अयोध्या विवाद: SC ने मांगे जमीन पर अधिकार के सबूत, निर्मोही अखाड़ा बोला- चोरी हो गए
अयोध्या जमीन विवाद में रोजाना सुनवाई के दूसरे दिन आज सुप्रीम कोर्ट ने निर्मोही अखाड़ा से राम जन्मभूमि की जमीन से संबंधित कागजात मांगे। इस पर निर्मोही अखाड़ा ने कहा कि उनके पास जमीन पर अपना अधिकार साबित करने के लिए असली कागजात नहीं है और 1982 में हुई एक डकैती में वो चोरी हो गए थे। बता दें कि विवादित जमीन पर निर्मोही अखाड़े का भी दावा है और वह मामले में एक पक्ष है।
सुप्रीम कोर्ट ने मांगे असली कागजात
मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली बेंच ने आज लगातार दूसरे दिन मामले पर सुनवाई करते हुए निर्मोही अखाड़ा से असली कागजात मांगे। सुप्रीम कोर्ट ने निर्मोही अखाड़ा से पूछा, "क्या आपके पास जमीन जब्त होने से पहले राम जन्मभूमि की जमीन पर कब्जे का कोई मौखिक या दस्तावेजी प्रमाण और राजस्व रिकॉर्ड है?" इसके जवाब में निर्मोही अखाड़ा ने बताया कि 1982 में एक डकैती हुई और सारे दस्तावेज खो गए।
डकैती में खो गए जमीन पर अधिकार के सबूत- निर्मोही अखाड़ा
कोर्ट ने 2 घंटे के अंदर सबूत देने को कहा
समाचार एजेंसी ANI के अनुसार, इसके बाद मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने निर्मोही अखाड़ा के वकील सुशील कुमार जैन से अगले दो घंटे में मौखिक और दस्तावेजी प्रमाण पेश करने को कहा। वहीं, न्यायाधीश धनंजय चंद्रचूड़ ने उन्हें वास्तविक दस्तावेज दिखाने को कहा। इसके जवाब में निर्मोही अखाड़ा के वकील जैन ने कहा कि इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश में दस्तावेजों का हवाला दिया गया है। मामले पर सुनवाई जारी है।
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 2010 में सुनाया था फैसला
बता दें कि 2010 में इलाहाबाद हाई कोर्ट की तीन सदस्यीय बेंच ने अयोध्या की विवादित जमीन 2.7 एकड़ जमीन को 3 बराबर हिस्सों में बांटने का आदेश दिया था। 2-1 के बहुमत से सुनाए गए इस फैसले में जमीन को सुन्नी वक्फ बोर्ड (मुस्लिम पक्ष), राम लला (हिंदू पक्ष) और निर्मोही अखाड़ा में बराबर-बराबर बांटा था। इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी और सुप्रीम कोर्ट तब से इस पर सुनवाई कर रहा है।
मध्यस्थता की कोशिश रही नाकाम
मामले पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इसी साल 8 मार्च को अयोध्या विवाद को मध्यस्थता के जरिए सुलझाने का सुझाव देते हुए तीन सदस्यीय मध्यस्थता समिति बनाई थी। पूर्व न्यायाधीश फकीर मोहम्मद इब्राहिम खलीफुल्ला की अध्यक्षता वाली इस समिति में 'आर्ट ऑफ लिविंग' के संस्थापक श्री श्री रविशंकर और वरिष्ठ वकील श्रीराम पंचू शामिल थे। हालांकि मध्यस्थता असफल रही, जिसके बाद कोर्ट ने 6 अगस्त से मामले पर रोजाना सुनवाई का फैसला लिया था।