BBC डॉक्यूमेंट्री: प्रधानमंत्री मोदी से पहले इन विषयों की डॉक्यूमेंट्री पर भी हो चुका है विवाद
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर ब्रिटिश प्रसारक BBC की डॉक्यूमेंट्री सीरीज पर बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। इसका एक हिस्सा रिलीज हो चुका है और दूसरा हिस्सा 24 जनवरी को रिलीज होगा। ऐसे में इसकी स्कि्रनिंग को लेकर दिल्ली की कई यूनिवर्सिटी में विवाद होने के साथ इसने राजनीतिक तूल भी पकड़ लिया है। हालांकि, यह पहला मौका नहीं है जब किसी डॉक्यूमेंट्री पर विवाद हुआ है। इससे पहले ही कई विषयों की डॉक्यूमेंट्री विवाद का कारण बन चुकी है।
गुजरात दंगों पर बनी 'फाइनल सॉल्यूशन' पर भी हुआ था विवाद
करीब एक दशक पहले 2002 गुजरात दंगो को लेकर राकेश शर्मा द्वारा निर्देशित डॉक्यूमेंट्री को 'फाइनल सॉल्यूशन' नाम से रिलीज किया गया था। उसमें गुजरात दंगों को समन्वित और नियोजित बताया गया था। वह दंगा प्रभावितों और गवाहों के बयानों के इंटरव्यू पर आधारित थी। उसको लेकर देश में काफी विवाद हुआ था। सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन (CBFC) ने उसे सांप्रदायिक हिंसा और कट्टरपंथ को बढावा देने वाली बताते हुए उसके प्रसारण पर प्रतिबंध लगा दिया था।
निर्देशक शर्मा ने लगाए थे गंभीर आरोप
उस दौरान 'फाइनल सॉल्यूशन' के निर्देशक शर्मा ने कथित तौर पर तत्कालीन सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष अनुपम खेर पर भाजपा समर्थक के रूप में डॉक्यूमेंट्री को मंजूरी न देने के आरोप लगाए थे। हालांकि, अक्टूबर 2004 में केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्व वाले UPA सरकार के सत्ता में आने के बाद डॉक्यूमेंट्री से प्रतिबंध हटा लिया गया। उसके बाद इसने विशेष जूरी पुरस्कार (गैर-फीचर फिल्म) श्रेणी में राष्ट्रीय पुरस्कार जीता और अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों में भी कई पुरस्कार जीते थे।
'इंडियाज डॉटर' भी बनी थी विवाद का कारण
साल 2015 में लेस्ली उडविन द्वारा निर्देशित डॉक्यूमेंट्री 'इंडियाज डॉटर' को रिलीज किया गया था। वह BBC द्वारा जारी सीरीज स्टोरीविले का एक भाग है। यह दिल्ली में घटित निर्भया गैंगरेप और हत्याकांड पर आधारित थी। आरोपियों में से एक मुकेश के इंटरव्यू के कुछ अंशों सहित डॉक्यूमेंट्री के कुछ अंश प्रसारित किए जाने के बाद पुलिस ने इसके प्रसारण पर रोक लगाने के लिए कोर्ट से स्थगन आदेश ले लिया था।
देश के लोगों ने यूट्यूब के जरिए देखी थी डॉक्यूमेंट्री
कोर्ट के आदेश के बाद BBC ने इसे भारत की जगह विदेशों में रिलीज कर दिया। उसके बाद देश में इसे यूट्यूब पर देखा तो केंद्र सरकार ने वीडियो शेयरिंग प्लेटफॉर्म को भारत में इसे ब्लॉक करने का आदेश दे दिया। इसको लेकर देश की संसद में काफी बहस भी हुई थी। विपक्षी सांसदों ने सरकार के कदम पर सवाल खड़े किए थे। तत्कालीन संसदीय कार्य मंत्री एम वेंकैया नायडू ने इसे भारत को बदनाम करने की साजिश बताया था।
सबसे विवादित डॉक्यूमेंट्री रही थी 'राम के नाम'
साल 1992 में आनंद पटवर्धन द्वारा निर्देशित 'राम के नाम' देश की सबसे विवादित डॉक्यूमेंट्री रही थी। इसमें अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के लिए विश्व हिंदू परिषद (VHP) के अभियान की समीक्षा की गई थी। इसे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सराहा गया और सर्वश्रेष्ठ खोजी डॉक्यूमेंट्री का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार और फिल्मफेयर पुरस्कार भी मिला था। इसके बाद भी सरकार ने दूरदर्शन पर इसके प्रसारण पर प्रतिबंध लगा दिया। इस पर काफी विवाद हुआ था।
'इंशाअल्लाह, फुटबॉल' को लेकर भी उठा था विवाद
अश्विन कुमार द्वारा निर्देशित 'इंशाअल्लाह, फुटबॉल' डॉक्यूमेंट्री 2010 में रिलीज की गई थी। इसमें एक युवा कश्मीरी फुटबॉलर की कहानी दिखाई गई थी। वह ब्राजील में खेलना चाहता था, लेकिन उसके पिता के पूर्व आतंकवादी होने के कारण उसे वीजा नहीं दिया गया था। इस डॉक्यूमेंट्री को सेंसर बोर्ड से A सर्टिफिकेट मिला था, लेकिन सरकार ने कश्मीर में सेना के अभियान को देखते हुए रिलीज से पहले इसकी स्क्रीनिंग पर रोक लगा दी। इस पर काफी विवाद उठा था।
'कलकत्ता' और 'फैंटम इंडिया' पर भी हुआ था विवाद
BBC ने 1970 के दशक में लुई मैले द्वारा निर्देशित दो डॉक्यूमेंट्री 'कलकत्ता' और 'फैंटम इंडिया' का प्रसारण कर भारतीय प्रवासियों का विरोध मोल लिया था। इनको लेकर भारत सरकार ने भी तीखी प्रतिक्रिया दी थी। दोनों डॉक्यूमेंट्री में भारत में रोजमर्रा की जिंदगी को दिखाया गया था। सरकार ने उसे पूर्वाग्रही बताते हुए देश की नकारात्मक छवि दिखाने वाला बताया था। इसके बाद BBC को 1972 तक भारत से निष्कासित कर दिया।
क्या है मौजूदा विवाद?
'इंडिया: द मोदी क्वेश्चन' नामक BBC की इस डॉक्यूमेंट्री के पहले हिस्से में 2002 गुजरात दंगों के लिए नरेंद्र मोदी को जिम्मेदार ठहराया गया है। इसमें बताया गया है कि दंगों के बाद ब्रिटेन के विदेश मंत्रालय ने अपने स्तर पर मामले की जांच की थी और इसमें पाया गया था कि हिंसा पहले से सुनियोजित थी और राज्य सरकार के संरक्षण में VHP जैसे संगठनों ने इसे अंजाम दिया था। इसको लेकर दिल्ली में भारी विवाद हो रहा है।
सरकार ने मामले पर क्या दिया है बयान?
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा, "हमारा मानना है कि यह एक प्रोपेगेंडा सामग्री है, जिसे एक विशेष बदनाम नेरेटिव को आगे बढ़ाने के लिए बनाया गया है। इसमें पूर्वाग्रह, निष्पक्षता की कमी और औपनिवेशिक मानसिकता दिखाई दे रही है।"