RTI में खुलासा, अनुच्छेद 370 पर फैसले के बाद जम्मू-कश्मीर में बढ़ीं पत्थरबाजी की घटनाएं
क्या है खबर?
जम्मू-कश्मीर में 2018 और 2017 के मुकाबले 2019 में पत्थरबाजी की घटनाओं में वृद्धि देखने को मिली और नवंबर तक पत्थरबाजी की कुल 1,996 घटनाएं सामने आईं।
इनमें से 1,193 घटनाएं 5 अगस्त को केंद्र सरकार के जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म करने और राज्य को दो हिस्सों में बांटने के फैसले के बाद हुईं।
सामाजिक कार्यकर्ता रोहित चौधरी की सूचना के अधिकार (RTI) के जवाब में गृह मंत्रालय ने जानकारी दी है।
आंकड़े
अनुच्छेद 370 पर फैसले के बाद पत्थरबाजी में इजाफा
RTI के जवाब में प्राप्त हुए आंकड़ों के अनुसार, 5 अगस्त को जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म होने के बाद पत्थरबाजी की घटनाओं में जबरदस्त इजाफा हुआ।
जुलाई 2019 में जहां पत्थरबाजी की मात्र 26 घटनाएं हुईं वहीं अगस्त में ये संख्या बढ़कर 658 हो गई। अगस्त के बाद मई में पत्थरबाजी की सबसे अधिक 257 घटनाएं हुईं।
सितंबर में 248, अप्रैल में 224, अक्टूबर में 203, फरवरी में 103 और नवंबर में 84 बार पत्थरबाजी हुई।
पत्थरबाजी
2016 में हुईं थीं पत्थरबाजी की सबसे अधिक घटनाएं
2019 में नवंबर तक पत्थरबाजी की 1,996 घटनाओं के मुकाबले 2018 में 1,458 और 2017 में 1,412 घटनाएं हुईं।
हालांकि इस मामले में 2019 साल 2016 से पीछे रहा। 2016 में पत्थरबाजी की 2,653 घटनाएं हुईं जो हालिया समय में सबसे अधिक है।
आतंकी संगठन हिजबुल मुजाहिदीन के कमांडर बुरहान वानी के एनकाउंटर के बाद कश्मीर में हुए हिंसक प्रदर्शनों के कारण पत्थरबाजी की घटनाओं में ये इजाफा देखने को मिला था।
आंतकी घटनाएं
2019 में जम्मू-कश्मीर में 591 आतंकी घटनाएं
इसी RTI के जवाब में गृह मंत्रालय ने ये भी बताया है कि 2019 में जनवरी से लेकर नवंबर के बीच जम्मू-कश्मीर में आतंक की 591 घटनाएं हुईं।
सितंबर में आतंक की सबसे अधिक 152 घटनाएं हुईं। अक्टूबर में 97 और नवंबर में 10 ऐसी घटनाएं हुईं। इससे पहले अगस्त में जम्मू-कश्मीर में 50 आतंकी घटनाएं हुईं।
गौरतलब है कि केंद्र सरकार लगातार अनुच्छेद 370 पर फैसले के बाद कश्मीर में आतंकवाद की कमी की बात कह रही है।
अनुच्छेद 370
अनुच्छेद 370 पर क्या था केंद्र सरकार का फैसला?
बता दें कि मोदी सरकार ने 5 अगस्त को राष्ट्रपति के एक आदेश के जरिए अनुच्छेद 370 में बदलाव करते हुए जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म कर दिया था।
इसके अलावा राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख, में बांटने को फैसला भी लिया गया था जो 31 अक्टूबर को लागू हो गया।
इन फैसलों के विरोध को देखते हुए राज्य में कई तरह की पाबंदियां लगाई गईं थीं जिन्हें बाद में धीरे-धीरे हटा लिया गया।
सवाल
कश्मीर में सब शांत होने के सरकार के दावों पर उठ रहे सवाल
पिछले हफ्ते गृह मंत्री अमित शाह ने एक इंटरव्यू में कहा था कि जम्मू-कश्मीर में स्थिति पूरी तरह से काबू में है और सामान्य गतिविधियां जारी हैं।
इससे पहले जम्मू-कश्मीर पुलिस प्रमुख दिलबाग सिंह भी कह चुके हैं कि प्रशासन के अनुकरणीय प्रयासों के कारण 2019 में हिंसा 2016 के मुकाबले आठ प्रतिशत कम हुई।
हालांकि कश्मीर में अभी भी इंटरनेट बंद होने और कश्मीरी नेताओं की हिरासत जारी रहने के कारण इन दावों पर सवाल भी उठ रहे हैं।