सर्दियों के साथ बढ़ रहे पराली जलाने के मामले; आखिर क्या है इसका समाधान?
पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में किसानों ने पराली जलाना शुरू कर दिया है। इससे राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली और NCR क्षेत्र में वायु प्रदूषण बढ़ रहा है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने गत शुक्रवार को पराली जलाने को रोकने के लिए सेवानिवृत्त न्यायाधीश मदन बी लोकुर के नेतृत्व में एक निगरानी समिति का गठन किया है। यह समिति एक सप्ताह में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी। ऐसे में आइए पराली जलाने के नुकसान और संभावित स्थाई समाधानों के बारे में जानें।
क्या होती है पराली?
खेतों में धान (चावल) की फलस काटे जाने के बाद बचने वाले अवशेष को पराली कहते हैं। पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा धान की फसल होती है। ऐसे में गेहूं की फसल की बुवाई के लिए किसानों को खेतों की सफाई कर इस पराली को हटाना पड़ता है। किसान जल्दबाजी में पराली को जलाकर गेहूं की बुवाई शुरू कर देते हैं, लेकिन किसानों की यही जल्दबाजी हवा की गुणवत्ता को खराब कर रही है।
दूषित हवा लोगों के फेफड़े कर रही खराब
चिकित्सा विशेषज्ञों के अनुसार पराली जलाने के बाद दूषित हुई हवा में सांस लेने से लोगों के फेफडे़ खराब हो रहे हैं। ग्रीनपीस साउथ ईस्ट एशिया की रिपोर्ट के अनुसार भारत में हर साल 10 लाख लोगों की मौत वायु प्रदूषण के कारण हो रही है। देश में वायु प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण जीवाश्म ईंधन का बढ़ता उपयोग होने के साथ जलाई जाने वाली पराली भी है। ऐसे में देश में लोगों का जीवन सिकुड़ता जा रहा है।
वर्तमान में दिल्ली-NCR क्षेत्र की हालत हो रही खराब
पराली जलाने के कारण वर्तमान में दिल्ली-NCR क्षेत्र की हालत बहुत खराब हो रही है। सोमवार को दिल्ली में वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) 232 था। ऐसे में दिल्ली सरकार ने बचाव के लिए 'रेड लाइन ऑन, इंजन ऑफ' अभियान भी शुरू किया है।
पराली जलाने से खत्म होती है मिट्टी में मौजूद पोषक तत्व
पराली जलाने की वजह से उपजी ऊष्मा (गरमी) मिट्टी की तकरीबन एक सेंटीमीटर की परत तक पहुंच जाती है। इससे मिट्टी में मौजूद तकरीबन 50 प्रतिशत उपयोगी बैक्टरिया मर जाते हैं। जिसकी वजह से जमीन की उपजाऊ क्षमता बहुत कम हो जाती है। हालांकि, हरियाणा और पंजाब सरकार ने पराली प्रबन्धन के लिए जरूरी कृषि उपकरणों के खरीद पर सब्सिडी का प्रावधान किया है, लेकिन इसे हासिल करने की जटिलताओं के कारण सभी को इसका लाभ नहीं मिल पाता।
पराली का किया जा सकता है अन्य उपयोग
किसान पराली का उपयोग छप्पर बनाने या मवेशियों का बिस्तर बनाने में कर सकते हैं। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE) की अनुमिता रॉय चौधरी के अनुसार पराली को जलने से रोकने के लिए उसका उपयोग बढ़ाया जाना चाहिए। एक विकल्प बिजली पैदा करने के लिए पराली से बायोमास पैदा करना है। इसी तरह भूसे का उपयोग मशरूम की खेती के काम करने वाले छर्रों को बनाने में किया जा सकता है, लेकिन इसके लिए सरकार को प्रयास करने होंगे।
पराली के जरिए बढ़ाई जा सकती है मिट्टी की उपाजाऊता
एक रिपोर्ट के अनुसार पराली को अगर बहुत दिनों तक जमीन पर ही छोड़ दिया जाए तो मिट्टी में सूक्ष्मजैविकों की रासायनिक अभिक्रिया बढ़ सकती है और मिट्टी उपजाऊ हो सकती है, लेकिन इसमें समय अधिक लगता है। इस कारण किसान जल्दबाजी में पराली को जलाना उचित समझते हैं। ऐसे में सरकार को चाहिए कि तकनीक के जरिए ऐसे उत्पादों का निर्माण कराया जाए, जिनसे पराली जल्दी गल जाए और किसानों को उनके उपयोग के लिए प्रेरित करे।
पराली के विकल्प बहुत हैं, लेकिन लागत अधिक
पराली को जलाने से रोकने के लिए विकल्प कई हैं, लेकिन उनकी लागत बहुत अधिक होती है। जैसे THS की कीमत लगभग 1.3 लाख रुपये और S-SMS की लगभग 1.2 लाख रुपये है। इसी तरह कंबाइन की लागत भी लाखों में है। ऐसे में किसानों को वह बहुत महंगा पड़ता है। एक रिपार्ट के अनुसार अन्य विकल्पों को चुनने पर किसानों पर पराली जलाने की तुलना में 20 से 34 प्रतिशत तक अधिक खर्च आता है।
जुर्माने की जगह किसानों को दिया जाए प्रोत्साहन
हरियाणा सरकार ने पराली जलाने वाले किसानों पर 5,000 रुपये के जुर्माने का प्रावधान कर रखा है। सरकार को चाहिए कि किसानों पर जुर्माने का बोझ डालने की जगह उन्हें दूसरी फसलें उगाने के लिए प्रोत्साहित करें। सरकार यदि मक्का पर समर्थन मूल्य निर्धारित करे तो किसाने उसकी पैदावार भी शुरू कर देंगे। इससे किसान धान के बाद जल्द से जल्द गेहूं की फसल पैदा करने के लालच में पराली को जलाने से बचेंगे।
आखिर किसे ठहराया जाए जिम्मेदार?
स्पष्ट रूप से किसानों के पास पराली जलाने से सस्ता अन्य कोई विकल्प नहीं है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यून किसानों को दंडित करने की सिफारिश करता है। पंजाब ने इसका प्रयास किया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। पराली के जलाने का खेल जारी है। कर्ज में डूबे किसान जुर्माना नहीं भर रहे हैं। पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (PPCB) ने अप्रैल-मई राज्य के किसानों पर 61.32 लाख रुपये जुर्माना किया है, लेकिन अब तक महज 18 लाख रुपये भरे गए हैं।