दिल्ली हाई कोर्ट ने की यूनिफॉर्म सिविल कोड की वकालत, केंद्र को दिए अहम निर्देश
दिल्ली हाई कोर्ट ने शुक्रवार को तलाक के एक मामले में फैसला सुनाते हुए देश में यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) यानी समान नागरिक संहिता की आवश्यका पर जोर दिया है। कोर्ट ने कहा कि देश में अब संविधान के अनुच्छेद-44 में UCC की धारणा को वास्तविक रूप देने का समय आ गया है। ऐसे में सरकार को इसे लागू करने की दिशा में आवश्यक कदम उठाने चाहिए। कोर्ट ने कहा बदलते हुए भारत में UCC की बहुत अधिक आवश्यकता है।
दिल्ली हाई कोर्ट ने तलाक के एक मामले को लेकर की टिप्पणी
दरअसल, दिल्ली हाई कोर्ट ने यह टिप्पणी तलाक के एक मामले को लेकर की है। कोर्ट में मीणा जनजाति से ताल्लुक रखने वाले एक दंपती के तलाक का मामला आया था। इसमें कोर्ट के सामने बड़ा सवाल यह था कि जून 2012 में हिन्दू रीति-रिवाज से शादी करने वाले दंपती के तलाक के मामले में हिंदू मैरिज एक्ट-1955 के प्रावधान लागू होंगे या नहीं? कारण यह था कि पति-पत्नी के बीच तलाक के लिए मैरिज एक्ट को लेकर विवाद था।
पति ने दी थी पारिवारिक न्यायालय के फेसले को चुनौती
दरअसल, पति ने पारिवारिक न्यायालय में तलाक के लिए याचिका दायर की थी। इस पर पत्नी ने याचिका का विरोध करते हुए इसे खारिज करने की अपील की थी। उसने कहा था कि वह राजस्थान की मीणा जनजाति से आती है और हिन्दू मैरिज एक्ट उन पर लागू नहीं होगा। इस पर पारिवारिक न्यायालय ने पति की याचिका को खारिज कर दिया था। इसके बाद में इस फैसले के खिलाफ पति ने दिल्ली हाई कोर्ट का रूख किया था।
हाई कोर्ट ने पारिवारिक न्यायालय के फैसले पर लगाई रोक
पति की याचिका के बाद कोर्ट के सामने सवाल खड़ा हो गया कि उसमें हिन्दू मैरिज एक्ट के मुताबिक फैसला दिया जाए या मीना जनजाति के नियम के मुताबिक। कोर्ट ने पाया कि मीणा जनजातियों के मामलों के निपटारे के लिए कोई विशेष कोर्ट नहीं है। ऐसी स्थिति में UCC की आवश्यकता है। इस पर कोर्ट ने पारिवारिक न्यायालय के फैसले पर रोक लगाते हुए मामले में हिन्दू मैरिज एक्ट के (13)(1) के तहत निर्णय करने के आदेश दिए हैं।
बदलते भारत में है UCC की जरूरत- हाई कोर्ट
जस्टिस प्रतिभा एम सिंह कहा, "आज का भारत बदल रहा है, लोग धीरे-धीरे जाति, धर्म के बंधन से ऊपर उठ रहे है और पारंपरिक बाधाएं कम हो रही है। ऐसे में कुछ मामलों में शादी के बाद तलाक में युवाओं को परेशानी का सामना करना पड़ता है। इससे निपटने के लिए देश में UCC लागू करने की जरूरत है।" उन्होंने आगे कहा, "अदालतों को बार-बार पर्सनल लॉ कानूनों में उत्पन्न होने वाले संघर्षों का सामना करना पड़ता है।"
युवाओं को कानूनों के टकरावों में जूझने के लिए नहीं किया जा सकता मजबूर- हाई कोर्ट
हिंदुस्तान टाइम्स के अनुसार, जस्टिस सिंह ने कहा, "भारत में अलग समुदायों, जातियों या जनजातियों में विवाह करने वाले युवाओं को अलग-अलग पर्सनल लॉ में होने वाले टकरावों से उत्तपन्न मुद्दों से जूझने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है, खासकर शादी और तलाक के मामलों में।" उन्होंने कहा कि भारत में समान नागरिक संहिता संविधान के अनुच्छेद 44 के तहत परिकल्पित है और सुप्रीम कोर्ट की ओर से इस संबंध में समय-समय पर दोहराया भी गया है।"
क्या है यूनिफॉर्म सिविल कोड?
यूनिफॉर्म सिविल कोड का सामान्य अर्थ कानूनों के ऐसे समूह से है जो शादी, तलाक, गोद लेने, उत्तराधिकार, विरासत के मामले में देश के सभी नागरिकों के लिए एक समान हो। अभी अलग-अलग धर्मों के लिए अलग कानून हैं। इन कानूनों में हिंदू मैरिज एक्ट, हिंदू उत्तराधिकार कानून, इंडियन क्रिश्चियन मैरिज एक्ट, इंडियन डिवोर्स एक्ट, पारसी मैरिज एक्ट और डिवोर्स एक्ट हैं। हालांकि, मुस्लिम पर्सनल लॉ को अभी संहिताबद्ध नहीं किया गया है और यह धार्मिक ग्रंथों पर आधारित हैं।