#NewsBytesExplainer: क्या राज्यपाल मुख्यमंत्री से पूछे बिना किसी मंत्री को बर्खास्त कर सकता है?
तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि ने गुरुवार को मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपों से घिरे कैबिनेट मंत्री वी सेंथिल बालाजी को मंत्रिपरिषद से बर्खास्त कर दिया था। राज्यपाल के इस फैसले पर मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने विरोध जताया और कई विपक्षी पार्टियों ने फैसले को असंवैधानिक करार दिया। अंत में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की सलाह के बाद राज्यपाल ने मंत्री की बर्खास्तगी का अपना फैसला स्थगित कर दिया। आइए जानते हैं कि इस मामले पर संविधान क्या कहता है।
राज्यपाल ने क्यों किया था बालाजी को बर्खास्त?
राज्यपाल ने अपने आदेश में कहा था कि ऐसी आशंका है कि बालाजी के मंत्री रहते हुए कानूनी प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न होगी और वह न्यायिक प्रक्रिया को भी बाधित कर सकते हैं। उन्होंने कहा था, "यह स्थिति अंततः राज्य में संवैधानिक मशीनरी में टूट का कारण बन सकती है। इन परिस्थितियों को देखते हुए मैं संविधान के अनुच्छेद 154, 163 और 164 के तहत प्रदत्त शक्तियों के तहत बालाजी को तत्काल प्रभाव से मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर रहा हूं।"
राज्यपाल के मंत्री को बर्खास्त करने पर संविधान क्या कहता है?
संविधान के अनुच्छेद 164(1) के मुताबिक, मुख्यमंत्री की नियुक्ति राज्यपाल करेगा और बाकी मंत्रियों की नियुक्ति राज्यपाल को मुख्यमंत्री की सलाह से करनी होगी। मुख्यमंत्री मंत्री पद के लिए जिन नामों की अनुशंसा करेंगे, राज्यपाल उन्हें शपथ दिलाएंगे। इस हिसाब से देखा जाए तो राज्यपाल को न तो मंत्री नियुक्त करने और न ही उन्हें बर्खास्त करने का अधिकार है। अनुच्छेद 163 में भी राज्यपाल के मंत्रिपरिषद से मशवरे के बाद कोई फैसला लेने की बात कही गई है।
इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट का क्या कहना है?
इस तरह के मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने मंत्रियों के पक्ष में फैसला दिया है। शमशेर सिंह बनाम पंजाब सरकार मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि राज्यपाल मंत्रिपरिषद की सलाह पर ही काम कर सकता है और राज्यपाल को राज्य के भीतर एक अलग समानांतर सरकार चलाने की अनुमति नहीं दी जा सकती। संजीवी नायडू बनाम मद्रास सरकार मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि राज्यपाल राज्य के संवैधानिक प्रमुख हैं, लेकिन सरकार का संचालन मंत्रिमंडल करेगा।
...तो क्या राज्यपाल ने असंवैधानिक फैसला ले लिया था?
कानूनी जानकारों के मुताबिक, राज्यपाल का फैसला असंवैधानिक था और इसे कोर्ट में चुनौती दी जा सकती थी। संविधान कहता है कि मुख्यमंत्री की अनुशंसा के बाद ही राज्यपाल किसी मंत्री को बर्खास्त कर सकते हैं, लेकिन इस मामले में राज्यपाल ने मुख्यमंत्री से सलाह मशविरा किए बिना ही फैसला ले लिया। अगर राज्यपाल के फैसले को कोर्ट में चुनौती दी जाती तो पूरी संभावना थी कि फैसला बालाजी और तमिलनाडु सरकार के पक्ष में ही आता।
मामले में आगे क्या होगा?
फिलहाल के लिए राज्यपाल ने मंत्री की बर्खास्तगी के आदेश को स्थगित कर दिया है और कहा है कि वे अटॉर्नी जनरल की सलाह के बाद कुछ फैसला लेंगे। रिपोर्ट्स के मुताबिक, अटॉर्नी जनरल कुछ बीच का रास्ता बता सकते हैं क्योंकि राज्यपाल का आदेश मोटे तौर पर असंवैधानिक है और इससे राजभवन की किरकिरी हो सकती है। अगले आदेश तक बालाजी मंत्री बने रहेंगे। फिलहाल कोर्ट ने 12 जुलाई तक उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज रखा है।
बालाजी पर क्या आरोप हैं?
प्रवर्तन निदेशालय (ED) बालाजी के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपों में जांच कर रही है। सुप्रीम कोर्ट ने 16 मई को ED और पुलिस को बालाजी के खिलाफ जांच करने का आदेश दिया था, जिसके बाद उन्हें गिरफ्तार किया गया था। यह मामला तब का है जब बालाजी 2011 से 2015 के बीच तत्कालीन ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (AIADMK) सरकार में परिवहन मंत्री थे। उन पर विभाग में नौकरी दिलाने के बदले में पैसे लेने का आरोप है।