#NewsBytesExpainer: क्या होती हैं सेल्फ ड्राइविंग गाड़ियां और ये कैसे काम करती हैं?
क्या है खबर?
दुनियाभर में ऑटोमोबाइल सेक्टर तेजी से प्रगति कर रहा है। कई दिग्गज वाहन निर्माता कंपनियां बिना ड्राइवर के चलने वाली सेल्फ ड्राइविंग तकनीक वाली गाड़ियां बना रही हैं तो कुछ उड़ने वाली गाड़ियों पर भी काम कर रही हैं।
ऐसे में क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर सेल्फ ड्राइविंग गाड़ियां होती क्या हैं और ये काम कैसे करती हैं? आज हम आपके लिए कार गाइड में सेल्फ ड्राइविंग गाड़ियों की जानकारी लेकर आये हैं।
कारें
क्या होती हैं सेल्फ ड्राइविंग कारें?
इस समय कई ऑटोमोबाइल कंपनियां सेल्फ ड्राइविंग गाड़ियां बनाने में लगी हैं। यह एक अत्याधुनिक तकनीक है, जो किसी कार को चालक के बिना भी चलने के काबिल बनाएगी।
यह तकनीक कार में लगे कई तरह के सेंसर और कैमरों की मदद से आसपास की सारी जानकारी हर मिलीसेकंड में कार में लगे एक आधुनिक कंप्यूटर तक पहुंचाती है। इससे कार की गति नियंत्रित होती है और गाड़ी अपनी दिशा भी खुद बदलती है।
काम
कैसे काम करती हैं सेल्फ ड्राइविंग गाड़ियां?
सेल्फ ड्राइविंग के लिए कई एल्गोरिदम, सेंसर, रडार, लेजर बीम, कैमरे, GPS जैसी ऑटोमैटिक तकनीकें साथ मिलकर काम करती हैं। ये तकनीकें गाड़ी को नेविगेट और संचालित करने का काम करती हैं और नेटवर्क कनेक्टिविटी के माध्यम से जुड़ी होती हैं।
रडार: काम करने के लिए सेल्फ ड्राइविंग तकनीक सबसे पहले रेडियो डिटेक्शन एंड रेंजिंग (रडार) सेंसर का उपयोग करके चलती वस्तुओं के स्थान, गति और दिशा का पता लगाने और निगरानी करने का काम करती है।
ड्राइविंग
कैमरे और माइक्रोफोन भी निभाते हैं अहम भुमिका
लिडार: लाइट डिटेक्शन एंड रेंजिंग (लिडार) लेजर की मदद से गाड़ी के आस-पास के 3D मॉडल को डिजाइन करने के लिए डाटा एकत्र करके कार में लगे कंप्यूटर को भेजता है।
कैमरे: इनका उपयोग आसपास की वस्तुओं की पहचान करने के लिए किया जाता है। इसके लिए इन कैमरों को मशीन लर्निंग या आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के साथ जोड़ा जाता है।
माइक्रोफोन: यह वाहनों के लिए हॉर्न, आपातकालीन सायरन आदि जैसी महत्वपूर्ण आवाजों की पहचान करने का काम करता है।
फायदे
सेल्फ ड्राइविंग गाड़ियों के फायदे
सेल्फ ड्राइविंग तकनीक से चालक की गलती से होने वाले दुर्घटनाओं को कम किया जा सकता है। यह ऑटोनोमस तकनीक है। ऐसे में इसमें ध्यान भटकने या लापरवाही का खतरा कम रहता है।
सेल्फ ड्राइविंग तकनीक काफी फायदेमंद है। इसकी मदद से कार अपने आप पार्क हो जाती है। ऐसे में गाड़ी पार्क करते समय होने वाली परेशानी से बचा जा सकता है।
साथ ही सेल्फ गाड़ियों से ट्रैफिक में गाड़ी चलाने जैसी कई परेशानियों से बचा जा सकता है।
नुकसान
सेल्फ ड्राइविंग गाड़ियों के नुकसान
सेल्फ ड्राइविंग गाड़ियों में कई सेंसर और कैमरों का इस्तेमाल किया जाता है। इस वजह से गाड़ियों की लागत बढ़ जाती हैं। यही वजह है कि सेल्फ-ड्राइविंग ड्राइविंग तकनीक के लेवल के बढ़ने के साथ ही गाड़ियों की कीमतें भी बढ़ने लगती हैं।
सेल्फ ड्राइविंग गाड़ियों में कई तरह के इलेक्ट्रिक पार्ट्स का इस्तेमाल किया जाता है और अगर किसी भी कारण से कोई पार्ट काम करना बंद कर दे तो बड़ी दुर्घटना हो सकती है।
ADAS
ADAS और सेल्फ ड्राइविंग में क्या अंतर है?
ADAS के तहत ड्राइवर बहुत सारी सुविधाओं के साथ ड्राइविंग करता है। इसमें हाथों को स्टीयरिंग व्हील पर या पैरों को पैडल पर रखने की आवश्यकता नहीं होती, लेकिन ड्राइविंग का अंतिम निर्णय ड्राइवर का ही होता है।
दूसरी तरफ ऑटोमैटेड ड्राइविंग में पूरा कंट्रोल कार के सिस्टम के हाथों में होता है। इसमें ज्यादा पावरफुल कंप्यूटर और AI का इस्तेमाल होता है जो इमरजेंसी की स्थिति में भी सिस्टम खुद निर्णय ले सकते हैं।
जानकारी
ये कंपनियां बना रही सेल्फ ड्राइविंग गाड़ियां
दिग्गज कार कंपनी BMW, टेस्ला, पोर्शे, फॉक्सवैगन और मर्सिडीज जैसी कंपनियां सेल्फ ड्राइविंग गाड़ियां बना रही है। हालांकि, आपको बता दें कि अभी बिना ड्राइवर चलने वाली गाड़ियां रोड-लीगल नहीं हैं, लेकिन ये कंपनियां ADAS के साथ ऑटो पायलट की सुविधा दे रही हैं।
चुनौती
भारत में सेल्फ ड्राइविंग को लेकर आ चुनौती आ सकती है?
इस नई सुरक्षा तकनीक को भारत में सही तरीके से काम करने और सफल होने में कई सारी दिक्कतों का सामना भी करना पड़ रहा है। भारत की ज्यादातर सड़कों पर लेन मार्किंग नहीं है, जिससे लेन कीप असिस्ट में दिक्कत हो रही है।
केवल कुछ कंपनियों द्वारा इस सिस्टम के इस्तेमाल से भारतीय सड़कों की स्थिति और ट्रैफिक के बारे में कम डाटा इकट्ठा हो पा रहा है। सड़कों पर अत्याधिक भीड़ भी एक चुनौती है।