नासा चांद पर भेजेगा लूनर फ्लैशलाइट, पीने के पानी की करेगा खोज
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा लगातार चांद पर पानी की खोज में लगी हुई है, ताकि इससे जुड़ी और अधिक जानकारी मिल सके। इसी क्रम में नासा फिर से एक बार कोशिश में जुट गई है और अब चांद पर लूनर फ्लैशलाइट सैटेलाइट को भेजने की तैयारी कर रहा है। अगर चांद पर मिला पानी इंसान के इस्तेमाल के योग्य साबित हो जाता है तो इससे अंतरिक्ष यात्रियों को बड़ी मदद मिलेगी।
लूनर फ्लैशलाइट क्या है?
लूनर फ्लैशलाइट कम लागत वाला क्यूबसैट चन्द्र आर्बिटर मिशन है, जिसे जेट प्रोपल्सन लेबोरेटरी, कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय और मार्शल स्पेस फ्लाइट सेंटर की एक टीम द्वारा विकसित किया जा रहा है। मोटे तौर पर यह ब्रीफकेस के आकार का एक बहुत छोटा उपग्रह है। यह चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास स्थायी रूप से छाया वाले क्षेत्रों में बर्फ को मैप करने के लिए लेजर और ऑनबोर्ड स्पेक्ट्रोमीटर का उपयोग करेगा। इसे 9 नवंबर को लॉन्च किया जाएगा।
स्पेस-X फाल्कन 9 रॉकेट के जरिए लॉन्च होगा यह मिशन
वैज्ञानिकों के मुताबिक, चंद्रमा के नीचे पानी की बर्फ तो मौजूद है, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि यह कितने काम की है। इस पर और अधिक जानकारी के लिए के लिए नासा लूनर फ्लैशलाइट लॉन्च करने की योजना बना रही है। लूनर फ्लैशलाइट चंद्रमा की सतह पर पानी की बर्फ को उन जगहों पर खोजने की कोशिश करेगा, जहां पर पानी मिलने की संभावना है। बता दें, यह मिशन इस महीने स्पेस-X फाल्कन 9 रॉकेट के जरिए लॉन्च होगा।
अपने कक्ष तक पहुंचने में सैटेलाइट को लगेंगे तीन महीने
नासा के जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी में मिशन के प्रोजेक्ट मैनेजर जॉन बेकर ने कहा कि लूनर फ्लैशलाइट सैटेलाइट को ऑर्बिट तक पहुंचने में लगभग तीन महीने लगेंगे। इसके बाद यह स्पष्ट हो जाएगा कि चांद पर मिलने वाला पानी पीने योग्य है या नहीं।
चंद्रमा को लेकर कई बातें आएंगी सामने
सैटेलाइट लॉन्च के बाद मिशन नेविगेटर चंद्रमा के पीछे अंतरिक्ष यान का मार्गदर्शन करेगा। इसके बाद लूपिंग ऑर्बिट में सेटल होने से इसे पृथ्वी और सूर्य के गुरुत्वाकर्षण द्वारा धीरे-धीरे वापस खींच लिया जाएगा। यह ऑर्बिट चंद्रमा से अपने सबसे दूर बिंदु पर 70,000 किलोमीटर की दूरी तय करेगा। नासा के एम्स रिसर्च सेंटर के प्रमुख रोजर हंटर कहते हैं कि इस मिशन से चंद्रमा के बारे में कई बातों का पता लग सकेगा।