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    #NewsBytesExclusive: देश की जेलों में रोजाना हो रही 5 कैदियों और बंदियों की मौत
    देश की जेलों में रोजाना हो रही 5 कैदियों और बंदियों की मौत।

    #NewsBytesExclusive: देश की जेलों में रोजाना हो रही 5 कैदियों और बंदियों की मौत

    लेखन भारत शर्मा
    Nov 25, 2021
    11:09 am

    क्या है खबर?

    जेलों की कठोर जीवन शैली कैदियों और बंदियों की शारीरिक और मानिसिक स्थिति पर बुरा असर डाल रही है।

    इसके कारण जेलों में कैदियों/बंदियों की मौतों का ग्राफ बढ़ रहा है। देश की जेलों में साल 2017 से 2019 के बीच विभिन्न कारणों से 5,291 कैदियों/बंदियों की मौत हुई। इनमें 4,762 मौतें स्वाभाविक और 529 मौतें अस्वाभाविक तौर पर हुई है।

    राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की रिपोर्ट में इसका खुलासा हुआ है।

    मौत

    जेलों में रोजाना औसतन पांच कैदियों/बंदियों की मौत हुई

    NCRB के डाटा के अनुसार, देश की जेलों में 1 जनवरी, 2017 से 31 दिसंबर, 2019 के बीच विभिन्न कारणों से 5,291 कैदियों/बंदियों की मौत हुई है।

    इस हिसाब से जेलों में रोजाना औसतन पांच कैदियों/बंदियों की मौत हुई है।

    इनमें साल 2017 में 1,671 कैदियों/बंदियों की मौत हुई थी। इसके बाद साल 2018 में मौतों का यह आंकड़ा बढ़कर 1,845 पर पहुंच गया, लेकिन 2019 में यह मामूली गिरावट के साथ 1,775 मौतों पर आ गया।

    सबसे ज्यादा

    उत्तर प्रदेश में हुई सबसे अधिक मौत

    उत्तर प्रदेश की जेलों में सबसे अधिक 1,259 (1,205 स्वाभाविक और 55 अस्वाभाविक रूप से) कैदियों/बंदियों की मौत हुई है।

    इसके बाद पंजाब में 437 (375 स्वाभाविक और 62 अस्वाभाविक रूप से), मध्य प्रदेश में 400 (383 स्वाभाविक और 17 अस्वाभाविक रूप से), महाराष्ट्र में 386 (359 स्वाभाविक और 27 अस्वाभाविक रूप से), पश्चिम बंगाल में 360 (324 स्वाभाविक और 36 अस्वाभाविक रूप से) और बिहार में 345 (326 स्वाभाविक और 19 अस्वाभाविक रूप से) कैदियों/बंदियों की मौतें हुई।

    जानकारी

    राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की जेलों में हुई 129 मौत

    राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के जेलों में इस अवधि में 129 कैदियों/बंदियों की मौत हुई थी। इनमें 102 मौतें स्वाभाविक कारणों से हुई थी, जबकि 27 मौतें अस्वाभाविक कारणों से हुई है। यहां किसी भी कैदी और बंदी की मौत अधिक उम्र के कारण नहीं हुई।

    स्वाभाविक मौत

    स्वाभाविक मौत में अधिक उम्र और बीमारी रही मौत का कारण

    इस अवधि में देश में जेलों में कुल 4,762 कैदियों/बंदियों की मौत स्वाभाविक कारण यानी अधिक उम्र या किसी बीमारी के कारण हुई है।

    इनमें 279 कैदियों/बंदियों की मौत तो अधिक उम्र होने के कारण हुई है, जबकि 4,398 कैदियों/बंदियों की मौतें विभिन्न बीमारियों के चपेट में आने से हुई है।

    ऐसे में यह आंकड़ा साबित करता है कि जेलों की जीवन शैली में शरीरिक बीमारियां बढ़ रही हैं और मरीज अपनी जान गंवा रहे हैं।

    बीमारी

    हृदय संबंधी बीमारियों से हुई सबसे अधिक मौतें

    देश की जेलों में बीमारियों से हुई 4,398 कैदियों/बंदियों की मौतों के मामलों में सबसे अधिक 1,165 मौतें हृदय संबंधी बीमारियों की चपेट में आने से हुई है।

    इसी तरह लंग्स से संबंधित बीमारियों के कारण 585, लीवर से जुड़ी बीमारी के कारण 200, किडनी से संबंधित बीमारी से 157, HIV से 128, कैंसर के कारण 225 और टीबी के कारण 369 मरीजों की मौत हुई है।

    इसी तरह अन्य मौतें अन्य बीमारियों की चपेट में आने से हुई है।

    आत्महत्या

    जेलों में प्रत्येक सप्ताह दो कैदियों/बंदियों ने की आत्महत्या

    NCRB के डाटा के अनुसार, इस अविध में जेलों में 529 कैदियों/बंदियों की मौतें अस्भाविक कारणों से हुई थी। इनमें से 354 कैदियों/बंदियों ने आत्महत्या जैसा गंभीर कदम उठाया है।

    चौंकाने वाले बात यह रही कि इनमें से 322 कैदियों/बंदियों ने फंदे से झूलकर अपनी जान दे दी।

    इसी तरह अन्य कैदियों और बंदियों ने खुद को गंभीर चोट पहुंचाकर या फिर विषाक्त का सेवन कर अपनी जान दी है। यह डाटा जेलों की स्थिति बयां करता है।

    सबसे ज्यादा

    आठ राज्यों की जेलों में हुई 64 प्रतिशत आत्महत्याएं

    देश की जेलों में तीन सालों में हुई आत्महत्या की कुल 354 वारदातों में से 64 प्रतिशत वारदातें आठ राज्यों की जेलों में हुई है। इनमें पंजाब में सबसे अधिक 53 कैदियों और बंदियों ने आत्महत्या जैसा कदम उठाया है।

    इसी तरह उत्तर प्रदेश की जेलों में 39, पश्चिम बंगाल में 33, दिल्ली में 23, हरियाणा में 24, कर्नाटक में 19, गुजरात में 18 और राजस्थान की जेलों में 16 कैदियों/बंदियों ने आत्महत्या कर अपनी जिंदगी को समाप्त कर लिया।

    हत्या

    तीन सालों में जेलों में हुई 30 कैदियों/बंदियों की हत्या

    कहने को तो जेलों में सुरक्षा के पुख्ता बंदोबस्त किए जाते हैं, लेकिन हकीकत इससे कहीं अलग हैं।

    जेलों में कैदियों और बंदियों के बीच हुए आपसी झगड़ों में 30 कैदियों/बंदियों की हत्या की जा चुकी है। सबसे अधिक हत्याएं समूहों की आपसी भिड़ंत में हुई है।

    पंजाब की जेलों में सबसे अधिक चार, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, ओडिशा और उत्तर प्रदेश में तीन-तीन, राजस्थान और दिल्ली में दो-दो तथा झारखंड, दमन और दीव तथा गोवा में एक हत्या हुई है।

    गैंगवार

    जेलों में प्रत्येक सप्ताह में हुई दो गैंगवार

    देश की जेलों में कैदियों और बंदियों के आपसी झगड़ों और गैंगवार की कुल 331 वारदातें हुई हैं। इनमें साल 2017 में 88, साल 2018 में 106 और साल 2019 में सबसे अधिक 137 वारदातें हुई थीं। इस हिसाब से जेलों में हर सप्ताह गैंगवार और झगड़ों की दो घटनाएं हुई थी।

    इस दौरान दिल्ली की जेलों में सबसे अधिक 119, बिहार में 53, पंजाब में 45 और मध्य प्रदेश 37 झगड़े और गैंगवार की घटनाए घटित हुई है।

    कारण

    जेलों में पहुंचने के बाद बिगड़ती है मानसिक स्थिति- डॉ थानवी

    जयुपर के वरिष्ठ मनोरोग विशेषज्ञ और थानवी न्यूरोसाइकियाट्री एंड साइकोथेरेपी सेंटर के संचालक डॉ विकास थानवी ने न्यूजबाइट्स हिंदी को बताया कि जेलों में पहुंचने के बाद मानसिक स्थिति पर बुरा असर पड़ता है। इसका बड़ा कारण जेलों में हार्ड कोर अपराधियों द्वारा नए कैदियो की प्रताड़ना, अधिक आत्मचिंतन और जेल की कठोर जीवन शैली से सामंजस्य नहीं बैठा पाना प्रमुख है।

    ऐसे में कैदी आत्महत्या जैसा कदम उठा लेते हैं।

    प्रक्रिया

    कैदी/बंदी की मौत के बाद क्या अपनाई जाती है प्रक्रिया?

    दौसा केंद्रीय कारागार के जेल अधीक्षक आर अनंतेश्वर ने न्यूजबाइट्स हिंदी को बताया कि जेल में किसी भी कारण से कैदी/बंदी की मौत होने पर सबसे पहले उसका पोस्टमार्टम कराया जाता है। इसके बाद उसके परिजनों को सूचना देकर मौत के कारणों से अवगत कराया जाता है।

    परिजनों के मौत के कारणों से संतुष्ट होने पर शव सुपुर्द कर दिया जाता है। यदि परिजन मौत पर संदेह जताते हैं तो उसकी विभागीय स्तर पर जांच भी कराई जाती है।

    अंतिम संस्कार

    परिजनों के इनकार करने पर जेल प्रशासन करता है अंतिम संस्कार

    जेल अधीक्षक आर अनंतेश्वर ने कहा कि यदि परिजन शव लेने से इनकार करते हैं तो पहचान के बाद जेल प्रशासन ने अपने स्तर पर कैदी/बंदी के धर्म के अनुसार अंतिम संस्कार करता है।

    इसी तरह अस्वाभाविक मौतों के मामलों में पुलिस जांच के साथ विभागीय स्तर पर भी जांच कराई जाती है। इसमें यदि किसी भी जेलकर्मी की लापरवाही पाई जाती है तो उसके खिलाफ विभागीय कार्रवाई अमल में लाई जाती है। हालांकि, ऐसा बहुत कम होता है।

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