
दिल्ली में 6 महीने के लिए बढ़ाई गई पुरानी शराब नीति, 5 दिन रहेगा ड्राई डे
क्या है खबर?
दिल्ली सरकार ने बुधवार को पुरानी शराब नीति को छह महीने के लिए बढ़ा दिया।
इन छह महीनों के दौरान पांच दिन ड्राई डे रहेगा और इन दिनों शराब की बिक्री नहीं की जाएगी। इन पांच दिनों में महावीर जयंती (4 अप्रैल), गुड फ्राइडे (7 अप्रैल), ईद-उल-फितर (22 अप्रैल), बुद्ध पूर्णिमा (5 मई) और ईद-उल-जुहा (29 जून) शामिल हैं।
सरकार ने अधिकारियों को जल्द से जल्द एक और नई शराब नीति बनाने के निर्देश भी जारी किए हैं।
नीति
दिल्ली सरकार ने पिछले साल नई शराब नीति की थी रद्द
बता दें कि मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली दिल्ली सरकार ने नवंबर, 2021 में नई शराब नीति लागू की थी।
हालांकि, उपराज्यपाल (LG) विनय कुमार सक्सेना ने इसमें अनियमितताओं की आशंका जताते हुए मामले की जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) से करवाने की सिफारिश की थी।
दिल्ली सरकार ने जुलाई, 2022 में नई शराब नीति को रद्द कर दिया था, जिसके बाद पुरानी शराब नीति दोबारा बहाल हो गई थी और अब इसका विस्तार किया गया है।
नीति
नई नई शराब नीति में क्या था?
दिल्ली में वर्ष 2021-22 के लिए नई शराब नीति के तहत निजी फर्मों को बोली लगाने की अनुमति मिली थी और शराब के 849 ठेकों के लाइसेंस जारी किए गए थे।
इसमें दिल्ली को 32 क्षेत्रों में विभाजित किया गया था, जिसमें हर क्षेत्र में अधिकतम 27 दुकानें खोलने की अनुमति दी गई थी।
हर क्षेत्र के लिए अलग प्रक्रिया हुई थी और हर फर्म को अधिकतम दो क्षेत्रों के लिए बोली लगाने की अनुमति दी गई थी।
आरोप
नई शराब नीति में मनीष सिसोदिया पर लगे हैं आरोप
दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया नई शराब नीति घोटाले के मामले में फिलहाल ED की हिरासत में हैं।
केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) ने 26 फरवरी को लंबी पूछताछ के बाद सिसोदिया को शराब नीति घोटाले में भूमिका होने के आरोप में गिरफ्तार किया था।
सिसोदिया पर नई शराब नीति के तहत कमीशन लेकर शराब की दुकानों का लाइसेंस लेने वालों को अनुचित फायदा पहुंचाने का आरोप है, जिससे सरकारी खजाने को नुकसान हुआ।
आय
न्यूज़बाइट्स प्लस
दिल्ली सरकार की कमाई में शराब की बिक्री का एक अहम योगदान है और यह उसके राजस्व का एक प्रमुख स्त्रोत है।
नई शराब नीति से दिल्ली सरकार को हर साल 3,500 करोड़ रुपये का राजस्व मिलने का अनुमान था। इसके अलावा उत्पाद शुल्क के रूप में भी उसकी 10,000 करोड़ रुपये की कमाई होती।
दिल्ली को केंद्रीय टैक्स में से बहुत कम हिस्सा मिलता है। एक अनुमान के मुताबिक, उसे केंद्रीय टैक्स से मात्र 325 करोड़ रुपये मिलते हैं।