कोरोना वैक्सीन लगवा चुके लोगों में हो सकते हैं सामान्य लोगों जितने ही वायरस- अध्ययन
पूरी दुनिया को घुटनों पर लाने वाली कोरोना महामारी से निजात पाने के लिए विशेषज्ञ लगातार वैक्सीन लगवाने की अपील कर रहे हैं। उनका कहना है कि वैक्सीन से महामारी से निजात पाई जा सकती है। इसी बीच मैसाचुसेट्स के वैज्ञानिकों द्वारा महामारी के प्रकोप की जानने के लिए किए गए अध्ययन में हैरान करने वाले तथ्य सामने आए हैं। अध्ययन के अनुसार वैक्सीन लगवा चुके लोगों में भी वायरस का स्तर सामान्य लोगों जितना ही निकल रहा है।
वैज्ञानिकों ने सबसे अधिक वैक्सीनेशन दर वाले क्षेत्र में किया अध्ययन
इंडिया टुडे के अनुसार, अब तक कहा जा रहा था कि वैक्सीन लगवाने वाले लोगों में वायरस का स्तर कम होता है और वह दूसरे तक संक्रमण नहीं फैला सकते हैं। इसकी जांच करने के लिए मैसाचुसेट्स के वैज्ञानिकों ने क्षेत्र के सबसे अधिक वैक्सीनेशन दर वाले प्रोविंसटाउन में वैक्सीन लेने वाले और नहीं लेने वाले संक्रमित लोगों में वायरस के स्तर का पता लगाने के लिए अध्ययन किया था। यहां वैक्सीनेशन के बाद करीब 900 लोग संक्रमित हुए थे।
वैज्ञानिकों ने 470 लोगों पर किया था अध्ययन
इस अध्ययन में प्रोविंसटाउन उत्सव के दौरान बार, रेस्तरां, गेस्ट हाउस और किराये के घरों जश्न मनाने वाले 470 लोगों के सैंपल लिए गए थे। इसमें से तीन चौथाई ने वैक्सीन की दोनों खुराकें ले रखी थी। जांच में वैक्सीनेशन वाले लोगों में अन्य लोगों के बराबर ही वायरस का स्तर पाया गया। इनमें से 80 प्रतिशत में खांसी, सिरदर्द, गले में खराश, मांसपेशियों में दर्द और बुखार जैसे लक्षण थे। ये लक्षण फिर धीरे-धीरे गंभीर हो गए।
अध्ययन के बाद वैज्ञानिकों ने यह निकाला निष्कर्ष
वैज्ञानिकों के अध्ययन में सामने आया कि वैक्सीन लगवाने के बाद कोरोना के डेल्टा वेरिएंट से संक्रमित लोगों में वायरस का स्तर वैक्सीन नहीं लगवाने वाले लोगों के बराबर ही था। इस डेटा ने वैज्ञानिकों की चिंता बढ़ा दी और उन्होंने सरकार को डेल्टा वेरिएंट के प्रकोप वाले क्षेत्रों के साथ लोगों को सामान्य क्षेत्रों में भी मास्क लगाने के लिए पाबंद करने का सुझाव दिया है। उन्होंने कहा कि वैक्सीनेशन भी लोगों को पूरी तरह नहीं बचा सकता है।
"वैक्सीनेशन के बाद लापरवाही बरतना रही सबसे बड़ी गलती"
प्रोविंसटाउन में वैक्सीनेशन के बाद संक्रमित होने वालों में से एक ट्रैविस डेगनैस ने कहा, "वैक्सीनेशन के बाद हवा के लिए सावधानी छोड़ना और छुटि्टयों के दौरान भीड़ के साथ देर तक पार्टी करना मेरी सबसे बड़ी गलती रही है।" उन्होंने कहा कि वैक्सीनेशन को लेकर कहा जा रहा था कि वैक्सीन लगवाने के बाद स्थिति सामान्य हो जाती है, लेकिन ऐसा नहीं है। वैक्सीनेशन का मतलब सामान्य की ओर कुछ कदम बढ़ना है और सावधानी जरूरी है।
अध्ययन से स्पष्ट होता है वारयर का स्तर- रासमुसेन
सस्केचेवान यूनिवर्सिटी के वायरोलॉजिस्ट डॉ एंजेला रासमुसेन ने कहा कि इस अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि वैक्सीन ले चुके लोगों में सामान्य लोगों जितना वायरस का स्तर है, लेकिन यह स्पष्ट नहीं होता कि वह दूसरे में संक्रमण फैला रहे हैं।
अध्ययन के बाद CDC ने बढ़ाई सख्ती
मैसाचुसेट्स के वैज्ञानिकों के अध्ययन और सलाह के बाद जहां प्रोविंसटाउन में घर में भी मास्क लगाने की आवश्यकता पर जोर दिया है, वहीं रोग नियंत्रण और रोकथाम के लिए केंद्र (CDC) भी कोरोना प्रोटोकॉल में बदलाव पर विचार कर रहा है। इसके अलावा CDC ने मास्क को अनिवार्य कर दिया है और लोगों को जल्द से जल्द वैक्सीनेशन के लिए प्रेरित कर रहा है। इसका कारण है कि डेल्टा वेरिएंट के कारण संक्रमण तेज हो रहा है।
CDC ने किया अध्ययन पर टिप्पणी से इनकार
एक ओर जहां अध्ययन के आधार पर CDC ने सख्ती बरतना शुरू कर दिया है, वहीं दूसरी ओर उसके अधिकारियों ने इस पर किसी भी प्रकार की टिप्पणी से इनकार किया है। इस अध्ययन के निष्कर्ष के अनुसार वैक्सीनेशन पर विपरीत असर पड़ सकता है और वैक्सीन लगवा चुके लोग भी संक्रमण फैला सकते हैं। ऐसे में CDC ने इस अध्ययन पर कुछ बोलने की जगह लोगों को जल्द से जल्द वैक्सीन लगवाने के लिए कहा है।
वैक्सीनेशन पर निर्णायक सबूत नहीं है अध्ययन- वैज्ञानिक
अध्ययन के अनुसार वैक्सीनेशन के बाद डेल्टा वेरिएंट से संक्रमित होने वाले लोग अन्य लोगों को संक्रमित करने, उनके अस्पताल में भर्ती होने और मौत का ग्राफ बढ़ा सकते हैं। हालांकि, इसको लेकर CDC ने घर में मास्क लगाने का समर्थन किया है, लेकिन वैज्ञानिक इस अध्ययन से सहमत नहीं है। उनका कहना है कि प्रोविंसेटाउन पर किया गया अध्ययन इस बात का पुख्ता सुबूत नहीं है कि वैक्सीन ले चुके लोग नए संक्रमण का महत्वपूर्ण स्रोत हैं।
अध्ययन से साबित नहीं होते वैज्ञानिक सुबूत
जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी के सार्वजनिक स्वास्थ्य शोधकर्ता जेनिफर नुजो ने कहा, "CDC किसी भी बात की सिफारिश करने के लिए वैज्ञानिक तथ्यों पर जोर देता है और प्रोविंसेटाउन के अध्ययन में वैज्ञानिक सुबूतों का पूरी तरह से अभाव रहा है।"