वैक्सीनेशन अभियान: कैसे केरल कम खुराकों से ज्यादा लोगों को वैक्सीनेट करने में कामयाब रहा?
बीती 1 मई को केंद्र सरकार की तरफ से जारी आंकड़ों से पता चला कि आंध्र प्रदेश और केरल ही केवल ऐसे राज्य हैं, जिन्होंने प्राप्त हुईं वैक्सीन की खुराकों से ज्यादा खुराकें इस्तेमाल की हैं। ताजा आंकड़ों के अनुसार, केरल अभी तक 75,94,821 खुराकें लगा चुका है और यहां एक भी खुराक बर्बाद नहीं हुई है। आइये, जानते हैं कि ऐसा कैसा हुआ और इसके लिए किन स्तरों पर प्रयास किए गए थे।
मुख्यमंत्री ने की नर्सों की तारीफ
मंगलवार को मुख्यमंत्री पिनरई विजयन ने ट्वीट कर बताया कि केरल को भारत सरकार से वैक्सीन की 73,38,806 खुराकें मिली थी और राज्य सरकार ने इनसे 74,26,164 खुराकें लगा दी हैं। इस काम के लिए उन्होंने स्वास्थ्यकर्मियों और खासकर नर्सों की विशेष सराहना की।
कम खुराकों से अधिक लोगों को कैसे वैक्सीनेट किया गया?
आमतौर पर वैक्सीन की बर्बादी तीन स्तरों पर होती है। पहला स्तर परिवहन, दूसरा स्तर भंडारण और तीसरा स्तर वैक्सीनेशन के दौरान का समय होता है। केरल ने इन स्तरों पर बर्बादी रोकने के लिए कड़े प्रोटोकॉल लागू किए हैं। इसके अलावा देश में वैक्सीनेशन अभियान शुरू होने से पहले यहां इसमें शामिल स्वास्थ्यकर्मियों का प्रशिक्षण शुरू हो गया था। इस कामयाबी के लिए इतना ही श्रेय यहां के लोगों को जाता है, जिन्होंने वैक्सीन लगवाने में देरी नहीं की।
एक शीशी के पीछे कैसे होता है बर्बादी का हिसाब?
वैक्सीन की हर शीशी में 10 खुराकें होती हैं। यानी एक शीशी वैक्सीन से 10 लोगों को वैक्सीन लगाई जा सकती है, लेकिन कुशल और प्रशिक्षित नर्स इससे 11-12 लोगों को वैक्सीनेट कर सकती है। आमतौर पर माना जाता है कि एक शीशी से एक खुराक बर्बाद होगी और केवल 8-9 लोगों को वैक्सीनेट किया जा सकता है, लेकिन केरल ने इस एक-एक खुराक की बर्बादी को रोकने में कामयाबी हासिल की है।
नर्सों के प्रशिक्षण पर दिया गया खास ध्यान
TOI के अनुसार, कोल्लम के सरकारी अस्पताल में काम करने वाली नर्स लिशा एल ने कहा, "हमें इस तरह प्रशिक्षित किया गया है कि हम एक खुराक के लिए शीशी से सीरिंज में बिना हवा के 0.5 ml की सही खुराक लें। हम वैक्सीनेशन की शुुरुआत से ही इसमें जुड़े हैं। अनुभव और सीरिंज की गुणवत्ता से भी मदद मिली है।" इसके साथ-साथ केरल ने यह भी सुनिश्चित किया कि वैक्सीन के लाभार्थी तय समय पर वैक्सीनेशन केंद्र पहुंचे।
तय समय पर वैक्सीनेशन केंद्र पहुंचे लोग
वैक्सीनेशन के लिए लोगों का समय पर पहुंचना इसलिए जरूरी है क्योंकि एक बार खुलने के 4 घंटों के भीतर शीशी को पूरा इस्तेमाल किया जाना जरूरी है। अगर ऐसा नहीं होता है तो इसमें बची वैक्सीन बर्बाद हो जाती है। इस समस्या से निपटने के लिए केरल ने तय किया वैक्सीनेशन केंद्र पर 10 लाभार्थियों की मौजूदगी के बाद ही वैक्सीन की नई शीशी खोली जाएगी। इससे वैक्सीन को बर्बाद होने से बचाने में मदद मिली।
वैक्सीन वितरण पर दिया गया विशेष ध्यान
वैक्सीनेशन अभियान की शुरुआत में जब कोविन प्लेटफॉर्म में कुछ खामियां आई थीं, तब स्वास्थ्यकर्मियों ने खुद लाभार्थियों के संपर्क कर उन्हें वैक्सीन लगवाने के लिए बुलाया था। इसके अलावा वैक्सीनेशन केंद्रों पर भी रजिस्ट्रेशन को प्रोत्साहन दिया गया ताकि लोग तुरंत वैक्सीन लगवा सके। कोविड नोडल अधिकारी एमएम हनीश ने बताया कि राज्य को वैक्सीन मिलते ही उन्हें रीजनल वैक्सीन स्टोर में भेज दिया जाता है। फिर जरूरत के हिसाब से वैक्सीनेशन केंद्रों पर खुराकें भेजी जाती हैं।
बर्बादी को ध्यान में रखकर तैयार की गई रणनीति
एर्नाकुलम जिले में वैक्सीनेशन के नोडल अधिकारी डॉ एमजी शिवादास ने कहा, "हमारे पास अनुभवी नर्सें तो हैं ही, इसके अलावा लोग भी वैक्सीन लगवाने को तैयार रहते हैं। इस कारण हमें वैक्सीन बर्बाद होने की चिंता नहीं रहती।" एक और विशेषज्ञ ने बताया कि वैक्सीनेशन शुरू होने से पहले ही इस दिशा में सोच लिया गया था और उसी हिसाब से रणनीति तैयार की गई। केरल अपने संसाधनों को बर्बाद नहीं करता है।