'तांडव' रिव्यू: दिलचस्प ट्विस्ट के बावजूद कहानी ने किया निराश, कलाकारों की अदाकारी ने जीता दिल
पिछले कुछ समय में डिजिटल प्लेटफॉर्म पर कई तरह का राजनीतिक ड्रामा पर्दे पर उतारा गया है। हाल में अली अब्बास जफर के निर्देशन में बनी वेब सीरीज 'तांडव' भी रिलीज हुई है। राजनीति पर आधारित इस सीरीज को लेकर लंबे समय से चर्चा थी। ट्रेलर आने के बाद से दर्शकों में इसे लेकर काफी उत्सुकता देखने को मिल रही थी। अब अमेजन प्राइम वीडियो पर यह सीरीज स्ट्रीम हो रही है। आइए जानते हैं कैसी है ये वेब सीरीज।
सत्ता लोभी नेता की कहानी है 'तांडव'
'तांडव' की कहानी है समर प्रताप सिंह (सैफ अली खान) की, जो देश के प्रधानमंत्री देवकी नंदन (तिग्मांशू धुलिया) का इकलौता बेटा है। उनकी पार्टी पिछले तीन बार से लगातार चुनाव जीतते आ रही है। समर को पूरा विश्वास है कि इस बार भी उनकी पार्टी ही सत्ता में आएगी। वो एक बेहद खतरनाक और भ्रष्ट नेता है, जो सत्ता पाने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है।
सत्ता हासिल करने के लिए समर रचता है खतरनाक साजिश
समर के साथ हमेशा उसका मददगार गुरपाल (सुनील ग्रोवर) रहता है, जो अपने मालिक के लिए इतना वफादार है कि उसके लिए कुछ भी कर सकता है। गुरपाल के लिए कोई भी काम बुरा नहीं है। वहीं, समर को लगता है कि इस बार उसे देश का प्रधानमंत्री बनाया जाएगा। इसके लिए वह एक जाल भी बिछाता है, लेकिन कहानी में ट्विस्ट तब आता है जब अपने बिछाए जाल में समर खुद ही फंस जाता है।
समर शुरू करता है नया खेल
समर एक घायल शेर की तरह उभरने की कोशिश करता है, जिसके लिए उसे कुछ और बुरे कामों को अंजाम देना पड़ता है। दूसरी ओर VNU के छात्रों का मुद्दा पनपने लगता है। इसमें यंग लीडर शिवा (मोहम्मद जीशान आयूब) उभरकर आता है। समर की नजर भी इस लड़के पर पड़ती है और वो कैसे भी शिवा को अपनी पार्टी में शामिल करना चाहता है। यहीं से समर का नया खेल शुरू होता है।
सैफ अली खान और डिंपल कपाड़िया ने जीता दिल
सैफ ने एक शातिर और सत्ता के भूखे नेता की भूमिका को बेहद शानदार ढंग से पर्दे पर उतारा है। वो पूरी सीरीज में बहुत स्टाइलिश दिखे हैं। हालांकि, एक वक्त के बाद उनका स्लोमोशन थोड़ा अजीब लगने लगता है। वहीं, डिंपल कपाड़िया का काम भी काबिल-ए-तारीफ है। 'तांडव' से उन्होंने डिजिटल डेब्यू किया है। डिंपल का अभिनय अलग है और उन्होंने साबित कर दिया कि वह किसी भी तरह के किरदार को बखूबी पर्दे पर उतार सकती हैं।
सुनील ग्रोवर ने किया कमाल
सुनील ग्रोवर इस बार बिल्कुल अलग अंदाज में दिखे हैं। गुरपाल 'तांडव' का सबसे शांत और खतरनाक शख्स है। वो कब, क्या कर जाए कोई इसका अंदाजा भी नहीं लगा पाता। सही मायनों में सिर्फ इसी किरदार से डरने की जरूरत है। वहीं, जीशान आयूब भी फिर दिल जीतने में कामयाब रहते हैं। उन्होंने एक निडर, ईमानदार छात्र का किरदार बखूबी निभाया है। उनके अलावा कृतिका कामरा, अपून सोनी, डीनो मोरिया, गौहर खान और स्टूडेंट्स का अभिनय भी शानदार रहा।
कई जगहों पर बोर करने लगती है कहानी
'तांडव' के जरिए अली अब्बास जफर ने भी डिजिटल प्लेटफॉर्म पर डेब्यू किया है। अली इस बात को बखूबी जानते हैं कि इस समय दर्शक क्या देखना चाहते हैं, लेकिन वो इसे गहराई से नहीं दिखा पाए। उन्होंने बहुत सारे ऐसे दिलचस्प मोड़ दिखाए है कि दर्शक इन्हें जानने के लिए उत्साहित रहते हैं, लेकिन इसके साथ ही बहुत सारा संयम भी रखने की जरूरत पड़ती है। सीरीज की शुरूआत काफी रोमांचक रहती है।
गंभीर मुद्दों के बावजूद बोरिंग लगती है कहानी
हालांकि, कहानी बहुत धीरे-धीरे आगे बढ़ती है, जो एक वक्त के बाद बोर करने लगती है। अली ने इसमें स्टूडेंट्स पॉलिटिक्स, किसान आंदोलन और राजनीतिक साजिश जैसे कई गंभीर उठाए हैं, लेकिन डायलॉग्स और कहानी पर उनकी पकड़ थोड़ी ढीली होने लगती है।
देखें या ना देखें
इस सीरीज से जितनी उम्मीदें थीं यह उन पर खरी नहीं उतर पाई। कमजोर कहानी और स्क्रीनप्ले आपको निराश करता है। हालांकि, सभी कलाकारों का अभिनय आपका दिल जीत लेगा। शुरुआत में सभी की अपनी-अपनी कहानियां चलती है, लेकिन अंत तक सभी पात्र एक-दूसरे के साथ जुड़ने लगते हैं। कुल मिलाकर कहें तो राजनीतिक पैंतरे देखने के लिए कम से कम एक बार 'तांडव' देखी जा सकती है। हम इसे पांच में से तीन स्टार दे रहे हैं।