#NewsBytesExplainer: राइट-टू-रिपेयर क्या है और इससे ग्राहकों को कैसे होगा लाभ?
स्मार्टफोन, टैबलेट और वाहनों आदि की रिपेयरिंग काफी खर्चीला और जटिल काम है। लोगों के लिए रिपेयरिंग को आसान बनाने के लिए काफी समय से राइट-टू-रिपेयर (मरम्मत का अधिकार) पर बात हो रही है। इसका उद्देश्य ग्राहकों को महंगे रिप्लेसमेंट की जगह एक सस्ता विकल्प प्रदान करना है। इसके तहत यूजर्स कई पुर्जों को खुद से बदलने में सक्षम होंगे, लेकिन इसमें कई मुश्किलें हैं। आइये जानते हैं कि राइट-टू-रिपेयर, इसकी मुश्किलें और इसके लाभ क्या हैं।
कंपनियों के महंगे पुर्जे और सर्विस सेंटर के खर्च से बचेंगे ग्राहक
राइट-टू-रिपेयर के तहत कंपनियों को ऐसे प्रोडक्ट बनाने होंगे, जिन्हें जरूरत पड़ने पर यूजर्स खुद रिपेयर कर सकें। इससे यूजर्स का सर्विस सेंटर आने-जाने और कंपनियों के महंगे पुर्जों खरीदने का खर्च बचेगा। कई देश राइट-टू-रिपेयर को कानूनी तौर पर लागू करने की दिशा में काम कर रहे हैं। इस अधिकार को हासिल करने के लिए कई समूहों ने भी काफी संघर्ष किया है। हालांकि, अभी भी इस रास्ते में कई अड़चने हैं और यह लड़ाई जारी है।
नए प्रोडक्ट खरीदने से बढ़ता है कार्बन उत्सर्जन और इलेक्ट्रॉनिक कचरा
रिपेयरिंग महंगी और जटिल होने से लोग अपने खराब और टूटे उपकरणों को रिपेयर कराने की जगह उन्हें बदलना पसंद करते हैं। इससे भारी मात्रा में कार्बन उत्सर्जन और इलेक्ट्रॉनिक कचरा पैदा होता है। राइट-टू-रिपेयर की दिशा में सक्रिय रूप से काम कर रहे यूरोपीय संघ (EU) का अनुमान है कि समय से पहले फेंके गए डिवाइस अकेले EU की सीमा में हर साल 3.5 करोड़ मीट्रिक टन कचरा और 26 करोड़ मीट्रिक टन कार्बन उत्सर्जन का कारण है।
राइट-टू-रिपेयर से सहमत नहीं हैं कंपनियां
राइट-टू-रिपेयर से पर्यावरणीय लाभ और ग्राहकों को मिलने वाली सस्ती रिपेयरिंग के बावजूद ऐपल, माइक्रोसॉफ्ट, अमेजन, अल्फाबेट और मेटा जैसी दुनिया की दिग्गज टेक कंपनियां इसके विरोध में थीं। इनका कहना था कि राइट-टू-रिपेयर उनके बौद्धिक संपदा अधिकारों का उल्लंघन होगा। यह भी तर्क दिया गया कि ग्राहक अपना डिवाइस ठीक करते समय घायल हो सकते हैं और खुद से रिपेयर करने से अधिक हैकिंग होगी और मरम्मत में कोई दिक्कत होने से कंपनियों की प्रतिष्ठा को भी नुकसान होगा।
राइट-टू-रिपेयर के समर्थकों का यह तर्क
रिपेयरिंग के अधिकार का वकालत करने वालों का कहना है कि कंपनियों के तर्क निराधार हैं और उनके द्वारा राइट-टू-रिपेयर का विरोध करने की असली वजह उनके रिपेयरिंग बिजनेस को होने वाला घाटा है। हालांकि, कंपनियों के राइट-टू-रिपेयर के विरोध के समर्थन में बहुत कम सबूत मिले। इसके बाद कंपनियों ने इस मुद्दे पर अपना रुख बदलना शुरू कर दिया और ऐपल, सैमसंग, गूगल और माइक्रोसॉफ्ट आदि ने अपने-अपने सेल्फ-रिपेयरिंग कार्यक्रम शुरू कर दिए।
राइट-टू-रिपेयर के समर्थन के बाद ऐपल के आईफोन में हैं ये मुश्किल
ऐपल ने अगस्त, 2023 में अमेरिका में राइट-टू-रिपेयर बिल का समर्थन किया था। इससे लोगों को उम्मीद थी कि आईफोन 15 सीरीज को आसान रिपेयरिंग के हिसाब से डिजाइन किया जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं है। रिपेयर गाइड साइट आईफिक्सिट के मुताबिक, डिवाइस डिटेक्टिव ने पता लगाया कि आईफोन 15 कई सॉफ्टवेयर लॉक से भरा है। यदि इसमें ऐसा पार्ट लगाया जाता है, जो ऐपल से नहीं खरीदा गया हैं तो फोन पॉप अप वार्निंग देता है और काम नहीं करता।
कैलिफोर्निया का बिल माना जाता है सबसे मजबूत
राइट-टू-रिपेयर मामले में अभी तक कैलिफोर्निया के बिल को सबसे मजबूत माना जाता है। इस कानून का उद्देश्य खराब सामानों को फेंकने की प्रक्रिया को कम करना है। कैलिफोर्निया के बिल के तहत लगभग 4,000 रुपये से 8,000 रुपये के बीच लागत वाले उपकरणों के लिए 3 साल तक स्पेयर पार्ट्स और जानकारी उपलब्ध कराना अनिवार्य है। इसके अलावा 8,000 रुपये से अधिक लागत वाले उपकरणों के लिए 7 साल तक सपोर्ट देना अनिवार्य है।
पार्ट्स की कीमत तय नहीं करते मरम्मत के अधिकार से जुड़े कानून
मरम्मत के अधिकार से जुड़े कानूनों का उद्देश्य रिपेयरिंग से जुड़ी सभी बाधाओं को दूर करना नहीं है बल्कि स्वतंत्र रिपेयरिंग करने वाले और कंपनियों के अधिकृत रिपेयर पार्टनर के बीच समान अवसर उपलब्ध करना है। निर्माताओं को अपने स्वयं के रिपेयरिंग नेटवर्क में इस्तेमाल किए जाने वाले स्पेयर पार्ट्स को लोगों को उचित शर्तों पर आसानी से उपलब्ध कराना चाहिए। हालांकि, कानून यह तय नहीं करते हैं कि पार्ट्स किफायती होने चाहिए।