कोरोना वायरस और चक्रवात की मार के बीच रोजगार के लिए संघर्ष करते मुंबई के डब्बावाला
लोगों को अपनी चपेट में लेकर उनकी जिंदगी छीनने वाले खतरनाक कोरोना वायरस ने परोक्ष रूप से देश में लाखों लोगों का रोजगार भी छीन लिया है। महाराष्ट्र के मुंबई में इसका सबसे ज्यादा प्रकोप होने के कारण यहां डब्बावालों की 125 साल पुरानी लंचबॉक्स डिलीवरी प्रणाली पूरी तरह से ध्वस्त हो गई है। इसी बीच चक्रवाती तूफान निसर्ग ने डब्बावालों के जले पर नमक छिड़कने का काम किया है। अब ये लोग रोजगार के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
कौन हैं डब्बावाला?
मुंबई की डब्बावाला प्रणाली में 5,000 लोग काम करते हैं। ये लोग ऑफिस और दुकानों पर काम करने वालों को पैदल या साइकिल के जरिये घर का बना हुआ खाना पहुंचाते हैं। लॉकडाउन से पहले ये डब्बावाले प्रतिदिन लगभग 2 लाख लोगों को समय पर डिलीवरी देते थे। इस प्रणाली को 2010 में हार्वर्ड बिजनेस स्कूल द्वारा 'सिक्स सिग्मा' में वर्गीकृत किया था। इसका मतलब हुआ कि डब्बावाले प्रति 10 लाख डिलीवरी में 3.4 से भी कम गलती करते हैं।
मुंबई में बढ़ते मामले बने चिंता का विषय
महाराष्ट्र के मुंबई में कोरोना संक्रमितों की संख्या में तेजी से इजाफा हो रहा है। यही कारण है कि वहां संक्रमितों की संख्या 50,085 पर पहुंच गई है। इसी तरह वहां अब तक कुल 1,702 लोगों की मौत भी हो चुकी है। शहर में अभी लॉकडाउन जारी है। महाराष्ट्र सरकार ने लॉकडाउन को 30 जून तक बढ़ा दिया है। हालांकि, राज्य सरकार ने लॉकडाउन से बाहर निकलने के अपनी योजना तैयार की और धीरे-धीरे ढील देने जा रही है।
मुंबई के डब्बावालों के सामने आ रही यह परेशानी
'मिशन स्टार्ट अगेन' के तहत महाराष्ट्र के निजी कार्यालयों को केवल 10% स्टाफ के साथ फिर से काम शुरू करने की इजाजत दी गई है। मुंबई मिरर की रिपोर्ट के अनुसार कई कार्यालय महामारी के कारण "बाहरी लोगों" को प्रवेश देने से हिचक रहे हैं। लोकल ट्रेन सेवाओं के शटडाउन ने डब्बावालों की डिलीवरी प्रणाली को और सीमित कर दिया है। ऐसे में कई डब्बावाले अन्य नौकरियां ढूंढ रहे हैं, लेकिन इन हालातों में नौकरी मिलना मुश्किल हो रहा है।
ऑफिस खुलने के बाद भी ऑर्डर मिलने पर जताया संदेह
मुंबई टिफिन बॉक्स आपूर्तिकर्ता संघ के अध्यक्ष रामदास करवंदे ने मिरर को बताया कि ग्राहकों ने उन्हें ऑफिस खुलने पर फिर से ऑर्डर देने का आश्वासन दिया है। हालांकि, उन्हें शक है कि ऑफिस खुलने के बाद भी पर्याप्त मात्रा में ऑर्डर नहीं मिलेंगे।
चक्रवाती तूफान निसर्ग ने किया जले पर नमक छिड़कने का काम
सैकड़ों डब्बावालों पर चक्रवाती तूफान निसर्ग ने जले पर नमक छिड़कने का काम किया है। इस तूफान ने बिजली और मोबाइल कनेक्टिविटी को खासा प्रभावित किया है। साइक्लोन में घर की छत के क्षतिग्रस्त होने से पैर पर गिरे चद्दर के टुकड़े के कारण 28 वर्षीय डिब्बावाला विशाल खाप को सात टांके लगवाने पड़े थे। खाप ने बताया कि तूफान के कारण उनकी फसल और चारा पूरी तरह से भीग गया और खेतों में पानी भर गया है।
50,000 हजार रुपये का हुआ नुकसान
पुणे के खेड़ तालुका के विट्ठल मुके (30) ने बताया कि उनके परिवार को 50,000 रुपये का नुकसान हुआ है। वह पिछले 15 सालों से लोगों तक टिफिन पहुंचा रहे थे। कोरोना के कारण उसकी पत्नी की घरों में काम करने की नौकरी खत्म हो गई है। निसर्ग के कारण परिवार के एक साल के अनाज भंडार और मवेशियों के चारे को नुकसान हुआ है। तूफान के बाद से ही उनके गांव में बिजली और मोबाइल नेटवर्क ठप है।
प्रभावितों के लिए नाकाफी साबित हो रहे हैं NGO के प्रयास
स्मिता ठाकरे का मुक्ती फाउंडेशन प्रभावितों के लिए खाद्य आपूर्ति और वित्तीय सहायता करने का प्रयास कर रहा है। हालांकि, ठाकरे ने मिरर से कहा, "उनकी पीड़ा इतनी व्यापक है कि प्रयास पर्याप्त नहीं हैं। मैंने अपने दोस्तों से भी मदद की अपील की है।
"कभी सपने में भी नहीं देखी डब्बा कारोबार की यह हालत"
बोरीवली के डब्बावाला गणेश गायकवाड़ (36) ने कहा कि वो और उनका भाई अब दूसरी नौकरी की तलाश में जुटे हैं। लॉकडाउन में उनकी अब तक की पूरी बचत खत्म हो गई है। वह चौकीदार या मजदूर की नौकरी की तलाश कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि अब मुश्किल ही लगता है कि संक्रमण के डर से डब्बा कारोबार फिर से परवान चढ़ेगा। उन्होंने कभी सपने में भी डब्बा कारोबार की इस बिगड़ी हालत के बारे में नहीं सोचा था।