#NewsBytesExplainer: क्या थी भोपाल गैस त्रासदी, जिसमें हजारों लोगों की गई थी जान?
सुप्रीम कोर्ट ने आज भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों के लिए अधिक मुआवजे की मांग करने वाली केंद्र सरकार की याचिका को खारिज कर दिया। 1984 में हुई भोपाल गैस त्रासदी दुनिया की सबसे भीषण रासायनिक और औद्योगिक आपदाओं में से एक है। इस त्रासदी में हजारों लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी, जबकि लाखों लोग प्रभावित हुए थे। आइए जानते हैं कि यह पूरी घटना क्या थी।
कब हुई थी भोपाल गैस त्रासदी?
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में 2 और 3 दिसंबर, 1984 की रात यूनियन कार्बाइड प्लांट के कारखाने से एक जहरीली गैस का रिसाव हो गया था। रिकॉर्ड के मुताबिक, प्लांट को ठंडा करने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले पानी में मिथाइल आइसोसाइनेट मिल गई थी। इस मिश्रण के कारण जहरीली गैस उत्पन्न हुई, जिसने स्टोरेज टैंक पर जबरदस्त दबाव डाला। दबाव के कारण टैंक से कई टन जहरीली गैस लीक होकर एक बड़े क्षेत्र में फैल गई।
त्रासदी में कितने लोगों की हुई थी मौत?
प्लांट से रिसने वाली जहरीली गैस के संपर्क में आने के कारण प्लांट के पास रह रहे लोग सर्वाधिक प्रभावित हुए थे। एक अनुमान के मुताबिक, करीब 2,500 से अधिक लोगों की रात में ही मौत हो गई थी। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, इस त्रासदी में करीब 5,000 लोगों की मौत हुई थी। इसके विपरीत विभिन्न संस्थाओं द्वारा समय-समय पर जारी किए गए आंकड़ों में भोपाल गैस त्रासदी में 15,000 से 25,000 लोगों की मौत की बात कही गई है।
कौन था मामले का मुख्य आरोपी?
भोपाल गैस त्रासदी के मुख्य आरोपी यूनियन कार्बाइड कार्पोरेशन का चेयरमैन वारेन एंडरसन था, लेकिन उसे कभी सजा नहीं हो सकी। एंडरसन को त्रासदी के कुछ दिनों बाद ही गिरफ्तार कर लिया गया था, लेकिन इसके बाद वह जमानत पर रिहा होकर वापस अमेरिका भाग गया। इसके बाद उसके खिलाफ कई वारंट जारी किए गए और उसके प्रत्यर्पण की असफल कोशिशें भी की गईं। एंडरसन की वर्ष 2014 में 92 वर्ष की आयु में मौत हो गई थी।
मामले में किस-किस को सजा हुई?
भोपाल की एक अदालत ने वर्ष 2010 में कंपनी के 7 कर्मचारियों को दोषी करार करते हुए 2-2 साल जेल की सजा सुनाई थी। इन सभी पर 1-1 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया गया था। इनमें यूनियन कार्बाइड इंडिया के पूर्व अध्यक्ष केशब महिंद्रा, प्रबंध निदेशक वीपी गोखले, उपाध्यक्ष किशोर कामदार, कार्य प्रबंधक जे मुकुंद, प्रोडक्शन मैनेजर एसपी चौधरी, संयंत्र अधीक्षक केवी शेट्टी और प्रोडक्शन असिस्टेंट एसआई कुरैशी शामिल थे। हालांकि, यह सभी जमानत पर रिहा हो गए थे।
यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन ने दिया था 47 करोड़ डॉलर का मुआवजा
त्रासदी को लेकर भारत सरकार को अमेरिका की यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन के साथ एक लंबी कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ी थी। अमेरिकी कंपनी ने शुरुआत में मात्र 50 लाख डॉलर की राहत राशि देने की पेशकश की थी। भारत ने इसे अस्वीकार करते हुए 3.3 अरब डॉलर की मांग की थी। इसके बाद वर्ष 1989 में हुए अंतिम समझौते में यूनियन कार्बाइड ने तब 47 करोड़ डॉलर का मुआवजा देने पर सहमति जताई थी।
कई वर्षों तक दिखता रहा त्रासदी का प्रभाव
हजारों मौतों के अलावा भोपाल और आसपास के शहरों की बड़ी आबादी को खांसी और सांस लेने में परेशानी के साथ-साथ त्वचा में जलन जैसी कई दिक्कतों का सामना करना पड़ा था। इसके अलावा कई लोगों की आखों की रोशनी चली गई थी। जहरीली गैस के कारण कई वर्षों तक शारीरिक और मानसिक रूप से कमजोर बच्चों का जन्म हुआ था, वहीं प्रभावित इलाके में जन्मे बच्चों के हाथ-पैरों में कई प्रकार के विकार भी दिखाई दिए थे।
मौजूदा याचिका का मामला क्या है?
केंद्र सरकार ने 3 दिसंबर, 2010 को भोपाल गैस त्रासदी की 26वीं बरसी पर पीड़ितों के लिए अतिरिक्त मुआवजे की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक क्यूरेटिव याचिका दाखिल की थी। केंद्र सरकार ने कहा था कि वर्ष 1989 में जब पीड़ितों के लिए मुआवजा तय किया था, तब जहरीली गैस के रिसाव से मानव जीवन और पर्यावरण को हुए वास्तविक नुकसान की विशालता का आंकलन ठीक तरीके से नहीं किया जा सका था।
मामले की राजनीति क्या है?
भाजपा के कई नेता मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता अर्जुन सिंह की किताब के हवाले से आरोप लगाते रहे हैं कि तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के मौखिक आदेश पर वारेन एंडरसन को जमानत पर रिहा किया गया था। इस जमानत के बाद एंडरसन अमेरिका भाग गया, जिसके कारण भाजपा गांधी परिवार और कांग्रेस पर हजारों लोगों की जान लेने वाले एंडरसन को भगाने का आरोप लगाती रही है।