कोरोना वायरस के विभिन्न वेरिएंटों के खिलाफ कितनी प्रभावी है दुनिया में काम आ रही वैक्सीन?
कोरोना महामारी के खिलाफ दुनियाभर में वैक्सीनेशन शुरू होने के बाद अब मामलों में गिरावट आने लगी है। वैक्सीनों ने कोरोना से होने वाली मौतों की दर को काफी कम कर दिया है और यह दुनिया के लिए बड़ी जीत है। हालांकि, कोरोना वायरस के म्यूटेशन से अब नए वेरिएंट सामने आने लगे हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि हम वैक्सीन लेने के बाद कितने सुरक्षित हैं। यहां जानते हैं कि विभिन्न वेरिएंटों के खिलाफ कितनी प्रभावी है वैक्सीन।
दुनिभयार में संक्रमण की चपेट में आ चुके हैं 18.30 करोड़ लोग
जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी के मुताबिक, दुनियाभर में अब तक लगभग 18.30 करोड़ लोग कोरोना वायरस से संक्रमित हो चुके हैं, वहीं 39.63 लाख लोगों की मौत हुई है। सर्वाधिक प्रभावित अमेरिका में 3.37 करोड़ लोग संक्रमित हो चुके हैं और 6.05 लाख लोगों की मौत हुई है। इभी तरह 3.05 करोड़ संक्रमित और 4,01,050 मौतों के साथ भारत दूसरा सबसे प्रभावित देश हैं। दुनियाभर में अब तक 3.15 अरब लोगों को वैक्सीन लगाई जा चुकी है।
कोरोना के विभिन्न वेरिएंटों के खिलाफ कितनी प्रभावी है फाइजर-बायोएनटेक की वैक्सीन?
फाइजर-बायोएनटेक की वैक्सीन 11 दिसंबर, 2020 को अमेरिका के FDA से आपात इस्तेमाल की अनुमति हासिल करने वाली पहली वैक्सीन बनी थी। मई की शुरुआत में सामने आए दो अध्ययनों के अनुसार वैक्सीन को दोनों खुराक लेने के बाद यूनाइटेड किंगम में पहली बार मिले 'अल्फा' और दक्षिण अफ्रीका में मिले 'बीटा' वेरिएंट के खिलाफ गंभीर बीमार होने या मृत्यु के खतरे को 95 प्रतिशत कम करने वाली पाया गया था।
डेल्टा वेरिएंट के खिलाफ यह रही थी वैक्सीन की प्रभाविकता
भारत में मिले डेल्टा वेरिएंट को लेकर पब्लिक हेल्थ इंग्लैंड द्वारा किए गए दो अध्ययनों में सामने आया था कि वैक्सीन की दोनों खुराक लेने के बाद कोरोना संक्रमित होने का खतरा 88 प्रतिशत और अस्पताल में भर्ती होने का खतरा 96 प्रतिशत कम था।
कोरोना संक्रमण से बचाने में 94.1 प्रतिशत प्रभावी पाई गई मॉडर्ना की वैक्सीन
फाइजर की तरह मॉडर्ना की mRNA तकनीक पर आधारित वैक्सीन अमेरिका के FDA से आपात इस्तेमाल की अनुमति हासिल करने वाली दूसरी वैक्सीन थी। क्लिनिकल ट्रायल में यह वैक्सीन कोरोना संक्रमण से बचाने में 94.1 प्रतिशत प्रभावी मिली थी, लेकिन 65 साल से अधिक उम्र के लोगों में यह 86 प्रतिशत ही प्रभावी मिली थी। इसी तरह कुछ अध्ययनों में कहा गया है कि यह वैक्सीन अल्फा और बीटा वेरिएंट के खिलाफ भी सुरक्षा प्रदान करती है।
बीटा वेरिएंट के खिलाफ 82 प्रतिशत प्रभावी है जॉनसन एंड जॉनसन की वैक्सीन
अमेरिकी फार्मा कंपनी जॉनसन एंड जॉनसन (J&J) द्वारा विकसित वैक्सीन जेनसेन को 27 फरवरी, 2021 को FDA ने आपात इस्तेमाल की मंजूरी दी थी। यह एकल खुराक वैक्सीन है और इसे स्टोर करना आसान है। अमेरिका में यह गंभीर संक्रमण के खिलाफ 86 और सामान्य के खिलाफ 72 प्रतिशत प्रभावी मिली है। इसी तरह फरवरी FDA द्वारा जारी किए गए विश्लेषण में यह बीटा वेरिएंट के गंभीर मामलों में 82 और सामान्य मामलों में 64 प्रतिशत प्रभावी मिली थी।
डेल्टा के खिलाफ भी प्रभावी रही है वैक्सीन
कंपनी के वैक्सीन प्रमुख योहान वान हूफ ने कहा कि वैक्सीन भारत में मिले डेल्टा वेरिएंट के खिलाफ भी प्रभावी है। यह वैक्सीन खुराक लेने के 29 दिन बाद डेल्टा वेरिएंट को निष्क्रिय करती है और फिर एंटीबॉडीज की सुरक्षा और मजबूत होती है।
संक्रमण के गंभीर मामलों में 100 प्रतिशत प्रभावी है एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन
जॉनसन एंड जॉनसन वैक्सीन की तरह यह भी एक कैरियर वैक्सीन है। इसे हानिरहित एडेनोवायरस के संशोधित संस्करण से बनाया गया है। एस्ट्राजेनेका ने मार्च में अपने तीसरे चरण के क्लिनकल ट्रायल का डाटा शेयर किया था। जिसमें कहा गया था कि वैक्सीन की दोनों खुराक लेने के 15 दिन बाद संक्रमण का खतरा 76 प्रतिशत कम रहता है और गंभीर मामलों में 100 प्रतिशत प्रभावी है। 65+ लोगों में यह 85 प्रतिशत प्रभावी रही है।
खतरनाक वेरिएंट के खिलाफ 93 प्रतिशत प्रभावी है नोवावैक्स की वैक्सीन
नोवावैक्स द्वारा तैयार वैक्सीन कोरोना वायरस के अल्फा और बीटा वेरिएंट के अलावा अन्य वेरिएंटों के खिलाफ भी प्रभावी मिली है। कंपनी के अनुसार वैक्सीन 65 साल से अधिक उम्र के लोगों के लिए 91 प्रतिशत प्रभावी रही है। इसी तरह यह वैक्सीन लेने के बाद वायरस के सभी खतरनाक वेरिएंटों के खिलाफ 93 प्रतिशत और अन्य वेरिएंटों के खिलाफ 100 प्रतिशत तक प्रभावी है। इससे अस्पताल में भर्ती होने और मौत का खतरा भी कम रहता है।
कोरोना संक्रमण के खिलाफ 82 प्रतिशत प्रभावी है 'कोविशील्ड'
इस वैक्सीन को ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और एस्ट्राजेनेका ने मिलकर विकसित किया है। भारत में इसका उत्पादन पुणे स्थित सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (SII) द्वारा किया जा रहा है। एस्ट्राजेनेका के अनुसार तीसरे चरण के क्लिनिकल ट्रायल में वैक्सीन संक्रमण से 76 प्रतिशत तक सुरक्षा प्रदान करती है। इसी तरह दूसरी खुराक 12 सप्ताह या उससे अधिक अंतराल पर लेने पर यह 82 प्रतिशत प्रभावी रहती है। अन्य वेरिएंटों के खिलाफ भी इसे प्रभावी बताया जा रहा है।
91.6 प्रतिशत प्रभावी रही है रूस की 'स्पूतनिक-V'
इस वैक्सीन को रूसी प्रत्यक्ष निवेश कोष (RDIF) के साथ साझेदारी में मॉस्को की गामालेया नेशनल रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ एपिडेमियोलॉजी एंड माइक्रोबायोलॉजी द्वारा विकसित किया गया है। भारत में हैदराबाद स्थित डॉ रेड्डीज लैबोरेटरीज द्वारा इसका उत्पादन किया जा रहा है। द लैंसेट में प्रकाशित परिणामों के अनुसार, तीसरे चरण के क्लिनिकल ट्रायल में यह वैक्सीन 91.6 प्रतिशत प्रभावी पाई गई है। अन्य वेरिएंटों पर इसके प्रभाव की समीक्षा जारी है।
डेल्टा वेरिएंट के खिलाफ 65.2 प्रतिशत प्रभावी रही है 'कोवैक्सीन'
भारत बायोटेक द्वारा भारत की पहली स्वदेशी वैक्सीन 'कोवैक्सिन' को कोरोना संक्रमण के खिलाफ 77.8 प्रतिशत प्रभावी पाया गया है। इसी तरह भारत में मिले डेल्टा वेरिएंट के खिलाफ यह 65.2 प्रतिशत प्रभावी है। कंपनी ने शनिवार को कहा कि तीसरे चरण के क्लिनिकल डाटा के अध्ययन के आधार पर यह वैक्सीन सामान्य संक्रमण के खिलाफ 93.4 प्रतिशत प्रभावी रही है। इसके अलावा इसको लेने के बाद दुष्परिणाम का प्रतिशत भी 0.05 से कम है।
डेल्टा वेरिएंट के खिलाफ प्रभावी बताई जा रही सिनोफार्म वैक्सीन
डेल्टा संस्करण के खिलाफ सुरक्षा के बारे में बढ़ती चिंताओं के बीच चीन से लेकर इंडोनेशिया और ब्राजील तक कई देश अपने लोगों को कोरोना वैक्सनी लगाने के लिए चीन में तैयार वैक्सीन पर निर्भर है। हालांकि, इसको लेकर अभी तक कोई तथ्यात्मक डाटा सामने नहीं आया है। इसी बीच शोधकर्ताओं ने पाया कि चीनी वैक्सीन डेल्टा वेरिएंट कारण होने वाले सामान्य और गंभीर लक्षणों से सुरक्षा देने में कुछ हद तक मददगार है।