कैसे बनते हैं कोरोना वायरस के वेरिएंट और ये कितने खतरनाक हो सकते हैं?
कोरोना वायरस के लगातार सामने आ रहे नए वेरिएंट्स ने दुनिया के लिए नई चुनौती पैदा कर दी है। आज कई देशों में जो वेरिएंट्स फैल रहे हैं, वो 2019 के वायरस के काफी अलग हैं। इस बीच वायरस के अधिक खतरनाक वेरिएंट्स सामने आए हैं, जो कई देशों में तबाही मचा चुके हैं। ऐसे में यह सवाल उठ रहा है कि वायरस के वेरिएंट्स और कितने खतरनाक हो सकते हैं? आइये, इसका जवाब जानते हैं।
कैसे बनता है नया वेरिएंट?
कोरोना महामारी फैलाने के पीछे SARS-CoV 2 वायरस का हाथ है। वायरस के DNA में बदलाव को म्यूटेशन कहा जाता है। ज्यादा म्यूटेशन होने पर वायरस नया रूप ले लेता है, जिसे नया वेरिएंट कहा जाता है। वायरस के वेरिएंट सामने आने के कई कारण हैं। लगातार वायरस का फैलना इनमें से एक है। कोरोना से संक्रमित हर नया मरीज वायरस को म्यूटेट होने का मौका देता है। ऐसे में मरीज बढ़ने के साथ-साथ वेरिएंट की संभावना बढ़ जाती है।
वायरस में म्यूटेशन क्यों होते हैं?
सरल भाषा में समझें तो SARS-CoV-2 का जेनेटिक कोड लगभग 30,000 अक्षरों के RNA का एक गुच्छा है। जब वायरस इंसानी कोशिकाओं में प्रवेश करता है तो यह वहां अपनी तरह के हजारों वायरस पैदा करने की कोशिश करता है। कई बार इस प्रक्रिया के दौरान नए वायरस में पुराने का DNA पूरी तरह 'कॉपी' नहीं हो पाता है। ऐसी स्थिति में हर कुछ हफ्तों के बाद वायरस म्यूटेट हो जाता है, मतलब उसका जेनेटिक कोड बदल जाता है।
इंसानों में पहुंचने के बाद अपना रंग बदलते हैं वायरस
वैज्ञानिक मानते हैं कि चमगादड़ों से इंसानों में आए इस वायरस के शुरुआती वेरिएंट ने महामारी फैलाना शुरू किया और अब यह अपना काम बेहतर तरीके से सीख रहा है। BBC से बात करते हुए इंपीरियल कॉलेज ऑफ लंदन की वायरोलॉजिस्ट प्रोफेसर वेंडी बार्कले कहती हैं कि इंसानों में जाने के वक्त वायरस अपनी सबसे आदर्श या खतरनाक स्थिति में नहीं होते। वो पहले इंसानों तक पहुंचते हैं और फिर अपना रंग बदलते हैं।
और खतरनाक वेरिएंट्स आने की पूरी संभावना- बार्कले
प्रोफेसर बार्कले कहती हैं कि अभी कोरोना वायरस के और खतरनाक होने की पूरी आशंका है। यह कितना खतरनाक हो सकता है, इस बारे में अभी कहना जल्दबाजी होगी।
लगातार बढ़ी है कोरोना वायरस की संक्रामक दर
समय के साथ-साथ सामने आए कोरोना वायरस के वेरिएंट्स की ट्रांसमिशन रेट में इजाफा देखा गया है। 2019 के अंत में वुहान में जो वेरिएंट पाया गया था, उसकी संक्रामक दर (R) 2.5 थी। यानी 10 संक्रमित व्यक्ति अपने संपर्क में आए 25 लोगों तक संक्रमण फैला सकते थे, लेकिन वैज्ञानिकों के अनुसार, अब प्रमुखता से फैल रहे डेल्टा वेरिएंट से संक्रमित 10 व्यक्ति 80 अन्य लोगों को संक्रमित कर सकते हैं।
कोरोना में हुई म्यूटेशंस को असाधारण मानते हैं जानकार
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में वायरस के विकास का अध्ययन करने वाले डॉ एरिस काट्जोराकिस कहते हैं कि वायरस को लेकर जिस तरह का डर रहता है, कोरोना वायरस उससे बिल्कुल अलग है। शुरुआत के बाद इसने दो बार खुद को बदला है। इसके अल्फा (सबसे पहले ब्रिटेन में मिले वेरिएंट) और डेल्टा (सबसे पहले भारत में मिला वेरिएंट) दोनों ही अपने से पिछले वेरिएंट्स की तुलना में 50 प्रतिशत अधिक संक्रामक हैं। किसी वायरस में इस कदर म्यूटेशंस असाधारण हैं।
कैसे हो सकते हैं आगामी वेरिएंट्स?
डॉ एरिस का भी कहना है कि आने वाले सालों में इस वायरस के कुछ और वेरिएंट्स सामने आ सकते हैं। जब उनसे पूछा गया कि क्या संभावित वेरिएंट्स अभी से ज्यादा खतरनाक और संक्रामक होंगे तो उन्होंने कहा कि इसकी भी सीमा होती है। ऐसा नहीं हो सकता कि कोई ऐसा वेरिएंट आएगा, जिसके पास म्यूटेशन करने की सारी क्षमताएंं होंगी। वो कहते हैं कि जब वायरस किसी चीज में अच्छा होगा तो किसी में कमजोर भी होता जाएगा।
बचाव का तरीका क्या है?
कई देशों में शुरू हो चुके और कई देशों में रफ्तार पकड़ चुके वैक्सीनेशन अभियान को इस संकट से बचाव का तरीका माना जा रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि जिन देशों में तेजी से वैक्सीनेशन हो रहा है, वहां लोगों में रोग प्रतिरोधक क्षमता होने के कारण कोरोना के नए वेरिएंट तबाही नहीं मचा पाएंगे। हालांकि, वो यह भी चेतावनी देते हैं कि लगातार खतरनाक और संक्रामक होते ये वेरिएंट्स दुनिया के लिए बड़ी चुनौती हैं।
क्या है दुनिया में संक्रमण की स्थिति?
जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी के मुताबिक, दुनियाभर में अब तक लगभग 17.53 करोड़ लोग कोरोना वायरस से संक्रमित हो चुके हैं, वहीं 37.85 लाख लोगों की मौत हुई है। सर्वाधिक प्रभावित अमेरिका में 3.34 करोड़ लोग संक्रमित हो चुके हैं और लगभग 5.99 लाख लोगों की मौत हुई है। अमेरिका के बाद भारत दूसरा सर्वाधिक प्रभावित देश है। यहां 2.93 करोड़ लोगों में संक्रमण की पुष्टि हुई है और 3.67 लाख लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी है।