कार्बन उत्सर्जन और ऊर्जा खपत के साथ पर्यावरण पर कैसे असर डाल रही जनरेटिव AI?
चैटबॉट्स और इमेज जनरेटर्स के पीछे जनरेटिव आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस टेक्नोलॉजी काम करती है। ये टेक्नोलॉजी धरती को गर्म कर रही है। एक रिपोर्ट में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) शोधकर्ताओं के हवाले से कहा गया है कि AI जितना अधिक शक्तिशाली होगा वो उतनी ही अधिक ऊर्जा लेगा। हालांकि, सिंगल AI मॉडल के पीछे खर्च होने वाली सटीक ऊर्जा का अनुमान लगाना मुश्किल है। इसमें कंप्यूटिंग उपकरण के निर्माण, मॉडल बनाने और मॉडल के इस्तेमाल में उपयोग होने वाली ऊर्जा शामिल है।
क्या है जनरेटिव AI?
जनरेटिव आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस अपने पिछले डाटा से सीखती है और फिर उसी हिसाब से जवाब देती है। अन्य AI की तरह यह डाटा को केवल कैटेगरी में बांटने और उसकी पहचान करने की जगह इनपुट और सेव डाटा के आधार पर नया कंटेंट तैयार करती है। यूजर्स की इनपुट के आधार पर यह टेक्स्ट और कंप्यूटर कोड आदि बनाती है और गूगल की तरह वेबसाइट्स का लिंक देने की जगह AI चैटबॉट इंसानी भाषा में लिखकर जवाब देते हैं।
अधिक पैरामीटर्स वाले मॉडल करते हैं ज्यादा ऊर्जा की खपत?
रिपोर्ट के मुताबिक, 2019 में एक रिसर्च करने वाले ने पाया कि 10 करोड़ से अधिक पैरामीटर्स के साथ BERT नामक एक जनरेटिव AI मॉडल बनाने से एक व्यक्ति के लिए एक राउंड-ट्रिप ट्रांसकॉन्टिनेंटल फ्लाइट की ऊर्जा के बराबर खपत होती है। इसमें पैरामीटर्स की संख्या मॉडल के आकार को बताती है। शोधकर्ताओं ने अनुमान लगाया कि 17,500 करोड़ से अधिक पैरामीटर वाले GPT-3 मॉडल ने 1,287 मेगावाट घंटे बिजली की खपत की और 552 टन कार्बन डाइऑक्साइड पैदा की।
GPT-3 ने छोड़ा इतना कार्बन फुटप्रिंट
GPT-3 ने जितना कार्बन फुटप्रिंट छोड़ा, उतना कार्बन गैसोलीन से चलने वाले 123 यात्री वाहन 1 साल चलने के बाद छोड़ते। बता दें कि इतनी ऊर्जा और कार्बन इस मॉडल को सिर्फ लॉन्च करने के लिए तैयार करने लगी है। इसमें उपभोक्ताओं के इस्तेमाल के बाद लगने वाली ऊर्जा और पैदा होने वाले कार्बन को नहीं जोड़ा गया है। हालांकि, सिर्फ AI मॉडल के आकार के आधार पर उससे होने वाले कार्बन फुटप्रिंट उत्सर्जन का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता।
बराबर साइज के दूसरे मॉडल ने किया कम ऊर्जा खपत और उत्सर्जन
फ्रांस में बिगसाइंस प्रोजक्ट द्वारा डेवलप किया गया ओपन-एक्सेस ब्लूम मॉडल GPT-3 के साइज के बराबर ही है, लेकिन उसका कार्बन फुटप्रिंट बहुत कम है। ये 30 टन कार्बनडाइऑक्साइड उत्पन्न करने में 433 मेगावॉट बिजली की खपत करता है। गूगल के एक अध्ययन में पाया गया कि समान आकार के लिए एक अधिक सक्षम मॉडल आर्किटेक्टर और प्रोसेसर और एक हरित डाटा सेंटर का उपयोग करके कार्बन फुटप्रिंट को 100 से 1,000 गुना तक कम किया जा सकता है।
डिप्लॉयमेंट के दौरान होती है अधिक ऊर्जा खपत
बड़े मॉडल अपने डिप्लॉयमेंट के दौरान अधिक ऊर्जा खपत करते हैं। सिंगल जनरेटिव AI के उत्सर्जन पर इंडस्ट्री के आंकड़ों का अनुमान है कि यह सर्च इंजन के मुकाबले 4 से 5 गुना अधिक कार्बन उत्सर्जन करते हैं। चैटबॉट और इमेज जनरेटर लोकप्रिय होने से गूगल और माइक्रोसॉफ्ट जैसी दिग्गज कंपनियां अपने सर्च इंजन में AI को शामिल करती जा रही हैं। अब उनके पास AI में खपत होने वाली ऊर्जा और इसके कार्बन उत्सर्जन से जुड़े सवाल भी बढ़ेंगे।
अपडेट करने पर बढ़ जाएगी ऊर्जा की लागत
कुछ AI मॉडल के साथ ये समस्या है कि उन्हें लगातार अपडेट करने की जरूरत होती है। उदाहरण के लिए ChatGPT को केवल 2021 तक के डाटा पर प्रशिक्षित किया गया था। आगे की जानकारी के लिए इसे अपडेट करना होगा। ChatGPT बनाने में पैदा हुए कार्बन फुटप्रिंट की जानकारी सार्वजनिक नहीं है, लेकिन GPT-3 की तुलना में इसके बहुत अधिक होने की संभावना है। इसे नियमित आधार पर अपडेट करना पड़े तो ऊर्जा की लागत और भी बढ़ जाएगी।
रिन्यूएबल एनर्जी के जरिए कम किया जा सकता है उत्सर्जन
एक बड़ा AI मॉडल पर्यावरण को बर्बाद नहीं करेगा, लेकिन यदि 1,000 कंपनियां अलग-अल उद्देश्यों के लिए अलग-अलग AI बॉट डेवलप करती हैं और लाखों लोग इसका इस्तेमाल करते हैं तो ऊर्जा की खपत एक मुद्दा बन सकती है। अच्छी खबर यह है कि AI रिन्यूएबल एनर्जी पर चल सकता है। रिन्यूएबल एनर्जी और फॉसिल फ्यूल से मिलाकर AI बॉट को पावर देने पर उत्सर्जन को 30-40 प्रतिशत कम किया जा सकता है।
सामाजिक दबाव कर सकता है काम
सामाजिक दबाव कंपनियों और रिसर्च लैब्स को उनके AI मॉडल के कार्बन फुटप्रिंट की जानकारी देने में मददगार हो सकता है। कुछ कंपनियां और लैब्स पहले से ही ये कर रहे हैं। शायद भविष्य में यूजर्स इस जानकारी का उपयोग कम बिजली की खपत करने और कम उत्सर्जन वाले चैटबॉट को चुनने के लिए भी कर सकते हैं। वर्तमान में OpenAI का ChatGPT और गूगल का बार्ड चर्चित AI चैटबॉट हैं।