
फिल्म 'शिद्दत' रिव्यू: केवल रोमांस के दीवानों को रास आएगी 'शिद्दत' की मोहब्बत
क्या है खबर?
सनी कौशल, राधिका मदान, मोहित रैना और डायना पेंटी जैसे कलाकारों के अभिनय से सजी फिल्म 'शिद्दत' डिज्नी प्लस हॉटस्टार पर रिलीज हो गई है। दो घंटे और 26 मिनट की इस फिल्म का ट्रेलर दर्शकों को बेहद पसंद आया था।
कुणाल देशमुख के निर्देशन में बनी 'शिद्दत' के निर्माता हैं भूषण कुमार और दिनेश विजान।
शिद्दत के भाव को फिल्म में किस हद तक पिरोया गया है और कलाकारों ने अपना मुरीद बनाया या नहीं, आइए जानते हैं।
कहानी
गौतम और इरा की शादी से शुरू होती है कहानी
इस फिल्म में दो कहानियां साथ चलती हैं। पहली कहानी में फ्रांस में भारतीय राजदूत गौतम (मोहित रैना) और इरा (डायना पेंटी) हैं। दोनों एक-दूसरे से जुदा हैं और यही बात दोनों को एक-दूसरे के प्रति आकर्षित करती है।
शादी वाले दिन गौतम कहता है कि वे दोनों एक-दूसरे के लिए ही बने हैं। पंजाब में शादी के बाद वे फ्रांस में सेटल हो जाते हैं, लेकिन तीन महीने में यह शादी तलाक की कगार पर पहुंच जाती है।
कहानी
दूसरी तरफ चलती है जग्गी के जुनूनी इश्क की दास्तां
दूसरी कहानी में देसी जग्गी (सनी कौशल) को हाई-फाई लड़की कार्तिका (राधिका मदान) से प्यार हो जाता है, लेकिन कार्तिका की लंदन में शादी हो रही है।
अब जग्गी अपना प्यार पाने की चाह में भारत से लंदन निकल पड़ता है। कहते हैं अगर किसी चीज को शिद्दत से चाहो तो सारी कायनात उसे मिलाने में जुट जाती है।
अब जग्गी की शिद्दत देख कायनात ने उसका साथ दिया या नहीं, ये जानने के लिए आपको फिल्म देखनी होगी।
अभिनय
कलाकारों का अभिनय
विक्की कौशल के भाई सनी कौशल का अभिनय बढ़िया है, लेकिन रोमांटिक हीरो की भूमिका में वह जंचे नहीं। उन्होंने शाहरुख के जमाने का रोमांस फील कराने की कोशिश तो की, लेकिन बात जमी नहीं।
दूसरी तरफ राधिका मदान की बॉडी लैंग्वेज भी रोमांटिक हीरोइन से मेल नहीं खाती।
डायना पेंटी का अभिनय औसत रहा, लेकिन मोहित रैना ने दिल जीत लिया। भारतीय डिप्लोमैट के रूप में उनका सहज अभिनय देखते ही बनता है। वह 'शिद्दत' का मजबूत पक्ष हैं।
निर्देशन
कैसा रहा निर्देशन पक्ष?
सलीके से कहानी कहने का हुनर तो कुणाल देशमुख के पास है, लेकिन 'शिद्दत' के साथ उन्होंने अपने इस हुनर का इस्तेमाल नहीं किया।
क्लाइमैक्स भी कमजोर है यानी आखिरी स्टेशन पर भी यह ठीक से नहीं पहुंची। फिल्म प्यार में जुनून, पागलपन और जिद की बात तो करती है, लेकिन कहानी में गहराई और वास्तविकता की कमी खलती है।
लगता है मानों शाहरुख की पुरानी रोमांटिक फिल्मों की तर्ज पर निर्देशक ने पूरी फिल्म का बंटाधार कर दिया।
खामियां
ये हैं फिल्म की कमियां
इस फिल्म को देख आप यही कहेंगे कि ऐसी जुनूनी प्रेम कहानियां पहले भी कई बार देखी हैं। 90 के दशक की कहानी को बस मॉर्डन टच दिया गया है।
संगीत कर्णप्रिय है, लेकिन यह भी कमजोर कहानी की भेंट चढ़ गया।
फर्स्ट हाफ में फिल्म पटरी पर चलती है, लेकिन सेकेंड हाफ में यह काफी खींची हुई और सुस्त लगने लगती है।
फिल्म की एडिटिंग में एडिटर ने थोड़ी और चुस्ती दिखाई होती तो यह उतनी उबाऊ ना लगती।
फैसला
देखें या ना देखें?
यह बात तो पक्की है कि 'शिद्दत' देख आपको फिल्म से शिद्दत वाला इश्क होने से रहा, क्योंकि फिल्म आज के समय से काफी पीछे की लगती है।
हां, अगर आप इश्क के दरिया में उतर चुके हैं या 90 के दशक के रोमांस का अहसास करना चाहते हैं तो यह फिल्म देख सकते हैं। रोमांटिक फिल्मों के शौकीनों पर इसके प्यार की खुमारी धीरे-धीरे ही सही, लेकिन चढ़ जाएगी।
हमारी तरफ से 'शिद्दत' को डेढ़ स्टार।