उत्तरकाशी में भी बना हुआ है जमीन धंसने का खतरा- विशेषज्ञ
उत्तराखंड में चमोली जिले के जोशीमठ में जमीन धंसने से मकानों में आई दरार को लेकर सरकार ने 600 परिवारों को शिफ्ट करना शुरू कर दिया है। इस बीच विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि जोशीमठ के साथ हिमालय की तलहटी में बसे कई अन्य शहर और कस्बों में भी जमीन धंसने का खतरा बना हुआ है। विशेषज्ञों की इस चेतावनी ने अब सरकार की चिंता को और बढ़ा दिया है। आइए जानते हैं विशेषज्ञों ने और क्या कहा है।
विशेषज्ञों ने क्या दी है चेतावनी?
कुमाऊं यूनिवर्सिटी में भूविज्ञान के प्रोफेसर डॉ बहादुर सिंह कोटलिया ने कहा, "जमीन धंसने की घटना अकेले जोशीमठ में ही नहीं है, नैनीताल और उत्तरकाशी भी इसकी चपेट में हैं।" उन्होंने कहा, "नैनीताल भी अनियंत्रित और अनियोजित निर्माण की अधिकता के साथ पर्यटकों का भारी दबाव झेल रहा है। यह शहर कुमाऊं लघु हिमालय में स्थित है और 2016 की रिपोर्ट बताती है कि शहर का आधा हिस्सा भूस्खलन से उत्पन्न मलबे पर बसा हुआ है।"
नैनीताल और उत्तरकाशी में भी आ सकती है जोशीमठ जैसी स्थिति- कोटलिया
कोटलिया ने कहा, "वर्तमान में जो स्थिति हम जोशीमठ में देख रहे हैं, वह बहुत जल्द नैनीताल, उत्तरकाशी और चंपावत में भी देखने को मिल सकती है। ये क्षेत्र भूकंपीय गतिविधि, भारी आबादी और निर्माण गतिविधियों के बीच स्थिति होने के चलते अतिसंवेदनशील हैं। यह स्थिति इन शहरों की नींव को बहुत कमजोर बना रही है।" उन्होंने कहा, "इन क्षेत्रों की चट्टाने चूना-पत्थर से बनी हैं और उन पर जमा मिट्टी भी उथली हुई है।"
क्या है जोशीमठ में जमीन धंसने का मामला?
चमोली में लगभग 6,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित जोशीमठ में जमीन धंस रही है और इसके कारण करीब 600 घरों में भी दरारें आ गई हैं। इसको देखते हुए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने यहां प्रभावित 600 परिवारों को दूसरी जगह शिफ्ट करने के आदेश दिए हैं। उन्होंने कहा कि नागरिकों का जीवन और सुरक्षा उनके लिए सबसे महत्वपूर्ण है। शनिवार को धामी ने जमीन में धंसते जोशीमठ का स्थलीय निरीक्षण करते हुए प्रभावित परिवारों से मुलाकात की थी।
क्या है जमीन धंसने का प्रमुख कारण?
कोटलिया के अनुसार, जोशीमठ में जमीन धंसने का प्रमुख कारण उसका भूस्खलन के मलबे पर होना, उसका भूकंप के अत्यधिक जोखिम वाले जोन पांच में आना और पानी के लगातार बहाव से चट्टानों को कमजोर होना आदि है। इसी तरह अनियोजित निर्माण, जनसंख्या का दबाव, पर्यटकों की भीड़, पानी के बहाव में बाधा और जल विद्युत परियोजनाएं जैसे मानवजनित कारक भी इसके जिम्मेदार हैं। उन्होंने कहा कि नैनीताल और उत्तरकाशी में भी ऐसे ही हाल हैं।
MCT-2 का दोबारा सक्रिय होना भी है कारण- कोटलिया
कोटलिया ने कहा कि जोशीमठ में अचानक बिगड़ी स्थिति के लिए मेन सेंट्रल थ्रस्ट (MCT-2) का दोबारा सक्रिय होना जिम्मेदार है। यह एक भूवैज्ञानिक दोष है। इसमें भारतीय प्लेट हिमालय के साथ-साथ यूरेशियन प्लेट के नीचे खिसकती है। कोई भी भूवैज्ञानिक यह अनुमान नहीं लगा सकता है कि यह स्थिति कब तक रहेगी। उन्होंने कहा विशेषज्ञ पिछले दो दशकों से सरकार को चेतावनी दे रहे थे, लेकिन किसी ने उस पर गौर नहीं किया। वर्तमान स्थिति उसी का परिणाम है।
वर्तमान स्थिति से बचने का क्या है उपाय?
कोटलिया ने कहा कि कोई भी इंसान MCT-2 के दोबारा सक्रिय होने की घटना को नहीं रोक सकता है। यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया है और किसी भी क्षेत्र के कमजोर क्षेत्रों को नुकसान पहुंचाती रहेगी। ऐसे में केवल कुछ ही विकल्पों के साथ इस स्थिति से बचा जा सकता है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण विकल्प बहुत उच्च तकनीक इंजीनियरिंग का इस्तेमाल कर इस तरह की घटनाओं से बचने का प्रयास किया जाए और मानवीय हस्तक्षेप का कम किया जाए।