दिल्ली: आचार संहिता के उल्लंघन की 12 हजार शिकायतें, 11 हजार 100 मिनट में सुलझाई गईं
दिल्ली में विधानसभा चुनावों के प्रचार के दौरान चुनाव आयोग को आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन की 12,000 से ज्यादा शिकायतें मिलीं। cVigil ऐप पर मिली इन शिकायतों में से लगभग 11,000 का निपटारा 100 मिनट के भीतर कर दिया गया। इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, नॉर्थ वेस्ट और साउथ वेस्ट डिस्ट्रिक्ट को छोड़कर बाकी जिलों के 90 प्रतिशत मामले 100 मिनट के भीतर सुलझा लिए गए। सेंट्रल डिस्ट्रिक्ट में ये संख्या 99 प्रतिशत और साउथ वेस्ट में 87 प्रतिशत रही।
दिल्ली में 6 जनवरी से लागू हुई आचार संहिता
6 जनवरी को चुनाव आयोग ने दिल्ली विधानसभा चुनावों की घोषणा की थी। उसी दिन से यहां आदर्श आचार संहिता लागू हो गई थी। 8 फरवरी को दिल्ली की 70 सीटों पर वोट डाले जा रहे हैं और 11 फरवरी को नतीजे घोषित होंगे।
2018 में लॉन्च की गई थी cVigil ऐप
चुनाव आयोग ने 2018 में cVigil ऐप लॉन्च की थी ताकि शिकायतों के मिलने और उनके समाधान की प्रक्रिया में तेजी लाई जा सके। एक अधिकारी ने बताया, "इसका मकसद नागरिकों को चुनावी प्रक्रिया में शामिल करना था। ऐप डाउनलोड करने के बाद अगर किसी यूजर को लगता कि किसी भड़काऊ भाषण, बैनर या किसी होर्डिंग से कहीं आचार संहिता का उल्लंघन हो रहा है तो वह इसकी फोटो या वीडियो अपलोड कर सकता है।"
100 मिनट में पूरी होती है शिकायत पर कार्रवाई की प्रक्रिया
अधिकारी ने बताया कि जब शिकायतें दर्ज कराई जाती है तो यह जिला निर्वाचन अधिकारी (DEO) के पास जाती है। DEO इस पर कार्रवाई करने या नहीं करने का फैसला लेता है और फिर उसे विधानसभा की फ्लाइंग स्क्वॉड टीम को भेजी जाती है। यह टीम मौके पर जाकर जांच करती है। यह पूरी प्रक्रिया पूरा होने में लगभग 100 मिनट लगते हैं। अगर कोई शिकायत गलत पाई जाती है तो इसे रद्द कर दिया जाता है।
सबसे ज्यादा शिकायतें कहां से आईँ?
रिपोर्ट के मुताबिक, चुनाव आयोग को सबसे ज्यादा शिकायतें सेंट्रल डिस्ट्रिक्ट से मिलीं। यहां से कुल 3,483 शिकायतें दर्ज कराई गईं, जिनमें से 3,464 को महज 100 मिनट में सुलझा दिया गया। वहीं साउथ डिस्ट्रिक्ट से सबसे कम 117 शिकायतें मिली।
क्या होती है आचार संहिता?
चुनाव आयोग ने निष्पक्ष और स्वतंत्र चुनाव कराने के लिए कुछ नियम बनाए हैं, इन्हें नियमों को आचार संहिता कहा जाता है। सरकारी कर्मचारी, राजनेता, राजनीतिक दलों से जुड़े लोग और मतदाता आचार संहिता के दायरे में आते हैं। यानी चुनावी प्रक्रिया में भाग लेने वाला हर व्यक्ति आचार संहिता के तहत आता है। निगाह रखने के लिए चुनाव आयोग पर्यवेक्षक नियुक्त करता है। अगर इन्हें कहीं गड़बड़ी मिलती है तो वे चुनाव आयोग को शिकायत करते हैं।
कब से हुई आचार संहिता की शुरुआत?
पहली बार आचार संहिता का इस्तेमाल 1960 में केरल विधानसभा चुनावों के दौरान किया गया था। तब कुछ नियम बनाकर पार्टियों को बताया गया था कि वे चुनाव की घोषणा होने के बाद क्या कर सकती हैं और क्या नहीं।