जजों की रिटायरमेंट की उम्र बढ़ाने के पक्ष में नहीं कानून मंत्रालय, जानें क्या तर्क दिया
क्या है खबर?
कानून मंत्रालय ने एक संसदीय पैनल को बताया है कि सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जजों की सेवानिवृत्ति की उम्र सीमा बढ़ाने से नॉन-परफॉर्मिंग जजों की सेवा का विस्तार हो सकता है।
मंत्रालय ने आगे कहा कि इससे अन्य सरकारी कर्मचारी भी इस तरह की मांग उठा सकते हैं।
गौरतलब है कि केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने जुलाई में कहा था कि सेवानिवृत्ति की उम्र सीमा बढ़ाने को लेकर कोई विचार नहीं किया जा रहा है।
सुझाव
कानून मंत्रालय ने क्या कहा?
कानून मंत्रालय ने कहा कि सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाने से ट्रिब्यूनल सेवानिवृत्त जजों के पीठासीन अधिकारी और न्यायिक सदस्य के रूप में नियुक्त होने से वंचित हो सकते हैं।
मंत्रालय ने आगे कहा कि अगर अदालतों में लंबित मामलों को कम करने और न्यायपालिका में पारदर्शिता लाने के साथ-साथ सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जजों की सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाने पर विचार किया गया तो यह अनुचित होगा।
प्रस्तुति
संसदीय पैनल के सामने दी गई थी प्रस्तुति
कानून मंत्रालय के विधि विभाग ने कार्मिक, कानून और न्याय पर संसदीय पैनल के समक्ष प्रस्तुति दी थी।
इस पैनल की अध्यक्षता भाजपा सांसद और बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी कर रहे हैं।
संसदीय पैनल के सामने प्रस्तुति में सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की उम्र सीमा बढ़ाने की संभावना सहित अन्य न्यायिक प्रक्रियाओं और सुधारों को लेकर विचार किया गया था।
टिप्पणी
जजों की सेवानिवृत्ति की उम्र बढ़ाने का होगा व्यापक प्रभाव- कानून मंत्रालय
मंत्रालय ने कहा कि जजों की सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाने का विभिन्न स्तरों पर प्रभाव होगा।
कानून मंत्रालय ने अपनी प्रस्तुति में कहा कि न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाए जाने पर केंद्र सरकार और राज्य सरकारों, पब्लिक सेक्टर अंडरटेकिंग (PSU) और आयोगों के कर्मचारी भी भविष्य में इसी तरह की मांग उठा सकते हैं।
मंत्रालय ने कहा कि इस मुद्दे की समग्रता से जांच करने की आवश्यकता है।
सेवानिवृत्ति
अभी क्या है जजों की सेवानिवृत्ति की आयु?
सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश 65 वर्ष की आयु में सेवानिवृति होते हैं, जबकि हाई कोर्ट के न्यायाधीश 65 वर्ष की आयु में सेवानिवृत्त होते हैं।
हाई कोर्ट के न्यायाधीशों की सेवानिवृति की आयु 65 वर्ष करने के लिए 2010 में एक विधेयक भी लाया गया था। हालांकि, इसे संसद में चर्चा में नहीं लिया गया था और 15वीं लोकसभा के भंग होने के कारण यह विधेयक रद्द हो गया था।
जानकारी
देश में पांच करोड़ मामले हैं लंबित
केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने हाल ही में बताया था कि देश की अदालतों में लगभग पांच करोड़ मामले लंबित हैं। इसके पीछे कई कारण हैं, लेकिन सबसे बड़ा कारण जजों की नियुक्ति और खाली पड़े स्वीकृत पद हैं।
उन्होंने बताया कि सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट्स, जिला और दूसरी अदालतों में जजों के स्वीकृत पद 25,011 हैं, लेकिन 12 दिसंबर, 2022 तक इनमें से 19,192 पदों पर ही जज कार्यरत थे।