
सेमीकंडक्टर के बाद अब लिथियम की कमी, EV सेगमेंट पर आ सकता है संकट
क्या है खबर?
बीते कुछ सालों में इलेक्ट्रिक वाहनों की जबरदस्त मांग बढ़ी है और इसके साथ ही इसके बैटरी में लगने वाले लिथियम की मांग में भी इजाफा हुआ है।
इस वजह से लिथियम की वैश्विक आपूर्ति में कमी देखी जा रही है। विशेषज्ञों के अनुसार यह कमी दशक के मध्य तक रहने की संभावना है।
सर्बिया की सरकार ने माइनिग कंपनी रियो टिंटो की एक लिथियम परियोजना के लाइसेंस को रद्द कर दिया है, जिससे यह संकट और बढ़ सकता है।
बयान
हरित समूहों के अनुरोध पर रोकी गई है परियोजना- सर्बिया सरकार
सर्बिया के प्रधानमंत्री एना ब्रनाबिक ने एक सम्मेलन में कहा कि सरकार का निर्णय विभिन्न हरित समूहों द्वारा 2.4 बिलियन डॉलर की जदर लिथियम परियोजना को रोकने के अनुरोध के बाद आया है।
आपको बता दें कि इस परियोजना के पूरे होने से रियो टिंटो दुनिया के 10 सबसे बड़े लिथियम उत्पादकों में से एक बन सकती थी। साथ ही बैटरी में इस प्रमुख घटक और इलेक्ट्रिक वाहनों की मांग को बढ़ा सकती थी।
जानकारी
इन जगहों से होती है लिथियम की आपूर्ति
लिथियम वर्तमान में हार्ड रॉक या नमकीन झीलों से निकाला जाता है।
हार्ड रॉक खदानों से उत्पादन में ऑस्ट्रेलिया दुनिया का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है। इसमें सबसे बड़ा पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया के ग्रीनबुश में स्थित टैलिसन लीथियम है, जिसके उत्पादन क्षमता 1.34 मिलियन टन प्रति वर्ष है। दूसरी सबसे बड़ी खदान पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया की पिलबारा मिनरल्स है।
वहीं, अर्जेंटीना, चिली और चीन मुख्य रूप से नमक की झीलों से इसका उत्पादन कर रहे हैं।
मांग
तेजी से बढ़ रही है मांग
ऑस्ट्रेलिया के उद्योग विभाग के अनुसार लिथियम कार्बोनेट का कुल वैश्विक उत्पादन दिसंबर, 2021 में 4,85,000 टन था, जो 2022 में बढ़कर 6,15,000 टन और 2023 में 8,21,000 टन होने का अनुमान लगाया गया है।
वहीं, क्रेडिट सुइस के विश्लेषण के मुताबिक, इस साल इसका उत्पादन 5,88,000 टन और 2023 में 7,36,000 टन होगा। इसमें से लगभग दो-तिहाई आपूर्ति सिर्फ इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए है। 2022 में 6,89,000 टन लिथियम की मांग सिर्फ EV बैटरी के लिए होगी।
प्रभाव
सेमीकंडक्टर की कमी से पहले ही प्रभावित है बिक्री
सेमीकंडक्टर की कमी के कारण 2022 में भी गाड़ियों की बिक्री में गिरावट आने की संभावना है।
इन्वेस्टमेंट इन्फॉर्मेशन एंड क्रेडिट रेटिंग एजेंसी ऑफ इंडिया (ICRA) ने बताया कि पैसेंजर सेगमेंट में हर साल की तुलना में अगले साल लगभग पांच लाख कम गाड़ियां बिकेंगी।
अगर ऐसा होता है तो अनुमान लगाया जा रहा है कि ऑटो सेक्टर को करीब 1,800 से 2,000 करोड़ रुपये का नुकसान होगा। वहीं, लिथियम की कमी इस आंकड़े को और बढ़ा सकती है।