'गुलमोहर' रिव्यू: रिश्तों की उधेड़बुन और खूबसूरती के बीच आपको आपके परिवार से मिलाती है फिल्म
मनोज बाजपेयी की फिल्म 'गुलमोहर' की राह दर्शक काफी समय से देख रहे थे और अब आखिरकार फिल्म की रिलीज के साथ यह इंतजार खत्म हो गया है। 3 मार्च को यह फिल्म हॉटस्टार पर आ गई है। इसे लेकर दर्शक इसलिए भी उत्साहित रहे क्योंकि इसके जरिए अपने जमाने की मशहूर अदाकारा शर्मिला टैगोर की एक दशक बाद पर्दे पर वापसी हुई। अब आपको यह फिल्म देखनी है या नहीं, इसका फैसला आप यह रिव्यू पढ़कर ले सकते हैं।
बत्रा परिवार के दरकते रिश्तों की कहानी
कहानी दिल्ली के गुलमोहर नामक बंगले में रह रहे बत्रा परिवार की है। तीन पीढ़ियां हैं और तीनों की सोच में बड़ा फासला है। घर की मुखिया कुसुम बत्रा (शर्मिला) हैं और वारिस अरुण (मनोज) हैं। समस्या तब आती है जब बत्रा परिवार अपना 34 साल पुराना घर छोड़ कहीं और जाने लगता है। कभी एकजुटता के धागे में बंधे इस परिवार के रिश्ते दरकने लगते हैं। किरदारों की परतें जैसे-जैसे खुलती हैं, रिश्तों का गुलमोहर और महकता जाता है।
रिश्तों के कई रंग दिखाती है फिल्म
परिवार ही हमारी प्रथम पाठशाला होता है। हमें शुरुआती शिक्षा यहीं से मिलती है। हालांकि, बड़े होते-होते हम अपनी जिंदगी में व्यस्त हो जाते हैं और परिवार की अहमियत धीरे-धीरे खत्म होने लगती है। इसी के साथ हम अपनी जड़ों और पारिवारिक मूल्यों को भूल जाते हैं और जब तब हमें परिवार की अहमियत का एहसास होता है, बहुत देर हो चुकी होती है। फिल्म की कहानी मां-बेटे, बाप-बेटे, पति-पत्नी और भाई-बहनों के बीच रिश्तों के तमाम रंग दिखाती है।
फिल्म देती है ये सीख
परिवार बनाए रखने के लिए बस खून का रिश्ता होना जरूरी नहीं होता, बल्कि प्यार, उम्मीद और आपस में बात करना भी जरूरी है। जब घर टूटता है तो कई परिवार टूटते हैं, इसलिए जरूरत है समय रहते परिवार को बिखरने से बचाने की।
शर्मिला की शानदार वापसी
शर्मिला का अपना एक अलग ही आभामंडल है। उनका आभामयी अभिनय फिल्म में भी ध्यान आकर्षित करता है। एक रईस और खुले विचारों वाली महिला का किरदार उन्होंने इतनी सहजता से पर्दे पर उतारा कि देखने वाला देखता रह जाए। पोती और बेटे के साथ उनका रोचक रिश्ता कहानी में चार चांद लगाता है। शर्मिला को देख ऐसा नहीं लगता कि वह अभिनय कर रही हों। यह उनका OTT डेब्यू भी है, जिसे कोई भी असानी से नहीं भूल पाएगा।
दिल में घर कर गए मनोज बाजपेयी
मनोज ने 'गुलमोहर' में कामकाजी बच्चों के पिता का किरदार निभाया और दिल में उतर गए। रईस आदमी के किरदार में वह बिल्कुल नहीं खटके। रिश्तों और जिम्मेदारियों से जूझते और सभी को खुश रखने की खातिर खुद को भुला देने वाले शख्स का किरदार उन्होंने पूरी शिद्दत से निभाया। फिल्म में मनोज की पत्नी के किरदार में सिमरन, बेटे की भूमिका में सूरज और शर्मिला के देवर के किरदार में अमोल पालेकर, सबके अभिनय में एक ईमानदारी झलकती है।
निर्देशन में चमके चित्तेला
फिल्म के लिए निर्देशक राहुल चित्तेला की जितनी तारीफ की जाए, उतनी कम है। एक तो उन्होंने कलाकारों का चयन बड़ी समझदारी से किया और दूसरा लगभग 2 घंटे में उन्होंने ऐसा बढ़िया पारिवारिक ड्रामा रचा, जिसने शुरुआत से लेकर अंत तक बांधे रखा। संयुक्त परिवार की उलझनों और चुनौतियों को जिस तरह से निर्देशक ने फिल्म में समेटा, वो काबिल-ए-तारीफ है। गंभीर दृश्यों के बीच छोड़ी गईं हंसी की फूलझड़ियां भी फिल्म देखते रहने के लिए उकसाती हैं।
फिल्म में हैं ये कुछ कमियां
फिल्म में थोड़ी बहुत कमियां भी हैं, जो नहीं होतीं तो इसे देखने में और आनंद आता। इसमें मनोरंजन की कमी थोड़ी खलती है। हालांकि, शर्मिला फिल्म की रौनक हैं, जो अपनी अदायगी और संवाद से यह कमी भरने की कोशिश करती हैं। इसके बावजूद टेंशन इस पर हावी रहती है। फिल्म का फर्स्ट हाफ धीमा है और इसमें घर के नौकरों के बीच पक रही प्रेम कहानी को अगर नहीं भी दिखाया जाता तो भी कोई फर्क नहीं पड़ता।
संगीत और सिनेमैटोग्राफी
फिल्म का संगीत कर्णप्रिया है और यह कहानी का पूरा साथ देता है। बैकग्राउंड म्यूजिक भी कहानी के साथ सुनने में अच्छा लगता है। दूसरी तरफ सिनेमैटोग्राफर की तारीफ करना भी बनता है, जिन्होंने दृश्यों को बड़ी सूझ-बूझ से कैमरे में कैद किया।
देखें या ना देखें?
क्यों देखें? यह फिल्म आपको न सिर्फ खुद से, बल्कि आपके परिवार से भी मुखातिब कराती है, जिसे शायद आप भूल गए हों। OTT पर ऐसी साफ-सुथरी फिल्में गिनी-चुनी ही हैं, इसलिए मौके से न चूकें। क्यों न देखें? अगर आप पारिवारिक फिल्मों से परहेज करते हैं या परिवार के भीतर चलने वालीं सरलताओं और जटिलताओं को देखने में आपकी दिलचस्पी नहीं तो यह फिल्म आपके लिए नहीं है। हमारी तरफ से फिल्म को 5 में से 4 स्टार।