#NewsBytesExplainer: तमिलनाडु में बन रहा देश का दूसरा अंतरिक्ष पोर्ट, दशकों पहले ऐसे गंवाया था मौका
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले महीने तमिलनाडु के थूथुकुड़ी जिले के तटीय गांव कुलाशेखरपट्टनम में भारत के दूसरे अंतरिक्ष पोर्ट की आधारशिला रखी। 986 करोड़ रुपये की लागत से बनने वाले इस पोर्ट का इस्तेमाल भविष्य में कमर्शियल, ऑन-डिमांड और छोटे सैटेलाइट लॉन्च करने के लिए किया जाएगा। आइये जानते हैं कि भारत को दूसरे अंतरिक्ष पोर्ट की जरूरत क्यों पड़ी और कैसे कुछ दशक पहले भारत का पहला अंतरिक्ष पोर्ट तमिलनाडु के हाथ से निकल गया था।
क्यों पड़ी दूसरे अंतरिक्ष पोर्ट की जरूरत?
केंद्र सरकार कुछ समय पहले एक नीति लेकर आई थी, जिसमें अंतरिक्ष क्षेत्र के दरवाजे निजी कंपनियों के लिए भी खोल दिए गए हैं। इसके बाद कमर्शियल लॉन्च की संख्या बढ़ना तय है। अभी भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के पास श्रीहरिकोटा में सतीश धवन स्पेस सेंटर (SDSC) में एक लॉन्च पोर्ट है। यहां लॉन्चिंग के अतिरिक्त दबाव को कम करने के लिए दूसरा अंतरिक्ष पोर्ट बनाया जा रहा है।
कब तक बनकर तैयार होगा दूसरा अंतरिक्ष पोर्ट?
तमिलनाडु सरकार ने कुलाशेखरपट्टनम गांव में इस पोर्ट के लिए 2,000 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया है और इसे ISRO को सौंप दिया गया है। ISRO के प्रमुख एस सोमनाथ ने बताया था कि इसका निर्माण पूरा होने में 2 साल का समय लग सकता है और यहां से हर साल 20-30 SSLV (स्मॉल सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल) लॉन्च हो सकेंगे। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, यहां से निजी कंपनियों की अंतरिक्ष गतिविधियों का संचालन किया जाएगा।
इसके लिए तमिलनाडु का चयन क्यों किया गया है?
भौगोलिक, वैज्ञानिक और रणनीतिक तौर पर तमिलनाडु का कुलाशेखरपट्टनम का अंतरिक्ष पोर्ट ISRO को कई फायदे देगा। यहां से लॉन्च होने वाले सैटेलाइट को अपने तय स्थान पर पहुंचने के लिए कम दूरी तय करनी पड़ेगी और इसके लिए उसे कम ईंधन की जरूरत पड़ेगी। इसका फायदा यह है कि ISRO इन सैटेलाइट के साथ अधिक मात्रा में पेलोड भेज सकेगा। अभी श्रीहरिकोटा से लॉन्च होने वाले सैटेलाइट को अधिक दूरी तय करनी पड़ती है।
श्रीहरिकोटा से लॉन्च होंगे बड़े मिशन
आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा से केवल बड़े और भारी मिशन लॉन्च होंगे, वहीं कुलाशेखरपट्टनम से छोटे सैटेलाइट लॉन्च किए जाएंगे। चांद, शुक्र पर जाने वाले और मानवयुक्त गगनयान मिशन श्रीहरिकोटा से ही लॉन्च किए जाएंगे। श्रीहरिकोटा चेन्नई से लगभग 80 किलोमीटर दूर है और अभी तक ISRO के सभी मिशन यहीं से लॉन्च किए गए हैं। यहां स्टेटिक टेस्टिंग, लॉन्च व्हीकल इंटीग्रेशन फैसिलिटी, टेलिमेट्री सर्विसेस और मिशन कंट्रोल सेंटर जैसी सभी जरूरी सुविधाएं मौजूद हैं।
कैसे तमिलनाडु के हाथ से फिसल गया था पहला अंतरिक्ष पोर्ट?
लगभग 6 दशक पहले जब देश का पहला अंतरिक्ष पोर्ट बनाने के लिए जगह का चुनाव किया जा रहा था तो तमिलनाडु का नाम सबसे आगे था। 1960 के दशक में जब भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रमों के जनक विक्रम साराभाई जगह देख रहे थे, तब श्रीहरिकोटा का नाम कहीं नहीं था। उन्होंने पोर्ट के लिए 2 जगहों का चयन किया था और दोनों ही तमिलनाडु में स्थित थीं, लेकिन अंत में बाजी आंध्र प्रदेश के हाथ लगी।
कन्याकुमारी के नाम पर हुआ था विचार
वैज्ञानिक नंबी नारायणन ने अपनी आत्मकथा 'रेडी टू फायर: हाव इंडिया एंड आई सर्वाइव्ड इसरो स्पाई केस' में इस बात का जिक्र किया है कि कैसे श्रीहरिकोटा ISRO के लिए पहली पसंद बना। उन्होंने लिखा कि 1960 के दशक में कन्याकुमारी की तटीय रेखा के पास यह पोर्ट बनाने की योजना बनाई जा रही थी, लेकिन तमिलनाडु सरकार के दुर्व्यवहार और उसी समय आंध्र प्रदेश के एक प्रस्ताव की वजह से यह पोर्ट श्रीहरिकोटा के हाथ लग गया।
मंत्री के व्यवहार के कारण बदला गया विचार
नंबी नारायणन के अनुसार, विक्रम साराभाई की तरफ से प्रस्तावित जमीन को लेकर तमिलनाडु सरकार और ISRO वैज्ञानिकों के बीच चर्चा होनी थी। हालांकि, तमिलनाडु के तत्कालीन मुख्यमंत्री सीएन अन्नादुरई कंधे में गंभीर दर्द के कारण बैठक में शामिल नहीं हो पाए और उन्होंने अपने मंत्री मथियाझागन को अपनी जगह भेज दिया। मथियाझागन ने काफी देर तक वैज्ञानिकों और इंतजार कराया और आखिरकार जब वह बैठक में पहुंचे और तो होश में नहीं थे।
बैठक में साराभाई ने बदला विचार
नारायणन ने लिखा कि साराभाई काफी देर तक इंतजार करते रहे और उसके बाद मंत्री को बैठक में 'लाया' गया। उन्हें गिरने से बचाने के लिए कुछ लोग पकड़कर खड़े थे। किताब में आगे लिखा गया है कि मंत्री ने बैठक में कई न पूरी होने वाली मांगें रख दीं। इसी बीच साराभाई ने बैठक पूरी होने से पहले ही मन बना लिया था कि यह पोर्ट तमिलनाडु में नहीं बनेगा।
1971 में श्रीहरिकोटा में स्थापित हुआ पोर्ट
उसी समय आंध्र प्रदेश ने ISRO को श्रीहरिकोटा की 26,000 एकड़ जमीन देने का प्रस्ताव दिया। इसके बाद 1 अक्टूबर, 1971 को आंध्र प्रदेश के तटीय इलाके श्रीहरिकोटा में अंतरिक्ष पोर्ट की स्थापना हुई।