उत्तराखंड: इस महिला के लिए वरदान बना लॉकडाउन, 24 साल बाद मिल गया बेटा; जानिए मामला
क्या है खबर?
कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के लिए लागू किया गया लॉकडाउन देश की अर्थव्यवस्था और प्रवासी मजदूरों के लिए अभिशाप बन गया, वहीं उत्तरखंड निवासी एक वृद्ध महिला के लिए यह वरदान साबित हुआ है।
दरअसल, इस महिला का बेटा करीब 24 साल पहले किसी को बताए बिना ही घर छोड़कर चला गया था।
लॉकडाउन में रोजगार खत्म होने और रहने-खाने की जगह नहीं मिलने के कारण वह फिर से अपने घर लौट आया है।
पहचान
ग्रामीणों से पुरानी बातें साझा कर बताई अपनी पहचान
बागेश्वर जिले की कपकोट तहसील के दूरस्थ गांव रमाड़ी के प्रधान गणेश कुमार ने बताया कि वापस लौटा युवक गांव निवासी बचुली देवी (68) का 43 वर्षीय बेटा प्रकाश सिंह कार्की है।
वह गत दिनों अचानक गांव पहुंचा तो उसे किसी ने नहीं पहचाना। इस पर उसने ग्रामीणों से अपने बचपन की बाते साझा की, तो उन्हें याद आ गया।
सूचना पर पहुंची उसकी मां ने उसे पहचान लिया। प्रकाश को वर्तमान में क्वारंटाइन सेंटर में रखा गया है।
निर्णय
परिवार से मिलने के बाद प्रकाश ने किया गांव में ही रहने का निर्णय
प्रधान गणेश कुमार ने बताया कि अपनी मां, दो भाइयों से मिलने के बाद प्रकाश बहुत खुश है। अब उसने फिर से गांव से नहीं जाने का निर्णय किया है। परिवार ने भी उसे अपना लिया है।
हालांकि, प्रकाश को अपने पिता की मौत होने के कारण उनसे नहीं मिल पाने का दुख है।
प्रकाश ने कहा कि 24 साल बाहर रहने से उसे महसूस हो गया कि परिवार से बढ़कर कुछ नहीं है और वह अब बहुत खुश है।
जानकारी
परिवार ने जताया लॉकडाउन का आभार
प्रकाश सिंह के 24 साल बाद अपने घर पहुंचने के बाद उसकी मां और परिवार के अन्य सदस्यों ने लॉकडाउन का आभार जताया है। उन्होंने कहा कि लॉकडाउन के कारण ही उनका बेटा फिर से घर की ओर जाने के लिए मजबूर हुआ है।
बयान
अब फिर से बेटे को अपने से दूर नहीं जाने दूंगी- बचुली
सालों बाद अपने बेटे से मिलकर खुशी से झूम रही बचुली देवी ने कहा कि जब बेटा छोड़कर चला गया तो बहुत दुख हुआ था। जाने के बाद वह अपनी मां को भी भूल गया। अब वह किसी भी कीमत पर उसे अपने से दूर नहीं जाने देगी।वह यहीं मेहनत-मजदूरी कर परिवार के साथ रहेगा।
ग्राम प्रधान ने कहा कि उसका मनरेगा जॉब कार्ड बनाया जाएगा। उसे अन्य सरकारी योजनाओं का लाभ भी दिलाया जाएगा।
शुरुआत
प्रकाश ने साल 1995 में छोड़ दिया था घर
प्रकाश ने साल 1995 में उसने इंटर कॉलेज शामा से इंटरमीडिएट की परीक्षा पास की थीं।
उसके एक साल बाद वह नौकरी की तलाश में बिना किसी को बताए घर से भागकर दिल्ली चला गया था। जहां कुछ समय तक मेहनत मजदूरी कर पेट पाला।
इसके बाद मुंबई में कई कंपनियों में नौकरी की। वहां से हिमाचल गया और संतरे व सेब की बागवानी सीखी।
इसके बाद वह गुजरात चला गया। वर्तमान में वह इलेक्ट्रीशियन का काम कर रहा था।
जानकारी
कोरोना महामारी के कारण आई घरवालों की याद
प्रकाश ने बताया कि पिछले 24 सालों में उसे कभी भी घरवालों की याद नहीं आई थी, लेकिन देश में कोरोना वायरस महामारी फैलने के बाद उसे घर की याद आ गई। तभी उसने निश्चय कर लिया कि घर वापस जाएगा।
दूसरा मामला
पहले भी सामने आया आइए ही मामला
लॉकडाउन में सालों बाद घर पहुंचने का यह अकेला मामला नहीं है।
गत दिनों उत्तरकाशी जिले के जेस्तवाड़ी गांव निवासी सूरत सिंह चौहान (80) करीब साठ साल बाद अपने घर पहुंचा तो उसकी पत्नी और बच्चों ने उसे अपनाने से इनकार कर दिया।
चौहान 18 साल की उम्र में 16 वर्षीय बुगना और दो बच्चे त्रेपन और कल्याण को बेसहारा छोड़ चले गए थे। वर्तमान में उसकी पत्नी की उम्र 78 तथा बेटों की उम्र 63 और 61 साल है।
परवाह
पत्नी और बच्चों ने लगाया परिवार की परवाह नहीं करने का आरोप
सूरत सिंह की पत्नी बुगना ने बताया कि उन्हें अपने परिवार की कभी कोई परवाह नहीं की। वर्तमान में तो उन्हें सूरत सिंह का चेहरा तक याद नहीं है।
ऐसे इंसान को घर ले जाने का कोई मतलब नहीं है। उसके घर छोडऩे के बीस साल बाद किसी ने बताया था कि उसे हिमाचल के सोलन में देखा था।
परिवार के सदस्य लगातार उससे संपर्क घर लौटने का अनुरोध करते रहे, लेकिन उसने इन बातों पर ध्यान नहीं दिया।