
कारों में लगती हैं ये लाइटें, हैलोजन और LEDs के अलावा और भी हैं कई विकल्प
क्या है खबर?
हेडलाइट्स कार का एक बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। ये एक तरह से कार की आंखें हैं। इनके बिना रात में या खराब मौसम में कार चलाना नामुमकिन है।
आज हम तकनीक में इतना आगे बढ़ गए हैं कि कारों में हमें ऑटोमेटिक लाइटें भी देखने को मिल रही हैं। परंतु एक समय था जब कारों में कार्बाइड गैस से जलने वाली लाइटें लगती थीं।
चलिए जानते हैं मौजूदा समय में कारों में प्रयोग की जाने वाली हेडलाइट्स के बारे में।
#1
हैलोजन
हैलोजन हेडलैम्प्स हमारे देश में सबसे ज्यादा प्रयोग किए जाते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि यह अन्य प्रकार के हेडलैम्प्स से सस्ते होते हैं।
इन हेडलैम्प्स में हैलोजन गैस और टंगस्टन फिलामेंट से भरा एक कैप्सूल नुमा ग्लास होता है।
इन्हें चालू करने पर बिजली टंगस्टन फिलामेंट से होकर गुजरती है जो अंदर गर्मी बनाती करती है और बल्ब के अंदर का फिलामेंट चमकने लगता है।
हैलोजन हेडलैम्प्स पीली रोशनी देते हैं।
#2
जेनॉन या HID हेडलैम्प्स
जेनॉन या HID (हाई डेंसिटी डिस्चार्ज) हेडलैम्प्स CFL या कॉम्पैक्ट फ्लोरोसेंट लाइट्स की तरह होते हैं जिनका उपयोग हम LEDs के आने से पहले अपने घरों में करते थे।
इनके अंदर फिलामेंट की जगह जेनॉन गैस होती है। जब इनमें उच्च वोल्टेज को दो इलेक्ट्रोड से गुजारा जाता है, तो गैस चमकने लगती है।
ये हैलोजन की तुलना में ज्यादा रोशनी करते हैं लेकिन इन्हें गर्म होने में कुछ समय लगता है।
HID हेडलैम्प्स मे नीली-सफेद रोशनी होती है।
#3
LED
आज अधिक से अधिक ऑटोमोबाइल निर्माता कंपनियां अपनी कारों में LED लाइटिंग को अपना रहे हैं। LED को लाइट एमिटिंग डायोड कहा जाता है।
ये आज अन्य प्रकार के हेडलैम्प्स की तुलना में बहुत प्रचलित हैं। इनमें किसी प्रकार की कोई आग नहीं होती और ये बहुत कम बिजली का प्रयोग करते हैं।
इन्हें छोटे से छोटे आकार में भी बदला जा सकता है। इसी वजह से इन्हें अधिकांश DRLs (डे-टाइम रनिंग लाइट्स) में प्रयोग किया जाता है।
#4
मैट्रिक्स हेडलैम्प्स
मैट्रिक्स हेडलैम्प्स को अडैप्टिव LED कहा जाता है।
इनमें एक कैमरे के साथ कई अलग-अलग LEDs का प्रयोग किया जाता हैं।
इसका कैमरा सामने से आने वाले वाहनों पर लगातार नजर रखता है। जैसे ही सामने कोई कार आती दिखाई देती है तो इसका सिस्टम उस कार पर रोशनी डालने वाली एक LED को बंद कर देता है ताकि सामने वाला चकाचौंध न हो।
इससे ड्राइवर को लो-बीम पर स्विच करने की आवश्यकता नहीं होती, क्योंकि यह ऑटोमेटिक होता है।