#NewsBytesExplainer: चंद्रयान-3 का कैसा होगा सफर और कब करेगा चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग?
क्या है खबर?
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के मुताबिक, चंद्रयान-3 मिशन 14 जुलाई को दोपहर 2:35 बजे लॉन्च किया जाएगा।
ISRO चेयरमैन एस सोमनाथ के मुताबिक, लैंडर को 23 या 24 अगस्त को चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंड कराया जाएगा। यदि किसी वजह से लैंडिंग नहीं होती है तो फिर इसे अगले महीने सितंबर में लैंड कराया जाएगा।
बता दें, इससे पहले वर्ष 2019 में लॉन्च किया गया मिशन चंद्रयान-2 सॉफ्ट लैंडिंग न हो पाने के चलते फेल हो गया था।
जानकारी
चंद्रयान-3 को करना होगा इतना लंबा सफर
चांद तक पहुंचने के लिए चंद्रयान-3 को लगभग 30,844 लाख किलोमीटर की यात्रा करनी होगी। चंद्रयान-2 का लैंडर जब चांद की सतह पर लैंड करने से 2.1 किलोमीटर बचा था, तब उसने भी 48 दिन में 30,844 लाख किलोमीटर की यात्रा की थी।
ऑर्बिट
चांद के चक्कर लगाने के बाद होगी चंद्रयान-3 की लैंडिंग
चंद्रयान-3 की लॉन्चिंग के बाद GSLV मार्क-3 रॉकेट सैटेलाइट को 100 से 150 किलोमीटर की लो अर्थ ऑर्बिट में छोड़ेगा।
इसके बाद चंद्रयान-3 सोलर ऑर्बिट में पहुंचेगा। सोलर ऑर्बिट में चांद के चारों तरफ 5 चक्कर लगाने के बाद चंद्रयान-3 की लैंडिंग होगी।
लैंडिंग से पहले चंद्रयान-3 का प्रोपल्शन मॉड्यूल लैंडर मॉड्यूल को गिरा देगा और लैंडर चांद की सतह पर उतरना शुरू कर देगा।
चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग के बाद लैंडर के भीतर रखा रोवर बाहर निकलेगा।
चुनौती
लैंडर की सॉफ्ट लैंडिंग है जरूरी
चांद मिशन के लिए चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग बहुत जरूरी और चुनौतीपूर्ण काम है।
चंद्रयान-3 के लिए भी चांद की सतह पर लैंडर की सॉफ्ट लैंडिग सुनिश्चित करना अनिवार्य है।
दरअसल, चांद की सतह पर गुरुत्वाकर्षण कम होने और वहां मौजूद क्रेटर (गड्ढे), रेजोलिथ (मिट्टी और चट्टान) के कारण सॉफ्ट लैंडिंग बड़ा मुश्किल काम हो जाता है।
गुरुत्वाकर्षण की कमी के कारण लैंडर के चांद की सतह पर गिरने की नियंत्रित स्पीड बहुत जरूरी है।
लैंडिंग
क्या है सॉफ्ट लैंडिंग?
सॉफ्ट लैंडिग को ऐसे समझिए कि चांद की सतह पर बहुत सारे गड्ढे, चट्टान मौजूद हैं और अगर लैंडर तेजी से गिरता है तो उसमें और उसके भीतर रखे रोवर में खराबी आ सकती है। जब ये उपकरण काम नहीं करेंगे तो वैज्ञानिकों को चांद से जुड़ी जानकारी ही नहीं मिल पाएगी और मिशन फेल हो जाएगा।
इसलिए लैंडर का चांद की सतह पर नियंत्रित गति में उतरना जरूरी हो जाता है ताकि उसमें लगे उपकरणों को नुकसान न पहुंचे।
अंतरिक्ष
GSLV मार्क-3 रॉकेट से जाएगा चंद्रयान-3
चंद्रयान-3 मिशन को अंतरिक्ष में ले जाने वाला GSLV मार्क-3 रॉकेट 3 स्टेज का रॉकेट है। इसमें 2 ठोस स्ट्रैप-ऑन (S200), 1 लिक्विड कोर स्टेज (L110) और 1 उच्च थ्रस्ट क्रायोजेनिक अपर स्टेज (C25) है।
GSLV मार्क-3 का वजन 640 टन है और यह 8,000 किलोग्राम पेलोड को लो अर्थ ऑर्बिट (LEO) में और 4,000 किलोग्राम पेलोड को जियो सिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट (GTO) में स्थापित कर सकता है।
इसकी ऊंचाई लगभग 6 मंजिला इमारत के बराबर है।
सेंसर्स
सेंसर्स के जरिए तय होगी लैंडर की दिशा और स्पीड
चंद्रयान-3 को सफल बनाने के लिए इसके सॉफ्टवेयर से लेकर डिजाइन तक में बड़े बदलाव किए गए हैं और इसमें कई नए सेंसर्स जोड़े गए हैं। इसके लैंडर में लैंडिंग की जगह का नेविगेशन और कॉर्डिनेट्स पहले से फीड किए गए हैं।
चंद्रयान-3 चांद की सतह पर 7 किलोमीटर की ऊंचाई से लैंडिंग शुरू करेगा और 2 किलोमीटर की ऊंचाई से इसके सेंसर्स एक्टिव हो जाएंगे।
सेंसर्स और फीड नेविगेशन से लैंडर अपनी दिशा, स्पीड, लैंडिंग साइट निर्धारित करेगा।
लैंडर
चांद से जुड़ी जानकारी इकट्ठा करेगा रोवर
चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग के बाद लैंडर और रोवर अपना काम शुरू कर देंगे।
ISRO के वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि लैंडर-रोवर चंद्रमा पर 14 पृथ्वी दिनों तक या इससे ज्यादा या कम भी काम कर सकते हैं।
रोवर चांद की सतह पर चलेगा और जरूरी जानकारी इकट्ठा करेगा। रोवर अपना डाटा लैंडर को भेजेगा और लैंडर के जरिए डाटा सीधे इंडियन डीप स्पेस नेटवर्क (IDSN) तक पहुंचेगा।
लक्ष्य
ये हैं चंद्रयान-3 के लक्ष्य
चंद्रयान-3 से चंद्रयान-2 के लिए तय किए गए लक्ष्य हासिल किए जाएंगे। चंद्रयान-3 मिशन के लिए 3 मुख्य लक्ष्य निर्धारित किए गए हैं, जिनमें चांद पर सॉफ्ट लैंडिंग, चांद की सतह पर घूमना और इन-सीटू वैज्ञानिक प्रयोग करना है।
चांद की सतह पर लैंडिंग और रोविंग करने में अब तक सिर्फ 3 देश अमेरिका, रूस और चीन सफल रहे हैं।
अगर यह मिशन सफल रहता है तो चांद की सतह पर लैंडिंग और रोविंग करने वाला भारत चौथा देश होगा।