मंगल ग्रह से पृथ्वी पर कम्युनिकेशन होगा आसान, वैज्ञानिकों ने खोजा तरीका
पृथ्वी से दूर ग्रहों के साथ कम्युनिकेशन चुनौतीपूर्ण काम है। मंगल ग्रह तो पृथ्वी से बहुत दूर है। इसके साथ कम्युनिकेट करना और भी कठिन है। इस लाल ग्रह पर खोज और शोध के लिए काफी यान और रोवर आदि लॉन्च किए जाते रहते हैं। इस वजह से ग्रह के साथ कठिन कम्यूनिकेशन को आसान बनाना जरूरी है। मंगल ग्रह पर जब इंसान भेजे जाएंगे तो कम्युनिकेशन और भी जरूरी हो जाएगा।
पृथ्वी और मंगल ग्रह के बीच DSN सिस्टम से होता है कम्युनिकेशन
सौर मंडल के नीले और लाल ग्रहों के बीच कम्युनिकेशन की स्पीड को बढ़ाने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। स्पेन में शोधकर्ताओं ने एक अलग नेटवर्किंग टोपोलॉजी का अध्ययन किया है, जो ग्रहों के बीच होने वाली कम्युनिकेशन मुश्किलों को आसान बना सकता है। आमतौर पर मंगल ग्रह के साथ कम्युनिकेशन के लिए डीप स्पेस नेटवर्क (DSN) सिस्टम का इस्तेमाल किया जाता है। ये दुनियाभर में जमीन पर स्थित संचार उपग्रहों का एक सेट है।
ग्रहों की सूचना के लिए जरूरी है बेहतरीन कम्युनिकेशन
कम्युनिकेशन सैटेलाइट का उद्देश्य पृथ्वी की कक्षा से परे लॉन्च किए गए यान के साथ सीधे संवाद करना है। मंगल ग्रह और जमीन पर मौजूद सिस्टम मिलकर कम्युनिकेशन को संभव बनाते हैं। उदाहरण के लिए मार्स रिकोनिसेंस ऑर्बिटर (MRO) है। यह मंगल ग्रह पर मौजूद कैमरा, राडार से लैस ऐसा टोही यान है जो वहां की सूचना और चित्रों को DSN के जरिए पृथ्वी पर भेजता है।
DSN सिस्टम में हैं ये कमियां
DSN दुनिया के विभिन्न हिस्सों में बड़े रेडियो एंटीना का संग्रह है। DNS सिस्टम की कमियां ग्रहों के साथ अच्छा कम्युनिकेशन नहीं होने देती। DSN की बड़ी दिक्कत सिग्नल वापस भेजने के लिए इसमें इस्तेमाल होने वाले उपकरणों का बड़ा आकार और उनमें आने वाली खराबी है। इसमें कई बार सूर्य कम्युनिकेशन बाधित करता है। एक समस्या यह भी है कि जब DSN सैटेलाइट खराब हो जाता है तो MRO भी काम करना बंद कर देता है।
अंतरिक्ष में वायुमंडल न होने से सिग्नल खो देते हैं क्षमता
DSN सिस्टम के काम न करने की स्थिति में नेटवर्क इंजीनियर को पृथ्वी पर अस्थायी व्यवस्था तैयार करना पड़ती है। अंतरिक्ष में वायुमंडल की अनुपस्थिति के चलते कुछ सिग्नल अपनी क्षमता भी खो देते हैं। इसलिए लंबी दूरी पर हाई-स्पीड इंफॉर्मेशन को प्रभावी ढंग से भेजने के लिए अंतरिक्ष यान पर बड़े पैमाने पर एंटीना चाहिए। हालांकि, जब एंटीना बड़े किए जाते हैं तो वो उस फेयरिंग के आकार से अधिक हो जाते हैं, जिसमें वे लॉन्च किए जाते हैं।
वैज्ञानिकों ने बनाया सोलरकॉम नाम का सॉफ्टवेयर
पृथ्वी और मंगल के बीच लगभग 30 प्रतिशत समय तक कम्युनिकेशन बाधित होता है। इसकी सबसे बड़ी वजह सूर्य है। क्योंकि पृथ्वी और मंगल सूर्य के विपरीत दिशा में हैं। इन समस्याओं को हल करने के लिए पाउला बेट्रियू पॉलिटेक्निक यूनिवर्सिटी ऑफ केटेलोनिया के उनके सहयोगियों ने अलग प्रकार के नेटवर्क टोपोलॉजी की उपलब्धता, अपटाइम और स्पीड का विश्लेषण करने के लिए सोलरकॉम नाम का एक सॉफ्टवेयर तैयार किया है।
पृथ्वी और मंगल के बीच 90 प्रतिशत से अधिक बढ़ सकता है कम्युनिकेशन
सोलरकॉम सॉफ्टवेयर के जरिए पृथ्वी और मंगल के बीच कम्युनिकेशन को 90 प्रतिशत से अधिक बढ़ाया जा सकता है। यह नया कॉन्फिगरेशन 100 प्रतिशत तक की नेटवर्क कनेक्शन दर तक पहुंच सकता है। हालांकि, यह काफी महंगा भी हो सकता है क्योंकि इसके लिए अधिक उपग्रहों की जरूरत होगी, लेकिन आने वाले समय में अंतरिक्ष यानों के लॉन्च की लागत कम होने के साथ इसका महंगा होना ज्यादा समस्या नहीं होगा।