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    क्या है तालिबान का शरिया कानून जिसे लेकर दहशत में है अफगानी महिलाएं?

    क्या है तालिबान का शरिया कानून जिसे लेकर दहशत में है अफगानी महिलाएं?
    लेखन भारत शर्मा
    Aug 18, 2021, 06:02 pm 1 मिनट में पढ़ें
    क्या है तालिबान का शरिया कानून जिसे लेकर दहशत में है अफगानी महिलाएं?
    क्या है शरिया कानून?

    तालिबान ने दो दशक बाद फिर से अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया है। इसी बीच बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि इस्लामिक शरिया कानून के हितैषी तालिबानियों की सत्ता में महिलाओं की स्थिति कैसी होगी? इस पर तालिबान ने महिलाओं को शरिया कानून के तहत काम करने का अधिकार देने की बात कही है। ऐसे में आइए जानते हैं कि तालिबान की नजर में शरिया कानून क्या है और इसका अफगानी महिलाओं की जिंदगी पर क्या असर पड़ेगा।

    तालिबान ने रविवार को किया था अफगानिस्तान पर कब्जा

    गौरतलब है कि काबुल पर कब्जे के साथ ही पूरा अफगानिस्तान तालिबान के कब्जे में आ गया है। तालिबान ने युद्ध समाप्ति की घोषणा करते हुए कहा है कि वह जल्द ही नई शासन व्यवस्था की जानकारी देगा। अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी और उनके स्टाफ ने रविवार को ही देश छोड़ दिया था। तालिबान का राज वापस आने के बाद अफगान महिलाएं सबसे ज्यादा डरी हुई हैं जिन्हें उसके पहले शासन में अत्याचारों का सामना करना पड़ा था।

    तालिबान ने किया महिलाओं को शरिया कानून के मुताबिक अधिकार देने का वादा

    तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा करने के बाद बुधवार को पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित की। इसमें तालिबान ने अपना एक उदार चेहरा दिखाने की कोशिश की और महिलाओं को शरिया कानून के हिसाब से काम करने का अधिकार देने की बात कही।

    आखिर क्या है शरिया कानून?

    शरिया कानून इस्लाम की एक कानूनी प्रणाली है। यह पूरी तरह से कुरान और इस्लामी विद्वानों के फैसलों पर आधारित है। यह मुस्लिमों की दिनचर्या के लिए आचार संहिता के रूप में कार्य करता है। इस कानून में सुनिश्चित किया जाता है कि मुस्लिम लोग जीवन के सभी क्षेत्रों में खुदा की इच्छाओं का पालन करते रहें। शरिया कानून कुरान और सुन्ना की शिक्षाओं पर निर्भर है। इसमें पैगंबर मोहम्मद की बातें, शिक्षाएं और अभ्यास के बारे में लिखा है।

    शरिया कानून की व्याख्या में है भिन्नता

    काउंसिल ऑफ फॉरेन रिलेशंस के स्टीवन ए कुक के अनुसार, शरिया कानून की अलग-अलग व्याख्याएं हैं। कुछ संगठनों ने शरिया कानून के तहत अंग-भंग और पत्थरबाजी को सही ठहराया है और क्रूर सजाओं के साथ-साथ विरासत, पहनावा और महिलाओं से स्वतंत्रता छीनने को भी जायज ठहराया है। हालांकि, अलग-अलग देशों में इससे अलग-अलग तरह से लागू किया गया है। बता दें इस्लामिक देश पाकिस्तान में इस तरह के शरिया कानून को लागू नहीं किया गया है।

    शरिया कानून के तहत अपराधों के लिए है तीन तरह की सजा का प्रावधान

    शरिया कानून के तहत ताजीर (कम गंभीर अपराध) में सजा मुस्लिम कोर्ट के जज के विवेक पर निर्भर करती है। इसी तरह किसस (गंभीर अपराध) में आरोपी को पीड़ित के बराबर सजा भुगतनी होती है। इसके अलावा हुदूद (सबसे गंभीर अपराध) में अपराधी के हाथ पैर काट देना, कोड़े मारना और सार्वजनिक मौत की सजा का प्रावधान है। इन अपराधों में चोरी, डकैती, अश्लीलता और शराब पीना शामिल है और इन्हें खुदा के कानून के खिलाफ माना जाता है।

    अधिकतर मुस्लिम देशों ने सजा देने के तरीकों से हटाया शरिया कानून

    इंस्टीट्यूट ऑफ ग्लोबल कल्चरल स्टडीज के अली मजरुई के अनुसार वर्तमान में अधिकतर मुस्लिम देशों ने शरिया कानून के पारंपरिक सजा देने के तरीकों को हटा दिया है और उन्होंने लोकतांत्रिक कानून बनाने शुरू कर दिए हैं। शरिया में सजा की प्रकृति बेहद गंभीर है।

    क्या है तालिबान के शरिया कानून की व्याख्या?

    तालिबान की साल 1996 से 2001 के बीच अफगानिस्तान में सत्ता के दौरान लागू किए गए शरिया कानूनों की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कड़ी निंदा हुई थी। उसके कानून में अपराधी को सार्वजनिक पथराव, हाथ-पैर काटना, कोड़े मारना और बीच चौराहे पर फांसी देना शामिल था। उसने गीत-संगीत को बैन कर दिया था और सभी पुरुषों को दाढ़ी रखना जरुरी था। इस बार भी कंधार रेडियो स्टेशन पर कब्जा करने के बाद तालिबान ने गाने बजाने पर पाबंदी लगा दी है।

    तालिबान ने शरिया कानून की आड़ में किए थे कई बड़े नरसंहार

    संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के मुताबिक, शरिया कानून के तहत तालिबान ने अफगानिस्तान में बड़े नरसंहार किए थे। उसने 1.60 लाख लोगों को भूखा रखने के लिए उनका अनाज जला दिया था। उसने पेंटिंग, फोटोग्राफी और फिल्म देखने पर भी प्रतिबंध लगा दिया था।

    महिलाओं के लिए अभिशाप है तालिबान का शरिया कानून

    तालिबान का शरिया कानून महिलाओं के लिए एक अभिशाप की तरह है। पिछले शासन में तालिबान ने इस कानून की आड़ में महिलाओं को नजरबंद करने के साथ उनकी शिक्षा पर पाबंदी लगा दी थी। आठ साल से बड़ी युवतियों और महिलाओं के लिए बुर्का अनिवार्य था और वो अकेले घर से बाहर नहीं जा सकती थीं। इसके अलावा उनका ऊंची एड़ी की सैंडल और जूते पहनना मना था और वह घर की खिड़की से बाहर नहीं देख सकती थी।

    महिला के नाम से नहीं रखा जा सकता था दुकानों का नाम

    तालिबान ने शरियान कानून की आड़ में अखबारों में महिलाओं की तस्वीर छापने, दुकानों में महिलाओं की तस्वीर लगाने और महिलाओं के नाम पर दुकानों के नाम रखने पर पाबंदी लगा दी थी। इसी तरह महिलाओं के सड़क पर निकलने, रेडियो पर बोलने, सार्वजनिक कार्यक्रमों में हिस्सा लेने और टीवी पर दिखाई देने को भी प्रतिबंधित कर दिया था। कानूनों का उल्लंघन करने वाली महिला पर स्टेडियम या चौराहों पर भीड़ बुलाकर कोड़े बरसाए जाते थे।

    नेल पॉलिस लगाने पर काट दिए जाते थे अंगूठे

    तालिबानी शासन में नेल पॉलिस लगाने वाली महिलाओं के अंगूठे के सिरे काट दिए जाते थे। अफगानिस्तान के लोगों के लिए तालिबान के प्रति वफादारी साबित करनी होती थी। बगावत करने वालों को चौराहे पर पत्थर से मारा जाता था या फांसी दी जाती थी।

    क्या तालिबान के वादों के बीच सही है अफगानी महिलाओं का डर?

    तालिबान ने इस बार खुद को अधिक उदारवादी दिखाने का प्रयास किया है। उसने महिलाओं के अधिकारों का सम्मान करने तथा महिलाओं को कानून के तहत काम करने और यूनिवर्सिटी स्तर तक की शिक्षा होने का अधिकार देने का भी वादा किया है, लेकिन अफगानिस्तान के लोगों को इस पर यकीन नहीं है। उनका कहना है कि तालिबान विदेशी मीडिया के सामने सही दिखने के लिए झूठे वादे कर रहा है और जल्द ही पुरानी स्थिति आ जाएगी।

    महिलाओं को अधिकार देने के वादे के बीच की हत्या

    तालिबान की कट्टरपंथी और रूढ़िवादी सोच के कारण उनके आश्वासन के बाद लोगों को महिलाओं को सुरक्षित अधिकार मिलने पर संदेह है। इसका कारण यह है कि तालिबानी लड़ाकों ने अपने वादे के बाद भी बुधवार को बुर्का पहने बिना बाजार गई एक महिला की बीच बाजार गोली मारकर हत्या कर दी। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या तालिबान को शरिया कानून के तहत बुर्का नहीं पहनने पर महिलाओं की हत्या करने का अधिकार मिल जाता है?

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