
कौन थे मैराथन धावक फौजा सिंह, जिनका 114 वर्ष की उम्र में दुर्घटना में हुआ निधन?
क्या है खबर?
दुनिया के सबसे उम्रदराज मैराथन धावक का खिताब हासिल करने वाले प्रतिष्ठित धावक फौजा सिंह का सोमवार को 114 साल की उम्र में एक सड़क दुर्घटना में निधन हो गया। सोमवार दोपहर जालंधर-पठानकोट हाईवे पर एक कार ने उन्हें टक्कर मार दी थी। इससे उनके सिर में गंभीर चोट आई थी। सूचना पर पहुंची पुलिस ने उन्हें तुरंत अस्पताल पहुंचाया, लेकिन शाम साढ़े 7 बजे उन्होंने दम तोड़ दिया। आइए फौजा सिंह के बारे में जानते हैं।
हादसा
कैसे हुआ हादसा?
आदमपुर थानाप्रभारी हरदेवप्रीत सिंह ने बताया कि फौजा सिंह सोमवार दोपहर साढ़े 3 बजे ब्यास गांव में जालंधर-पठानकोट हाईवे पर टहल रहे थे। उसी दौरान पीछे से आए किसी वाहन ने टक्कर मार दी। इससे वह गंभीर रूप से घायल हो गए। उन्हें अस्पताल पहुंचाया गया, लेकिन शाम को उन्होंने दम तोड़ दिया। उन्होंने बताया कि फिलहाल फौजा सिंह का शव मोर्चरी में रखा है और विदेश में रहने वाले उनके बच्चों के आने के बाद अंतिम संस्कार किया जाएगा।
जानकारी
पुलिस खंगाल रही है CCTV की फुटेज
थानाप्रभारी सिंह ने बताया कि फौजा सिंह देश की संपत्ति थे। पुलिस हाईवे पर लगे CCTV कैमरों की फुटेज खंगालकर आरोपी वाहन चालक का पता लगाने का प्रयास कर रही है। जल्द ही उसका पता लगाकर कानूनी कार्रवाई की जाएगी।
परिचय
कौन थे फौजा सिंह?
फौजा सिंह को 'टर्बन्ड टोर्नाडो' के नाम से जाना जाता था। साल 2011 में इसी नाम से लेखक खुशवंत सिंह ने उनकी बायोग्राफी लिखी थी। उसके अनुसार, उनका जन्म 1 अप्रैल, 1911 जालंधर के ब्यास पिंड में हुआ था। कमजोर पैरों के कारण वे 5 साल की उम्र तक चल भी नहीं पाते थे। इसके बाद 1992 में अपनी पत्नी जियान कौर के निधन के बाद वे अपने बेटे के साथ इंग्लैंड चले गए और पूर्वी लंदन में बस गए।
शुरुआत
बेटे की मौत का दुख भुलाने को शुरू की थी दौड़
फौजा ने अगस्त 1994 में अपने 5वें बेटे कुलदीप सिंह की मौत के बाद दुख से उबरने के लिए 83 साल की उम्र में दौड़ना शुरू किया था। साल 2000 तक वह गंभीर नहीं थे, लेकिन 89 साल की उम्र में उन्होंने दौड़ को गंभीरता से लिया और उसी साल लंदन मैराथन को 6 घंटे 54 मिनट में पूरा कर सुर्खियां बटोर लीं। उसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा और जल्द ही युवाओं और बुजुर्गों की प्रेरणा बन गए।
रिकॉर्ड
साल 2011 में बने सबसे उम्रदराज धावक
फौजा 16 अक्टूबर, 2011 को ओंटारियो मास्टर्स एसोसिएशन इनविटेशनल मीट में मैराथन पूरा करने वाले वे दुनिया के पहले शताब्दीवीर बने। इस उपलब्धि ने उन्हें सबसे उम्रदराज मैराथन धावक बना दिया। उन्होंने टोरंटो वाटरफ्रंट मैराथन 8 घंटे, 11 मिनट और 6 सेकंड में पूरी की थी। इस उपलब्धि से पहले उन्होंने टोरंटो के बिर्चमाउंट स्टेडियम में उसी इवेंट में एक ही दिन में आठ विश्व आयु-समूह रिकॉर्ड बनाए थे। इसमें उनकी आयु वर्ग के लिए 5 विश्व रिकॉर्ड शामिल थे।
मशालवाहक
ओलंपिक के मशालवाहक भी रहे थे फौजा
फौजा 2004 एथेंस खेल और 2012 के लंदन ओलंपिक में मशालवाहक थे। उन्होंने 101 साल की उम्र में प्रतिस्पर्धी लंबी दूरी की दौड़ से आधिकारिक तौर पर संन्यास ले लिया था। हांगकांग में अपनी आखिरी 10 किलोमीटर की दौड़ को उन्होंने 1 घंटे, 32 मिनट और 28 सेकंड में पूरा किया था। उन्होंने अपने जीवन में 11 मैराथन और 2 हॉफ मैराथन में हिस्सा लिया। टोरंटो वाटरफ्रंट मैराथन में 5 घंटे 40 मिनट का समय उनका व्यक्तिगत सर्वश्रेष्ठ रहा था।
उपलब्धियां
फौजा के नाम दर्ज हैं कई उपलब्धियां
फौजा के नाम कई आयु वर्गों में कई रिकॉर्ड दर्ज हैं। उन्होंने टोरंटो, न्यूयॉर्क और मुंबई में मैराथन में भाग लिया और युवाओं को प्रेरित करने के लिए विभिन्न दौड़ आयोजनों में दिखाई देते थे। उन्हें 13 नवंबर, 2003 को नेशनल एथनिक कोएलिशन द्वारा नस्लीय सहिष्णुता का प्रतीक होने के लिए 'एलिस आइलैंड मेडल ऑफ ऑनर' से सम्मानित किया गया था। वह सम्मान पाने वाले पहले गैर-अमेरिकी थे। उन्हें 2011 में 'प्राइड ऑफ इंडिया' का खिताब भी दिया गया था।
शोक
प्रधानमंत्री मोदी ने जताया शोक
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी फौजा सिंह के निधन पर शोक व्यक्त किया है। उन्होंने एक्स पर लिखा, 'फौजा सिंह जी अपने अद्वितीय व्यक्तित्व और फिटनेस जैसे महत्वपूर्ण विषय पर भारत के युवाओं को प्रेरित करने के तरीके के कारण असाधारण थे। वह अविश्वसनीय दृढ़ संकल्प वाले एक असाधारण एथलीट थे। उनके निधन से मुझे बहुत दुख हुआ है। मेरी संवेदनाएं उनके परिवार और दुनिया भर में उनके अनगिनत प्रशंसकों के साथ हैं।'