भारतीय रुपये में गिरावट जारी, डॉलर की कीमत पहली बार 81 रुपये से पार
क्या है खबर?
डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपये में गिरावट जारी है। शुक्रवार को गिरावट के साथ इतिहास में पहली बार एक डॉलर की कीमत 81 रुपये से ज्यादा पहुंच गई।
गुरुवार को सबसे कमजोर स्तर पर बंद होने के बाद शुक्रवार को शुरुआती कारोबार में रुपया 39 पैसे टूटा। इससे डॉलर की कीमत 81.18 रुपये हो गई।
गुरुवार को रुपये की हालत देखते हुए ये कयास लगाए जा रहे थे कि शुक्रवार को इसमें और गिरावट आ सकती है।
जानकारी
जानकार क्या कह रहे हैं?
जानकारों का कहना है कि फेडरल रिजर्व की तरफ से ब्याज दरों में बढ़ोतरी और भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की तरफ से उचित हस्तक्षेप की कमी के चलते रुपये में गिरावट देखी जा रही है।
कुछ समय तक बेहतर प्रदर्शन के बाद गुरुवार को एशियाई मुद्रा में रुपये सबसे ज्यादा गिरावट दर्ज करने वाली मुद्रा रही।
शुक्रवार को भारतीय मुद्रा के साथ-साथ ऑस्ट्रेलियाई मुद्रा और न्यूजीलैंड डॉलर में गिरावट देखी जा रही है।
अनुमान
आगे भी जारी रह सकती है गिरावट
विदेशी मुद्रा कारोबारियों का कहना है कि फेडरल रिजर्व की तरफ से दरें बढ़ने और यूक्रेन में जारी युद्ध के चलते निवेशक जोखिम नहीं उठा रहे हैं। दूसरी तरफ अमेरिकी मुद्रा की मजबूती, शेयर बाजार में गिरावट और कच्चे तेल के दाम भी रुपये की कीमत पर असर डाल रहे हैं।
कई जानकार मान रहे हैं कि घरेलू अर्थव्यवस्था में मजबूती आने के बाद भी रुपये में गिरावट का दौर जारी रह सकता है।
गिरावट
इस साल करीब 8.50 प्रतिशत टूट चुका है रुपया
भारतीय रुपया आज के शुरुआती कारोबार में 81.03 प्रति डॉलर पर खुला था और इसके बाद यह इतिहास में अपने सबसे कमजोर स्तर पर पहुंच गया। गुरुवार को यह 80.87 प्रति डॉलर पर बंद हुआ था। इस हिसाब में रुपये में 0.35 प्रतिशत गिरावट दर्ज की गई।
पिछले आठ सत्रों में से सात में रुपये में कमजोरी आई है। वहीं इस साल की बात करें तो भारतीय मुद्रा 8.48 प्रतिशत कमजोर हो चुकी है।
न्यूजबाइट्स प्लस (जानकारी)
रुपये के कमजोर होने से क्या असर पड़ता है?
रुपये के कमजोर होने का मतलब है कि अब भारत को विदेश से पहले जितना माल खरीदने पर अधिक पैसा खर्च करना पड़ेगा। आयातित सामान के महंगा होने का सीधा असर लोगों की जेब पर भी पड़ेगा।
महंगाई बढ़ने पर रेपो रेट में भी इजाफा होगा और बैंकों से मिलने वाला ऋण महंगा हो जाएगा। इसके अलावा रुपये के गिरने पर इक्विटी बाजारों में तेज गिरावट होती है और शेयर और इक्विटी म्यूचुअल फंड निवेश में कमी आती है।