'36 फार्महाउस' रिव्यू: कलाकारों की खिचड़ी और अधपकी कहानी, फिल्म ने किया निराश
क्या है खबर?
सुभाष घई काफी समय से फिल्म '36 फार्महाउस' को लेकर सुर्खियों में हैं। यह फिल्म ZEE5 पर आ गई है।
संजय मिश्रा, विजय राज, अश्विनी कलसेकर, माधुरी भाटिया, अमोल पराशर और बरखा सिंह ने इसमें अहम भूमिका निभाई है।
राम रमेश शर्मा ने फिल्म का निर्देशन किया है। सुभाष घई और शरद त्रिपाठी ने इसकी कहानी लिखी है। घई फिल्म के निर्माता भी हैं और उन्होंने इसके संगीत में भी योगदान दिया है।
आइए जानते हैं कैसी है '36 फार्महाउस'।
कहानी
कुछ ऐसी है फिल्म की कहानी
फिल्म की कहानी में एक अमीर महिला है, जो पति की मौत के बाद अपने हिस्से में आया 36 फार्महाउस अपने बड़े बेटे रौनक सिंह (विजय राज) के नाम कर देती है।
कहानी का रास्ता तब बदलता है, जब रौनक के दो भाई गजेंद्र और विजेंद्र भी फार्महाउस में अपना हिस्सा मांगते हैं। जय प्रकाश (संजय मिश्रा) 36 फार्महाउस का कुक बन जाता है।
इस अजीबोगरीब घालमेल में आगे क्या होता है, यह जानने के लिए आपको फिल्म देखनी होगी।
जानकारी
न्यूजबाइट्स प्लस (फैक्ट)
घई ने बतौर निर्माता इस फिल्म के जरिए छह साल बाद अपनी वापसी की है। उन्होंने आखिरी बार सलमान खान के साथ 2015 में रोमांटिक एक्शन फिल्म 'हीरो' बनाई थी। इस फिल्म से अथिया शेट्टी और सूरज पंचोली ने बॉलीवुड में कदम रखा था।
एक्टिंग
कलाकारों का कमजोर अभिनय
फिल्म में यूं तो विजय राज और संजय मिश्रा जैसे मंझे हुए कलाकार हैं, लेकिन गलती निर्देशक की है कि किसी से भी अभिनय नहीं कराया गया। सब अपने-अपने डायलॉग बोल खानापूर्ती कर रहे हैं।
संजय मिश्रा की कॉमेडी से ज्यादा हंसी आपको उनकी नौटंकी देख आएगी। कलाकार एक्टिंग कम ओवरएक्टिंग ज्यादा कर रहे हैं।
फिल्म में अमोल पराशर, माधुरी भाटिया, फ्लोरा सैनी और बरखा सिंह भी हैं, लेकिन किसी की मौजूदगी असर नहीं डालती।
सभी का अभिनय फीका रहा।
निर्देशन
कैसा रहा फिल्म का निर्देशन?
फिल्म का निर्देशन दोयम दर्जे का है। लगता है जैसे सुभाष घई ने निर्देशक राम रमेश शर्मा को पूरी छूट नहीं दी। कहानी तो लचर है ही, लेकिन निर्देशक ने और डिब्बा गोल कर दिया।
वह ना तो रोमांच पैदा करने में सफल रहे और ना ही कलाकारों से ढंग का काम करा पाए। फिल्म के कुछ सीन बेतुके लगते हैं।
लगता है मानों कोई कुछ भी किए जा रहा है। बची-खुची कसर खराब क्लाइमैक्स ने पूरी कर दी।
खामियां
फिल्म की बाकी कमियां
एक अरसे बाद सुभाष घई की कोई फिल्म आए। दर्शकों को फिल्म को लेकर बड़ी बेसब्री थी, क्योंकि घई के सिनेमा से दर्शकों को उम्मीदें बड़ी होती हैं, लेकिन घई ने फिल्म का बंटाधार कर दिया।
यूं तो घई फिल्म के हर पहलू से जुड़े रहे, लेकिन ना तो कलाकारों का कमाल दिखा और ना ही स्क्रिप्ट में दम।
फिल्म के बैकग्राउंड म्यूजिक से लेकर सिनेमैटोग्राफी तक में ऐसा कुछ खास नहीं है, जिसका अलग से जिक्र किया जाए।
निष्कर्ष
देखें या ना देखें?
अगर आप बॉलीवुड के शोमैन सुभाष घई की ऊंची दुकान के फीके पकवान का स्वाद चखना चाहते हैं तो आप फिल्म देख सकते हैं, लेकिन घई, जो एक जमाने में 'हीरो', 'खलनायक', 'राम लखन', 'परदेस', 'कर्ज' और 'ताल' जैसी सुपरहिट फिल्में दे चुके हैं, उन्होंने इस फिल्म में कोई रचनात्मकता नहीं दिखाई।
हमें तो एक घंटे 47 मिनट की यह फिल्म देखने की कोई सॉलिड वजह नहीं दिखती, इसलिए हमारी तरफ से '36 फार्महाउस' को डेढ़ स्टार।