#NewsBytesExplainer: कैसे डिजाइन की जाती हैं गाड़ियां? जानिए इसकी पूरी प्रक्रिया
आपने सड़कों पर अलग-अलग लुक वाली गाड़ियां तो देखी ही होगी, लेकिन क्या आपने कभी यह सोचा है कि आखिर ये गाड़ियां कैसे डिजाइन की जाती है या इसका तरीका क्या होता है? अगर नहीं तो आज हम आपके लिए कार गाइड में गाड़ियों को बनाने की प्रक्रिया की जानकारी लेकर आए हैं। इस प्रक्रिया को ऑटोमोटिव डिजाइन प्रक्रिया कहा जाता है, जिसकी मदद से किसी भी गाड़ी के स्केच से लेकर प्रोडक्शन मॉडल को तैयार किया जाता है।
क्या है ऑटोमोटिव डिजाइन प्रक्रिया?
ऑटोमोटिव डिजाइन प्रक्रिया की मदद से किसी भी वाहन को शानदार लुक दिया जाता है, जिससे वाहन देखने में आकर्षक लगते हैं। इस प्रक्रिया में वाहनों के बाहरी और अंदर के लुक को डिजाइन जाता है। इसके अलावा इसमें यह भी विचार किया जाता है कि वाहन के अलग-अलग भागों पर किस तरह के धातु, प्लास्टिक और कपड़े के प्रकार, पेंट पैटर्न का इस्तेमाल किया जाता है। इसमें गाड़ी के ऐरोडायनेमिक्स का भी ध्यान रखा जाता है।
कई बातों का रखा जाता है ध्यान
वाहन बनाते समय इन बातों का विशेष ध्यान रखा जाता है- 1- सरफेस कर्वेचर- सरफेस कर्वेचर यानी वाहन की हर सतह को एक कर्व देना, जिससे इसमें कहीं नुकीला कोना न रह जाए। आपने ध्यान दिया होगा कि वाहन के बोनट, बंपर और रूफ जैसे सभी पार्ट्स अंत में थोड़े मुड़े होते हैं। 2- शोल्डर- शोल्डर यानी कंधा, हर गाड़ियों में शोल्डर जरूरी है। इसे कार की लंबाई के हॉरिजोंटल रखा जाता है। यह वाहन का सबसे चौड़ा हिस्सा है।
आकार और वेज का ध्यान देना भी है जरुरी
3: आकार देना- किसी भी गाड़ी को आकार देना एक कठिन कार्य है। इसमें कर्व का ध्यान रखते हुए बेहतर ऐरोडायनेमिक्स वाली कार को आकार दिया जाता है। यहां विंडस्क्रीन के एंगल, पीछे और सामने के ओवरहैंग को छुपाना जैसे कार्य होते हैं। 4: वेज- वेज किसी भी वाहन के शोल्डर की रेखा पर पाए जाने वाले बॉडीवर्क के ऊपरी भाग पर हल्का-सा कोण होता है। गाड़ी बनाते समय इसका भी ध्यान रखा जाता है।
पैकेजिंग और पहियों का इस्तेमाल
5: पैकेजिंग- पैकेजिंग में वाहन के सभी कल-पुर्जों को उनके आकार में फिट किया जाता है। इससे वाहन को संतुलन मिलता है। पैकेजिंग के दौरान डिज़ाइनर यह ध्यान रखता है कि गाड़ी का इंजन कहां होगा और यात्री किस तरफ बैठेंगे, जिससे गाड़ी तेज स्पीड में भी संतुलित रहे। 6: पहिये- वाहन डिजाइन करते समय इस बात का भी विशेष ध्यान दिया जाता है कि सस्पेंशन के साथ पहिये ज्यादा ऊपर या नीचे ना जाएं।
वाहन डिजाइन करने की क्या है प्रक्रिया?
किसी भी गाड़ी को कई चरणों में डिजाइन किया जाता है। 1: रेंडर डिजाइन- किसी भी गाड़ी को डिजाइन करते समय सबसे पहले उसकी रेंडर इमेज बनाई जाती है। इसमें गाड़ी की कई स्केच इमेज तैयार की जाती है, जिससे गाड़ी के लुक की जानकारी मिलती है। 2: सही पैकेजिंग- स्केच के बाद निर्माता अलग-अलग कल-पुर्जों को फिट करने पर विचार करते हैं। इसमें इंजन, सेफ्टी पार्ट्स और पावरट्रेन जैसी हर छोटी-बड़ी चीजों की जगह निर्धारित होती है।
प्रोडक्शन के पहले तैयार होता है 3D और क्ले मॉडल
3: 3D मॉडल- स्केच इमेज और पैकेजिंग के आधार पर कंप्यूटर में गाड़ी की 3-डायमेंशनल इमेज तैयार किया जाता है। इसमें गाड़ी के हर पार्ट्स को उसकी सही जगह पर फिट कर देखा जाता है। 4: क्ले मॉडल- कंप्यूटर में 3D मॉडल बनाने के बाद गाड़ी के क्ले मॉडल को तैयार किया जाता है। इसमें मिट्टी से एक प्रोडक्शन मॉडल का प्रोटोटाइप तैयार किया जाता है। इससे डिजाइनर यह तय कर पाते हैं कि गाड़ी बनने के बाद कैसी लगेगी।
बाहरी लुक के आधार पर तैयार होता है केबिन
5: केबिन का मॉडल- बाहरी डिजाइन तय हो जाने के बाद अब काम शुरू होता है गाड़ी के केबिन को डिजाइन करने की। इसके लिए भी स्केच तैयार किया जाता है। इसमें गाड़ी के बाहरी लुक को ध्यान में रखते हुए इसे डिजाइन किया जाता है। इसके बाद केबिन का भी 3D मॉडल और क्ले मॉडल तैयार किया जाता है। बता दें कि कई कंपनियां क्ले मॉडल की जगह पॉलीमर मॉडल भी तैयार करती हैं।
लाइटिंग और रंगों का चुनाव
6: लाइटिंग- गाड़ी का क्ले मॉडल तैयार होने के बाद इसके बाहरी और अंदर के हिस्सों में लाइट्स और शीशे लगाए जाते हैं, जिससे यह जानकारी मिलती है कि लाइट्स के साथ गाड़ी कैसी दिखेगी। 7: कार कलर और मैटेरियल- प्री-प्रोडक्शन क्ले मॉडल तैयार होने के बाद गाड़ी के रंगों का चुनाव किया जाता है। इसमें तय किया जाता है कि गाड़ी की बॉडी और केबिन किस मैटेरियल की बनेगी और इसमें कौन-कौन से रंगों का इस्तेमाल किया जाएगा।
टेस्टिंग और अंतिम मॉडल का उत्पादन
8: टेस्टिंग:- कार के रंग और मैटेरियल तय हो जाने के बाद इनकी टेस्टिंग की जाती है और हर संभव प्रयास किया जाता है कि हर तरह के वातावरण को झेल सके और जल्दी खराब ना हों। 9: अंतिम मॉडल का उत्पादन:- टेस्टिंग के बाद अब गाड़ी के अंतिम प्रोडक्शन मॉडल को तैयार किया जाता है। इसमें तय मैटेरियल के हिसाब से गाड़ी के बाहरी और अंदरूनी पार्ट्स बनाये जाते हैं और इन्हे साथ जोड़ा जाता है।
मैनजेमेंट करती है अंतिम प्रोडक्शन मॉडल की जांच
डिजाइनरों और इंजीनियरों द्वारा गाड़ी का प्रोडक्शन मॉडल तैयार करने के बाद इसे मैनेजमेंट के पास ले जाया जाता है। यहां गाड़ी की अच्छे तरह से जांच होती है और अगर यह मॉडल मैनजेमेंट को पसंद आता है तो फिर इस गाड़ी का उत्पादन शुरू किया जाता है। अगर मैनेजमेंट को गाड़ी पसंद नहीं आती तो फिर गाड़ी का उत्पादन नहीं किया जाता और कंपनी फिर से गाड़ी के नए स्केच मॉडल से इसकी शुरुआत करती है।