कम घातक क्यों है ओमिक्रॉन वेरिएंट, इसे लेकर हमें अभी तक क्या-क्या पता है?
क्या है खबर?
कोरोना वायरस के ओमिक्रॉन वेरिएंट ने 2022 की सामान्य शुरूआत करने की दुनिया की योजनाओं पर पानी फेर दिया है और वैश्विक स्तर पर हर रोज रिकॉर्ड मामले दर्ज किए जा रहे हैं।
ये वेरिएंट अब तक का सबसे अधिक संक्रामक वेरिएंट हैं और इसे डेल्टा वेरिएंट से भी कई गुना अधिक संक्रामक बताया जा रहा है। राहत की बात ये है कि ये कम घातक साबित हो रहा है।
इसका क्या कारण हो सकता है, आइए जानते हैं।
आम राय
ओमिक्रॉन के कम घातक होने के क्या संकेत हैं?
नवंबर में दक्षिण अफ्रीका में ओमिक्रॉन वेरिएंट के पकड़ में आने के बाद कई स्टडीज में इसके अन्य वेरिएंट्स के मुकाबले हल्की बीमारी करने की बात सामने आ चुकी है।
दुनियाभर में ओमिक्रॉन के मामले तेजी से बढ़ने के बावजूद अस्पतालों में भर्ती लोगों की संख्या में खास वृद्धि नहीं हुई।
शुरू में इसका कारण मुख्य तौर पर युवाओं में संक्रमण माना गया, लेकिन बाद में साफ होने लगा कि ओमिक्रॉन कम घातक है। हालांकि इसका कारण साफ नहीं हुआ।
कारण
कम घातक क्यों साबित हो रहा ओमिक्रॉन?
चूहों और हैम्स्टर्स (चूहे जैसे जानवर) पर की गई स्टडीज में सामने आया है कि ओमिक्रॉन मुख्य तौर पर ऊपरी वायुमार्ग, नाक, गले और सांस की नली में संक्रमण करता है और ये फेफड़ों को कम नुकसान पहुंचाता है। यही इस वेरिएंट के कम घातक होने का कारण माना जा रहा है।
अन्य वेरिएंट्स फेफड़ों में पहुंच कर इंसान को बेहद बीमार कर देते हैं और यही मौत का कारण बनता है। ओमिक्रॉन फेफड़ों को इतना संक्रमित नहीं करता।
स्टडीज
जानवरों पर हुई स्टडीज में क्या सामने आया?
जापानी और अमेरिकी वैज्ञानिकों के एक समूह ने बुधवार को जारी की गई अपनी रिपोर्ट में कहा कि जिन चूहों और हैम्स्टर्स को ओमिक्रॉन से संक्रमित किया गया, उनमें अन्य वेरिएंट्स के मुकाबले फेफड़ों में कम नुकसान और वजन में कम कमी पाई गई और उनके मरने की संभावना भी कम रही।
वैज्ञानिक सीरियाई हैम्स्टर्स से संबंधित नतीजों से खासतौर पर हैरान हुए क्योंकि अन्य सभी वेरिएंट्स से ये हैम्स्टर्स गंभीर तौर पर बीमार होते हैं।
अन्य नतीजे
स्टडीज में और क्या-क्या सामने आया?
वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी के वायरस विशेषज्ञ डॉ माइकल डायमंड और उनके साथियों की स्टडी में सामने आया कि ओमिक्रॉन से संक्रमित होने पर हैम्स्टर्स की नाक में कोरोना वायरस का उतना ही स्तर था, जितना अन्य वेरिएंट्स से संक्रमित होने पर होता है, हालांकि उनके फेफड़ों में कोरोना वायरस का स्तर अन्य वेरिएंट्स के मुकाबले मात्र 10 प्रतिशत था।
हांगकांग यूनिवर्सिटी की स्टडी में भी फेफड़ों में ओमिक्रॉन के अन्य वेरिएंट्स के मुकाबले कम तेजी से बढ़ने की बात सामने आई।
संभावित कारण
ओमिक्रॉन के फेफड़ों को कम नुकसान पहुंचाने का क्या कारण है?
कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के वायरस विशेषज्ञ रविंद्र गुप्ता की टीम के विश्लेषण में इसकी संभावित वजह पता चलती है।
दरअसल, फेफड़ों की सतह पर TMPRSS2 नामक एक प्रोटीन पाया जाता है। ये प्रोटीन कोरोना वायरस को सेल्स में घुसने में मदद करती है।
गुप्ता की टीम ने पाया कि ये प्रोटीन ओमिक्रॉन को अच्छे से नहीं पकड़ पाता और इसी कारण ये फेफड़ों को अधिक संक्रमित नहीं करता।
फिलहाल यही ओमिक्रॉन के कम घातक होने का कारण माना जा रहा है।