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हमारे जागते समय सोता है दिमाग का एक हिस्सा, सोने पर जागता है- शोध
हमारे जागे होने के समय सोता है दिमाग का एक हिस्सा

हमारे जागते समय सोता है दिमाग का एक हिस्सा, सोने पर जागता है- शोध

लेखन अंजली
Jul 18, 2024
02:24 pm

क्या है खबर?

अमेरिका में हुए एक शोध में चौंकाने वाला और बेहद अहम खुलासा हुआ है। इस शोध में सामने आया कि जब हम जाग रहे होते हैं, तब हमारे दिमाग का एक छोटा हिस्सा झपकी लेता है यानि सो जाता है। यही हिस्सा जब हम सो रहे होते हैं, तब बार-बार जागता रहता है। वैज्ञानिकों ने इस नई खोज को बेहद अहम बताया है, जो कई बीमारियों को समझने में मदद कर सकती है।

शोध

संयोगवश हुई खोज

वाशिंगटन विश्वविद्यालय और कैलिफॉर्निया विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने अपने शोध के दौरान संयोगवश यह खोज की। उन्होंने पाया कि हमारे जागे होने के बावजूद भी हमारे दिमाग के एक बेहद छोटे हिस्से में मस्तिष्क तरंगें अचानक से कुछ मिलीसेकंड के लिए बंद हो जाती हैं और हमारे सोने के दौरान इसी क्षेत्र में अचानक से मस्तिष्क तरंगें चलने लगती हैं। मस्तिष्क तरंगों से ही दिमाग के सोने-जागने का पता चलता है।

तरीका

कैसा हुआ शोध?

4 साल चले शोध में वैज्ञानिकों ने चूहों के दिमाग के 10 अलग-अलग हिस्सों में मस्तिष्क तरंगों का वोल्टेज मापा और बड़ी मात्रा में इलेक्ट्रोफिजियोलॉजी डाटा इकट्ठा किया। कई महीनों तक उन्होंने तंत्रिका-कोशिकाओं (न्यूरॉन्स) के एक छोटे समूह की गतिविधियों पर माइक्रोसेकंड की सीमा तक नजर रखी। इस डाटा का एक आर्टिफिशियल न्यूरल नेटवर्क के जरिए विश्लेषण किया गया और नेटवर्क से ऐसे पैटर्न और विसंगतियां पता करने को कहा गया, जो मानवीय अध्ययनों में पकड़ में नहीं आई हैं।

पुराने शोध

पुरानी समझ को चुनौती देता है नया शोध

अभी तक सोने-जागने को समग्र मस्तिष्क तरंगों के पैटर्न के जरिए परिभाषित किया जाता था। अल्फा, बीटा और थीटा तरंगें जागे होने और डेल्टा तरंगें नींद का प्रतीक हैं। यह नई खोज इन अवस्थाओं को लेकर समझ को चुनौती देती है। जैवआणविक इंजीनियरिंग के प्रोफेसर डेविड हॉसलर ने कहा, "वैज्ञानिक के तौर पर हमें यह जानकर आश्चर्य हुआ कि हमारे दिमाग के अलग-अलग हिस्से उस समय झपकी ले रहे होते हैं, जब हमारा बाकी दिमाग जगा होता है।"

बयान

नींद संबंधित बीमारियों के इलाज में मदद कर सकता है यह शोध

यह नई खोज नींद अनियंत्रित होने से जुड़ी न्यूरोडेवलपमेंटल और न्यूरोडीजेनेरेटिव बीमारियों को बेहतर समझने और इनका इलाज खोजने में बेहद अहम हो सकती है। वाशिंगटन यूनिवर्सिटी में जीव विज्ञान के सहायक प्रोफेसर कीथ हेनगेन ने कहा, "सोना-जागना हमारे व्यवहार के सबसे बड़े निर्धारक हैं। इसलिए अगर हमें यह नहीं पता कि सोना-जागना वास्तव में क्या हैं तो हम पिछड़ जाएंगे। सोने-जागने को हम बुनियादी तौर पर जितना अधिक समझेंगे, उतना ज्यादा हम बीमारियों का समाधान कर पाएंगे।"