#NewsBytesExplainer: 'मुगल-ए-आजम' को बनाने में लगे थे 16 साल, इन चुनौतियों का करना पड़ा सामना
हिंदी सिनेमा की सबसे महंगी और बड़ी फिल्मों में शुमार 'मुगल-ए-आजम' की रिलीज को आज पूरे 63 साल हो गए हैं। 5 अगस्त, 1960 को रिलीज हुई इस फिल्म को बनाने के लिए के आसिफ ने अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया था। यह फिल्म जितनी खास थी, उतनी ही खास इसे बनाने के पीछे की कहानी भी थी। आइए जानते हैं कि फिल्म को पर्दे पर लाने के लिए निर्माताओं को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ा।
नाटक से निकली थी फिल्म की कहानी?
'मुगल-ए-आजम' की कहानी के बारे में कहा जाता है कि इसका जिक्र इम्तियाज अली के नाटक 'ताज' (1922) में मिलता है, जिस पर अर्देशिर ईरानी ने 1928 में फिल्म 'अनारकली' बनाई थी। उस समय सिनेमा को आवाज नहीं मिली थी इसलिए उन्होंने 7 साल बाद जब फिल्में बोलने लगीं तो एक बार फिर से इस फिल्म का निर्माण किया। इसके बाद जब आसिफ अनारकली और सलीम की कहानी पर्दे पर लेकर आए तो उसका खुमार अलग ही देखने को मिला।
देश के बंटवारे के बाद निर्माता ही चले गए पाकिस्तान
फिल्म बनाने की शुरुआत 1944 में हो गई थी, लेकिन इसकी शूटिंग आजादी से कुछ महीनों पहले 1946 में शुरू हो पाई। इसके बाद जब देश का बंटवारे हुआ तो फिल्म में पैसे लगा रहे शिराज अली पाकिस्तान चले गए, जिसके बाद इस पर संकट के बादल मंडरा गए। पहले जहां फिल्म में चंद्र मोहन, डीके सप्रू और नरगिस मुख्य भूमिका में नजर आने वाले थे तो आर्थिक संकट बढ़ने के बाद सभी सितारों को ही बदल दिया गया।
एक गाने पर ही खर्च हुए लाखों रुपये
संगीतकार नौशाद ने फिल्म के लिए 20 गाने बनाए थे, जिन्हें फिल्माया गया, लेकिन एडिटिंग के दौरान केवल 12 गाने ही बचे। फिल्म के सभी गाने बहुत मशहूर हुए थे, लेकिन 'प्यार किया तो डरना क्या' ने अपनी एक अलग जगह बनाई। आसिफ ने इस गाने के लिए बेल्जियम से खास शीशे मंगवाकर लाहौर किले के शीश महल जैसे भव्य सेट का निर्माण कराया गया। इसकी लागत उस समय 15 लाख रुपये के करीब बताई गई थी।
लता मंगेशकर ने बाथरूम में गाया था गाना
नौशाद ने 105 गानों में से 'प्यार किया तो डरना क्या' गाने को चुना था। इसे लता मंगेशकर ने बाथरूम में गाया क्योंकि स्टूडियो में उन्हें वह गूंज नहीं मिल रही थी। 'ऐ मोहब्बत जिंदाबाद' को मोहम्मद रफी के साथ 100 गायकों ने गाया था।
7 मिनट के सीन की 2 महीने तक चली शूटिंग
आजकल जहां 2 महीने में फिल्मों की शूटिंग पूरी हो जाती है, वहां आसिफ को एक युद्ध सीन फिल्माने में 2 महीने लगे थे। राजस्थान में फिल्माए गए 7 मिनट के इस सीन के लिए निर्देशक ने 16 कैमरे लगाए थे। इतना ही नहीं, सीन में भारतीय सेना की जयपुर कवलरी की 56वीं रेजिमेंट के 8,000 सैनिक, 2,000 ऊंट और 4,000 घोड़े शामिल थे। कहा जाता है कि फिल्म में दिखी भगवान कृष्ण की मूर्ति भी सोने की थी।
सितारों के कपड़ों पर भी किया खूब पैसा खर्च
'मुगल-ए-आजम' का बजट सितारों के कपड़ों और भव्य सेट के चलते भी काफी ज्यादा बढ़ा था। फिल्म में सितारों ने जितने भी कपड़े पहने थे, उन्हें दिल्ली में सिला जाता था और सूरत में उन पर नक्काशी होती थी। इसके अलावा गहने हैदराबाद, हथियार राजस्थान, मुकुट कोहल्हापुर और जूते आगरा में तैयार किए जाते थे। ऐसे में सभी चीजों को तैयार होने में समय लगता था और उन्हें अलग-अलग जगह से सेट पर पहुंचाने की लागत भी बढ़ जाती थी।
इतना था फिल्म का बजट
'मुगल-ए-आजम' आसिफ का सपना थी, जिसे बनाने में उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी। यह फिल्म बनाने के बाद वह भारतीय सिनेमा के इतिहास में अमर हो गए थे। जिस दौर में अमूमन 5 से 10 लाख रुपये में फिल्में बनती थीं, तब आसिफ ने इस फिल्म पर 1.5 करोड़ रुपये लगाए और कर्ज तले डूब गए। निर्देशक ने इसे बनाने के दौरान हर छोटी चीज पर गौर किया और यही वजह है कि यह मील का पत्थर साबित हुई।
एक साथ 3 भाषाओं में हुई थी फिल्म की शूटिंग
'मुगल-ए-आजम' की शूटिंग हिंदी के साथ तमिल और अंग्रेजी में भी हुई थी, जिस वजह से भी समय की बर्बादी होती थी। फिल्म के हिंदी संस्करण को लोगों ने बेशुमार प्यार दिया तो तमिल में 'अकबर' नाम से रिलीज होने के बाद यह फ्लॉप साबित हो गई। ऐसे में निर्देशक ने जिन अंग्रेजी कलाकारों को डबिंग के लिए मुंबई बुलाया था, उन्हें वापस भिजवा दिया। सैकनिल्क के अनुसार, फिल्म ने 5.40 करोड़ रुपये की कमाई की थी।