कोरोना वायरस: कॉन्टेक्ट ट्रेसिंग और टेस्टिंग को लेकर कैसे काम कर रहे हैं राज्य?
बीते कुछ दिनों से देश में कोरोना संक्रमण की रफ्तार धीमी हुई है। रोजाना मिलने वाले मरीजों की संख्या भी घटकर 30,000-40,000 के बीच आ गई है। कुछ दिन पहले जब कोरोना के मामले तेजी से बढ़ रहे थे, तब टेस्टिंग और कॉन्टेक्ट ट्रेसिंग में तेजी लाने की बात कही जा रही थी। इसके बाद कुछ राज्यों में सुधार हुआ है, लेकिन इनको लेकर जारी अलग-अलग रणनीतियां महामारी के खिलाफ लड़ाई पर असर डाल रही हैं।
देश में टेस्टिंग को लेकर क्या रणनीति है?
भारत में कोरोना वायरस की जांच के लिए बड़ी संख्या मं RT-PCR टेस्ट हो रहे हैं, लेकिन विशेषज्ञ इनकी संख्या को बढ़ाने की जरूरत बताते हैं। फिलहाल देश में होने वाले कुल टेस्ट में RT-PCR की संख्या 60 फीसदी होती है, लेकिन कई राज्य संक्रमण की जांच के लिए रैपिड एंटीजन टेस्ट (RAT) पर ज्यादा भरोसा दिखा रहे हैं। RAT से जांच तेजी से होती है, लेकिन इसके नतीजे RT-PCR की तुलना में कम भरोसेमंद होते हैं।
क्या देश में एक समान टेस्टिंग हो रही है?
इस सवाल का जवाब नहीं है। देश में महाराष्ट्र सर्वाधिक प्रभावित राज्य है। यहां देश के कुल मामलों में से 17 प्रतिशत मामले हैं। इसके बाद कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और केरल आदि का नंबर आता है। कुल मामलों की संख्या के लिहाज से उत्तर प्रदेश और बिहार ज्यादा आबादी के बावजूद बेहतर प्रदर्शन करते नजर आते हैं। यहां देश के क्रमश: 2.9 प्रतिशत और 1.6 प्रतिशत मामले हैं। हालांकि, इसके पीछे टेस्टिंग का तरीका भी देखने की जरूरत है।
उत्तर प्रदेश और बिहार में 50 प्रतिशत से अधिक RAT
बीबीसी के अनुसार, उत्तर प्रदेश और बिहार समेत कुछ राज्य 50 प्रतिशत से अधिक रैपिड एंटीजन टेस्ट कर रहे हैं। इसका मतलब है कि कई संक्रमितों की पहचान नहीं हो पा रही है। इसकी तुलना में महाराष्ट्र में लगभग 60 प्रतिशत RT-PCR टेस्ट होते हैं। हालांकि, अब सरकार राजधानी मुंबई में RAT की संख्या लगातार बढ़ा रही है। वहीं तमिलनाडु में 100 प्रतिशत RT-PCR टेस्ट हुए हैं, जो संक्रमण के विस्तार की ज्यादा साफ तस्वीर पेश करते हैं।
ज्यादा संक्रमण वाले इलाकों में हो रहे कम टेस्ट
बतौर रिपोर्ट राज्य घनी आबादी वाले उन इलाकों में पर्याप्त टेस्ट नहीं कर रहे हैं, जहां संंक्रमण ज्यादा फैला हुआ है। 30 नवंबर तक के आंकड़ों से पता चलता है कि राजधानी लखनऊ में उत्तर प्रदेश के 13 प्रतिशत मामले हैं, लेकिन यहां राज्य के कुल टेस्ट में से 6 प्रतिशत से भी कम टेस्ट हुए हैं। ऐसा ही हाल कानपुर जिले का है। यहां दूसरा सर्वाधिक प्रभावित जिला है, लेकिन यहां 3 प्रतिशत टेस्ट भी नहीं हुए हैं।
कम टेस्ट होने से संक्रमितों के छूटने का डर
ऐसा सिर्फ उत्तर प्रदेश में ही नहीं हो रहा। बिहार की राजधानी पटना में राज्य के 18 प्रतिशत संक्रमित हैं, लेकिन यहां राज्य के 3 प्रतिशत टेस्ट भी नहीं हुए हैं। इस बारे में बताते हुए जन स्वास्थ्य विशेषज्ञ रिजो जॉन ने कहा कि अगर ज्यादा संक्रमण वाली जगहों पर कम टेस्ट हो रहे हैं तो वहां कम मामले सामने आएंगे। वो कहते हैं कि ऐसे स्थिति में आंकड़ों की अहमियत कम हो जाती है।
सर्विलांस को लेकर भी अलग-अलग रणनीति
सरकार की तरफ से जारी गाइडलाइंस के अनुसार, राज्यों को किसी व्यक्ति के संक्रमित पाए जाने के 72 घंटों के भीतर उसके कम से कम 80 प्रतिशत कॉन्टैक्ट ट्रेस कर लिए जाने चाहिए, लेकिन ये निर्देश जमीन पर लागू नहीं हो रहा है। संसदीय समिति ने कहा था कि कमजोर ट्रेसिंग और कम टेस्टिंग भारत में तेजी से बढ़ते मामलों की एक वजह हो सकती है। वहीं सर्विलांस को लेकर राज्यों की तरफ से ठोस जानकारी का भी अभाव है।
सर्विलांस को लेकर कई राज्यों के आंकड़े मौजूद नहीं
एक तरफ कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने उत्तर प्रदेश को सराहा था तो दूसरी तरफ कर्नाटक में सितंबर के बाद से लगातार कॉन्टेक्ट ट्रेसिंग कम हो रही है। वहीं कई राज्यों ने इसके आंकड़े जारी नहीं किए हैं।
देश में महामारी की क्या स्थिति?
भारत में कोरोना संक्रमितों की संख्या 96 लाख की तरफ बढ़ रही है। देश में बीते दिन कोरोना के 36,594 नए मामले सामने आए और 540 मरीजों ने इसकी वजह से दम तोड़ा। इसी के साथ देश में कुल संक्रमितों की संख्या 95,71,559 हो गई है, वहीं 1,39,188 लोगों को इस खतरनाक वायरस के संक्रमण के कारण अपनी जान गंवानी पड़ी है। सक्रिय मामलों की संख्या घटकर 4,16,082 हो गई है। कई दिनों से सक्रिय मामले लगातार घट रहे हैं।