कोरोना वायरस: भारतीय मूल के दीपक पालीवाल ने वैक्सीन के लिए दांव पर लगाई अपनी जिंदगी
पूरी दुनिया जब कोरोना वायरस के प्रकोप से जूझ रही थी, तब भारतीय मूल के इंग्लैंड के नागरिक दीपक पालीवाल इसकी वैक्सीन के विकास में योगदान को आगे आए। दीपक ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी द्वारा तैयार की जा रही संभावित वैक्सीन के इंसानी ट्रायल में वॉलेंटियर बने थे। यानी उन पर संभावित वैक्सीन का ट्रायल किया गया है। ट्रायल के लिए वॉलेंटियर बनने से पहले न कोई झिझक थी और न ही उन्हें इस बारे में ज्यादा सोचना पड़ा।
दिमाग से नहीं तो शरीर से दिया योगदान- दीपक
बीबीसी को दिए इंटरव्यू में दीपक ने बताया, "कोरोना वायरस से लड़ाई में मैं कैसे योगदान दे सकता हूं। इस सवाल का जवाब ढूंढने में मेरा दिमाग काम नहीं कर रहा था। एक दिन बैठे-बैठे यूं ही ख्याल आया कि क्यों न दिमाग की जगह शरीर से मदद करूं। मेरे दोस्त ने बताया था कि ऑक्सफोर्ड में ट्रायल चल रहे हैं तो उसके लिए वॉलेंटियर की जरूरत है। मैंने ट्रायल के लिए आवेदन कर दिया।"
दीपक के फैसले के खिलाफ थी उनकी पत्नी
दीपक ने आगे कहा कि उन्हें 16 अप्रैल को इस बात का पता चला कि वो इस वैक्सीन के ट्रायल में बतौर वॉलेंटियर भाग ले सकते हैं। हालांकि, उनकी पत्नी उनके इस फैसले के खिलाफ थीं। दीपक ने कहा, "भारत में भी मैंने अपने परिवार वालों को कुछ नहीं बताया था क्योंकि वो मेरे इस फैसले का विरोध करते। इसलिए मैंने अपने करीबी दोस्तों को ही यह बात बताई थी।" 26 अप्रैल को दीपक जांच के लिए अस्पताल गए।
तीसरे चरण में पहुंच चुकी है ऑक्सफोर्ड की संभावित वैक्सीन
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और एस्ट्रोजेनेका मिलकर इंग्लैंड में एक संभावित वैक्सीन पर काम कर रही हैं। ट्रायल में सबसे आगे चल रही यह वैक्सीन तीसरे चरण में पहुंच चुकी है। इसके ट्रायल के लिए लगभग अमेरिकी, अफ्रीकी और भारतीय समेत सभी मूल के 1,000 लोगों की जरूरत थी। ट्रायल में सभी मूल के लोगों का होना इसलिए जरूरी होता है अगर वैक्सीन सफल रहती है तो इसे हर देश में इस्तेमाल किया जा सके।
ट्रायल के दौरान होते हैं इतने खतरे
दीपक ने बताया कि जिस दिन उन्हें वैक्सीन का इंजेक्शन लेने जाना था, उस दिन उनके पास एक मैसेज आया कि ट्रायल के दौरान एक वॉलेंटियर की मौत हो गई है। इंजेक्शन से पहले उन्हें ट्रायल प्रक्रिया के दौरान संभावित खतरों की भी जानकारी दी गई। डॉक्टरों ने उन्हें बताया कि ट्रायल के दौरान उन्हें बुखार हो सकती है, वो बेहोश हो सकते हैं, उनके अंग काम करना बंद कर सकते हैं और मौत भी हो सकती है।
दोस्तों ने किया राजी
दीपक ने बताया कि ये बाते सुनकर उनके मन में थोड़ा संदेह हुआ, जिसके बाद उन्होंने अपनी डॉक्टर दोस्त से इस बारे में संपर्क किया। उनकी दोस्त ने उन्हें वॉलेंटियर करने को राजी करने में अहम भूमिका निभाई।
ट्रायल के लिए दीपक को नहीं मिले कोई पैसे
दीपक को इस ट्रायल में शामिल होने के लिए किसी तरह के पैसे नहीं दिए हैं, लेकिन उनका इंश्योरेंस किया गया है। जब दीपक से पूछा गया कि इतने खतरों के बावजूद ट्रायल के लिए राजी होने कितना मुश्किल था? इसके जवाब में उन्होंने कहा कि मैं नहीं जानता कि ये ट्रायल सफल भी होगा या नहीं, लेकिन मैं समाज के लिए कुछ करना चाहता था। बस इसलिए ये कर रहा हूं।"
इंजेक्शन लगने के दिन दीपक को आया बुखार
ट्रायल की प्रक्रिया के बारे में बताते हुए दीपक ने कहा कि उन्हें बाजू में इंजेक्शन दिया गया था। उस दिन उन्हें बुखार आया और कंपकंपी हुई। इसके अलावा इंजेक्शन लगने वाली जगह पर थोड़ी सूजन भी आई। डॉक्टरों ने बताया कि यह सामान्य बात है। इसके बाद 28 दिनों तक उन्हें प्रक्रिया के तहत रोजाना अपने शरीर के तापमान, वजन, ब्लड प्रेशर, इंजेक्शन के निशान आदि की जानकारी अस्पताल को देनी होता था।
ट्रायल में दीपक का हिस्सा हुआ पूरा
दीपक ने बताया कि वो 90 दिन तक बाहर आ-जा नहीं सकते। उन्हें दो बार वैक्सीन की खुराक दी गई है, लेकिन फॉलोअप के लिए बार-बार अस्पताल जाना होता है। ट्रायल में दीपक का हिस्सा पूरा हो गया है।