क्या सामान्य से कम मात्रा में खुराक देकर वैक्सीन की कमी पूरी की जा सकती है?
क्या है खबर?
ब्राजील में 2018 में येलो फीवर का प्रकोप फैला था। उस वक्त इसकी वैक्सीन की भारी कमी थी।
वायरस के तेज प्रसार और वैक्सीन की कमी को देखते हुए लोगों को तय मात्रा से कम खुराक दी गई। एक व्यक्ति की जगह एक सामान्य खुराक पांच लोगों को लगाई गई थी। इससे कम वैक्सीन के सहारे अधिक लोगों को सुरक्षा मिली और संक्रमण पर काबू पा लिया गया।
क्या कोरोना वैक्सीनों के साथ भी हो सकता है? आइये, जानते हैं।
जानकारी
लंबे समय से चला आ रहा यह तरीका
वैक्सीन की कमी से निपटने के लिए सामान्य से कम मात्रा में खुराक देना लंबे समय से चला आ रहा है। 2016 में अंगोला और कांगो में भी येलो फीवर के समय यही किया गया था।
अब ऐसे आंकड़े मौजूद हैं, जो दिखाते हैं कि कोरोना वायरस वैक्सीनों के साथ भी ऐसा किया जा सकता है।
दुनिया के कई हिस्सों में कोरोना वैक्सीन की भारी कमी है और लगभग तीन चौथाई लोग वैक्सीन का इंतजार कर रहे हैं।
जानकारी
ऐसा क्यों किया जाना चाहिए?
अलजजीरा से बात करते हुए जॉर्ज मेसन यूनिवर्सिटी में इकोनॉमिक्स के प्रोफेसर एलेक्स टेबर्रोक ने कहा कि वैक्सीन की छोटी खुराक मिलना खुराक न मिलने से बेहतर है। कई और जानकारों का कहना है कि इससे कई जानें बचाई जा सकती हैं।
कोरोना वैक्सीन
ट्रायल में क्या बात निकलकर सामने आई?
एक प्री-प्रिंट स्टडी में वैज्ञानिकों ने मॉडर्ना वैक्सीन के शुरुआती ट्रायल के आंकड़ों का अध्ययन किया है। इस ट्रायल में वॉलेंटियरों को अलग-अलग मात्रा में खुराक दी गई थी।
तीसरे और उसके बाद के चरणों में 100 माइक्रोग्राम की खुराक को आगे ले जाया गया, लेकिन आंकड़े दिखाते हैं कि शुरुआती चरणों में 25 माइक्रोग्राम की खुराक लेने वाले वॉलेंटियरों में सात महीने बाद भी 100 माइक्रोग्राम की खुराक लेने वाले लोगों के बराबर इम्युन रिस्पॉन्स था।
कम मात्रा वाली खुराक
इम्युनिटी कम, लेकिन पूरी खुराक जैसी- एलेक्स
मॉडर्ना ट्रायल के साथ-साथ एक और स्टडी में भी यह पता चला है कि एक चौथाई या आधी मात्रा में खुराक लेने वाले लोगों में उतनी ही टी-सेल्स और एंटीबॉडीज पाई गईं, जितनी पूरी खुराक लेने वाले लोगों में थी।
मॉडर्ना वैक्सीन की छोटी खुराक पर की गई स्टडी के लेखक और ला जोल्ला इंस्टीट्यूट ऑफ इम्युनोलॉजी से जुड़े प्रोफेसर एलेक्स सेटे कहते हैं कि इससे इम्युनिटी थोड़ी कम बनी, लेकिन यह पूरी खुराक जैसी थी।
कोरोना वैक्सीन
अमेरिका में भी हुआ था इस पर विचार
इस साल की शुरुआत में अमेरिका के वैक्सीन तैयार करने के कार्यक्रम ऑपरेशन वार्प सीड के प्रमुख मोन्सेफ सलाउई ने कम मात्रा वाली खुराकें लगाने का सुझाव दिया था।
उन्होंने कहा था कि मॉडर्ना वैक्सीन की आधी खुराक का पूरी खुराक जितना ही असर होगा। हालांकि, कई लोगों ने इस दिशा में पर्याप्त आंकड़ों की कमी के चलते उनके सुझाव का विरोध किया था।
उनका कहना था कि कम खुराक वैक्सीन की प्रभावकारिता कम कर देगी।
कोरोना महामारी
कोरोना संकट के बीच दुनिया को जल्द वैक्सीन की जरूरत
एक स्टडी में बताया गया है कि दो महीने बाद 95 प्रतिशत प्रभावकारिता वाली वैक्सीन उपलब्ध होने की जगह अगर आज 70 प्रतिशत प्रभावकारिता वाली वैक्सीन मिलती है तो कोरोना के कारण होने वाली मौतों को 20-37 फीसदी तक कम किया जा सकता है।
लगातार सामने आते कोरोना के नए वेरिएंट्स के बीच महामारी को काबू करने के लिए दुनिया की तीन चौथाई आबादी तक जल्द से जल्द वैक्सीन पहुंचाने की जरूरत है।
कोरोना वैक्सीनेशन
साइड इफेक्ट्स कम करने में मिलेगी मदद
स्टडी में यह भी सामने आया था कि कम मात्रा वाली खुराक से साइड इफेक्ट्स भी कम होंगे और इससे लोगों में वैक्सीन को लेकर होने वाली हिचकिचाहट दूर करने में मदद मिलेगी।
अमेरिकी कंपनी मॉडर्ना भी बच्चों के लिए कम मात्रा वाली खुराक तैयार करने पर काम कर रही है।
कई विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि बूस्टर शॉट यानी तीसरी खुराक के तौर पर भी कम मात्रा वाली खुराकें दी जा सकती हैं।